देश आजकल करोना वायरस से जूझ रहा है। 25 मार्च को घोषित लॉकडाउन के बाद से अधिकांश सरकारी दफ्तर महीने भर बंद रहे , बाजार की रौनक गायब रही और व्यापारिक गतिविधियां भी ठप सी ही रहीं। अब 20 अप्रैल के बाद से देश के ग्रामीण इलाकों मैं जहां खेती बाड़ी का कामकाज शुरू हो गया है वहीं ट्रकों और अन्य माल ले जाने वाले वाहनों को भी छूट दे दी गयी है। आशा की जा रही है आगे आने वाले समय में जनता के भरपूर सहयोग के चलते देश अपने सामर्थ पर इस वायरस पर जरूर काबू पाने में सफल होगा।
विश्वव्यापी इस महामारी के प्रकोप के समय में हमारा देश वर्षों से चली आ रही एक अत्यंत व्यापक एवं गंभीर समस्या का समाधान करने कि दिशा में आज एक महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा है। आज देश के प्रधानमंत्रीजी “स्वामित्व” परियोजना का शुभारम्भ करेंगे जिसे ग्रामीण इलाकों का भविष्य बदलने कि दिशा में महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा सकता है।
आदिकाल से भारत के गांव उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं क्योंकि मालगुजारी यानि लैंड रेवेन्यु ही राज्य की आय का मुख्य स्त्रोत लम्बे समय से बनी हुई है। इसीलिए हरएक शासनकाल में मालगुजारी को भलीभांति वसूलने के लिए भूमि के स्वामित्व सम्बन्धी लेखाजोखा रखना जरूरी बन गया था क सोलहवीं शताब्दी में शेर शाह सूरी ने मालगुजारी की वसूली व्यवस्थित ढंग से करने के लिए खेती वाली जमीन को जोतदारों के साथ सेटल करने की प्रथा को शुरू किया जिसे आगे चलकर अकबर के शासन काल में टोडरमल ने व्यापक रूप से सुव्यवस्थित करते हुए मालगुजारी व्यवस्था को भली-भांति स्थापित कर दिया। अंग्रेजों ने जब यहां शासन की बागडोर सम्हाली तो उनको एक व्यवस्थित भूमि स्वामित्व सम्बन्धी रिकार्ड्स तैयार मिले। लेकिन काश्तकारों से ज्यादा से ज्यादा मालगुजारी वसूलना उनका एकमात्र उद्देश्य था जिसके चलते अंग्रेजों ने देश के कई भागों में जमींदारी प्रथा और अन्य जगहों पर रैयतवारी व्यवस्था कायम की। लेकिन खेती की जमीन की नापजोख और उनके स्वामित्व के सम्बन्ध में जहां ब्यौरा तैयार किया गया वहीं आबादी की जमीन की नापजोख करने या उसका स्वामित्व निर्धारित करने का कोई भी प्रयास नहीं किया गया क्योंकि आबादी की जमीन में फसल होनी नहीं थी इसलिए ऐसी जमीन से मालगुजारी नहीं मिलनी थी क स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी आबादी की जमीन की नापजोख , सीमांकन करने या रहने वाले लोगों के स्वामित्व सम्बन्धी अभिलेखों को तैयार करने का कोई व्यापक एवं गंभीर प्रयास , कुछ अपवादों को छोड़कर , नहीं किया जा सका जिसके दुष्परिणाम देश वर्षों से भुगत रहा है।
आबादी की जमीन का कोई नक्शा या सीमांकन न होने के कारण सहन, नाली, नाबदान, जानवर बांधने, मकान के निर्माण सम्बन्धी विवादों के निस्तारण के लिए पक्षों को सिविल न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है जहां एक सर्वेक्षण के अनुसार इस प्रकार के आबादी सम्बन्धी विवादों के अंतिम रूप से निपटारे में लगभग बीस वर्षों का समय औसतन लगता है। अकेला यह तथ्य इस प्रकार के मामलों में शामिल पक्षों की त्रासदी को स्पष्ट कर देता है क इतना ही नहीं विशेषज्ञों के अनुसार हमारे देश के सिविल अदालतों में वर्त्तमान में लम्बित कुल मामलों में से कम से काम चालीस प्रतिशत मामले ग्रामीण आबादी से जुड़े मामले हैं जो पैदा सिर्फ इस कारण से हुए की आबादी की भूमि का कभी सीमांकन, नापजोख, लोगों के स्वामित्व को निर्धारित करने का प्रयास नहीं किया गया। इस दृष्टि से केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय द्वारा आबादी भूमि के भीतर रहने वाले सभी लोगों की भूमि का सीमांकन करने और उनका स्वामित्व निर्धारण करने के लिए शुरू की जाने वाली इस परियोजना को एक ऐसे प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए जो ग्रामीण इलाकों में बढ़ते विवाद, मुकदमेबाजी को समाप्त करने में सहायक बनेगा। सिर्फ इस एक कदम से हमारी अदालतों में वर्षों से लंबित करोड़ों मामलों का आसानी से निस्तारण हो जायेगा वहीं भूमि के स्वामित्व सम्बन्घी अभिलेखों से आबादी भूमि के आधार पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद भी मिलेगी। इसी के साथ इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण भारत के लिए एक एकीकृत संपत्ति सत्यापन समाधान प्रदान करना है। इस योजना के तहत पंचायती राज मंत्रालय, राज्य राजस्व विभागों और भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सहयोग से ड्रोन की तकनीक का उपयोग करके नवीनतम सर्वेक्षण विधियों का उपयोग करके ग्रामीण क्षेत्रों में निवासियों की भूमि का सीमांकन किया जाएगा। यह गांव के घरेलू मालिकों को, अपने घरों को ऋण और अन्य वित्तीय लाभों के लिए एक वित्तीय संपत्ति के रूप में उपयोग करने में सक्षम करेगा और गांवों में बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकारों का रिकॉर्ड प्रदान करेगा। इस परियोजना के तहत सर्वे आॅफ इंडिया अपनी उन्नत तकनीक का प्रयोग करते हुए ड्रोन की सेवाएं लेकर पूरे आबादी का सर्वे करके पूरे स्थल का एक डेटाबेस तैयार करने के उपरांत मौके पर राजस्व विभाग एवं अन्य सहयोगी विभागों के प्रतिनिधयों के साथ ग्रामीणजनों की उपस्थिति में लोगों के स्वामित्व का रिकॉर्ड तैयार करेगी। इसी के साथ मौके पर होने वाले विवादों के निस्तारण के लिए भी एक विस्तृत व्यवस्था का निर्धारण किया गया है क यह संतोष की बात है कि निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए महाराष्ट्र , हरियाणा, कर्नाटक, आदि में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ग्रामीण आवासों का मानचित्रण, और भूमि अधिकारों के अभिलेख तैयार करने का कार्य प्रारम्भ किया जा चुका है तथा अभी तक के अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि लोगों ने इस प्रयास का भरपूर रूप से स्वागत किया है और इस प्रयास कि सराहना की है। यह प्रयास हमारे देश के ग्रामीण आबादी के भविष्य के लिए अपार संभावनाएं अपने गर्भ में छिपाये हुए है। समय आ गया है कि ग्रामीण इलाकों में भी शहरों की तरह ही नागरिक सुविधाओं की व्यवस्था करने पर देश कि सरकारें सोचना प्रारम्भ कर दें क्योंकि शहरों और गांव के बीच की खाई को और ज्यादा दिन बना रहने देना अब देश के हित में नहीं होगा।
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विजय शंकर पांडेय
(लेखक पूर्व सचिव, भारत सरकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)