गांधी ने बगैर किसी को नुकसान पहुंचाये अहिंसा के रास्ते अपनी लड़ाई लड़ी, जिसकी आज बेहद जरूरत है। इस लड़ाई के दौरान लोग रास्ते से भटके तो उन्होंने अपने आंदोलनों को विराम दे दिया, न कि जीत के लिए गलत रास्ते अपनाये। गांधी ने जाति प्रथा और धार्मिक भेदभाव का सदैव विरोध किया। वह सभी को ईश्वर की एक संतान के रूप में देखते थे। अहिंसा और सत्य के रास्ते चलने की शपथ को उन्होंने देश की आजादी के बाद भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कोई राजनीतिक या सरकारी पद भी नहीं लिया। काठियावाड़ की रियासत (पोरबंदर) के प्रधान मन्त्री के बेटे होने के बाद भी उन्होंने सार्वजनिक जीवन संत की तरह जिया। यही कारण था कि गांधी के वैचारिक विरोधी रहे सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें सबसे पहले रंगून रेडियो के प्रसारण में राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था, जबकि गांधी से असहमति के कारण ही बोस को कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी।
गांधी को विश्व ने महान इसलिए माना क्योंकि उनका चिंतन महानता का था। वह कहते थे, जो जैसा सोचता है, बन जाता है। असल में क्षमा ताकतवर करता है, न कि कमजोर। शरीर से कोई शक्तिशाली नहीं बनता बल्कि अदम्य इच्छाशक्ति से बनता है। कायर कभी प्यार नहीं कर सकता है। यह बहादुर इंसान की पहचान है। उनके इन विचारों ने ही उन्हें विश्व का मार्गदर्शक बना दिया। गांधी ने कभी सत्या का रास्ता नहीं छोड़ा क्योंकि वह जानते थे कि सत्य को ज्यादा देर छिपाया नहीं जा सकता। उन्होंने अपना जीवन एक खुली किताब की तरह रखा। हालांकि उनकी आलोचना करने वाले लोग भी मौजूद हैं मगर वह वे लोग हैं, जो सच से अनभिज्ञ हैं। गांधी के विरोधी भी उनका सम्मान से नाम लेते हैं। ऐसे महात्मा की सोच और विचारधारा के साथ उनको नमन वंदन और विनम्र श्रद्धांजलि।
जय हिंद!
अजय शुक्ल
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)