Panchanvika Mahotsav Udaipur : आयड़ तीर्थ पर सत्तरह भेदी पूजा एवं गुरुदेव वल्लभसूरिजी का 69वां पुण्य दिवस मनाया

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  • पांच दिवसीय पंचान्ह्विका महोत्सव का हुआ समापन

Aaj Samaj (आज समाज), Panchanvika Mahotsav Udaipur, उदयपुर 10 अक्टूबर:

श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में मंगलवार को पांच दिवसीय पंचान्ह्विका महोत्सव के अंतिम दिन विविध आयोजन हुए ।

आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ में पांच दिवसीय महोत्सव के तहत प्रात: 9.15 बजे अंतिम दिन श्री जैन श्वेताम्बर महासभा की ओर से आयड़ तीर्थ पर सत्तरह भेदी पूजा एवं पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य देवश्रीमद् विजय गुरुदेव वल्लभसूरिजी का 69वां पुण्य दिवस मनाया गया। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि विशेष महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा के सान्निध्य में आयोजित पांच दिवसीय पंचान्ह्विका महोत्सव के अंतिम दिन परमात्म भक्ति स्वरूप सतरह भेदी पूजा का विधान हुआ।

परमात्म भक्ति का अपूर्व भक्तिमय के साथ श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया क्योंकि जिन प्रतिमा के आलंबन से अपने शुद्ध वीतरागी स्वरूप का भान हो जावे वही अपूर्व सिद्धि है प्रभु प्रतिमा के आलंबन से अपनी प्रभुता को पहेचान के अपने स्वयं का शुद्ध स्वरूप का श्रद्धा भासन और उसमें रमणता करना ही महान लोकोत्तर सिद्धि है। वीतराग परमात्मा के ज्ञान. दर्शन आदि गुणों की जो स्तपना की जाय वही निश्चय स्तुतिह। वीतराग परमात्मा के गुणों को चिन्तन करना उनके प्रति श्रद्धा- आस्था रखना रही सच्ची परमात्मा की भक्ति कही गई है। तभी हमारे अंदर भी उन गुणों का समावेश होता है। पंजाब केशरी उपकारी गुरुदेव श्री मद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म. सा. का 69 वाँ पुण्य दिवस मनाया गया। पूज्य वल्लभ गुरुदेव का जन्म गुजरात के बड़ोदरा में वि. स. 1927 कार्तिक सुदी दूज के दिन हुआ।

दीक्षा वि. सं. 1943 वैशाख सुदी तेरस के दिन पू. आचार्य देव आत्मारामजी विजयानंद सूरीश्वरजी म.सा. के द्वारा राधनपुर में हुई और आचार्य पदवी वि. सं. 1981 लाहोर पंजाब/ -पाकिस्तान में हुई जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ तब पूज्य वल्क्रम गुरुदेव ने अपने जान की परवाह किये बिना सेंकडो जिन प्रतिमा, ज्ञान भंडगर, जैन परिवारों का रक्षण किया था। गुरु आत्म की एक छाया बनकर सेवा की थी जिसके फल स्वरूप उन्होंने अपने जीवन में जिन शासन के कार्य किये थे। जिसमे संघटन, साधर्मिक उत्कर्ष, शिक्षण के साथ संस्करण के लिए अनेक छात्रावास, संस्थाओं का निर्माण, गुरुकलों का निर्माण उनके पुण्य प्रभाव से हजारों युवा सन्मार्ग की ओर बढे- ऐसे युगदर्शी गुरुदेव का कालधर्म मुंबई की महानगरी में हुआ।

चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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