अंबाला। इमरजेंसी के बाद सत्ता हासिल करने के लिए इंदिरा ने बड़ा सियासी दांव चला। इंदिरा गांधी को अब यह भरोसा हो गया था कि 1977 का लोकसभा चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में वापस आ जाएंगी। बावजूद इसके, उनके मन में विपक्ष को लेकर कुछ शंकाएं भी थीं। उन्हें डर था कि आपातकाल का हवाला देकर विरोधी दल जनता को कांग्रेस के विरोध में न खड़ा कर दें। इसी डर के चलते इंदिरा गांधी विरोधियों दलों को चुनाव के लिए बहुत अधिक वक्त नहीं देना चाहती थीं।
उधर, देश में आपातकाल को लेकर विरोध जरूर चल रहा था, लेकिन किसी को यह भरोसा नहीं था कि इंदिरा देश में चुनाव भी करा सकती हैं। तभी, इंदिरा गांधी ने 23 जनवरी 1977 को आकाशवाणी के जरिए देश को बताया कि अगले लोकसभा चुनाव मार्च में होंगे ।चुनाव के लिए विपक्षी दलों को महज 51 दिन का समय मिला।
इस घोषणा के साथ आपातकाल के दौरान जेल में कैद किए गए सभी लोगों को रिहा कर दिया गया। 1977 के लोकसभा चुनाव के लिए 16 मार्च से 21 मार्च का समय तय किया गया। ऐसे में विपक्षी दल न ही चुनाव लड़ने की तैयारी में थे और न ही चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त धन था।
उस दौर में, जयनारायण प्रकाश ने मोर्चा संभालते हुए जनता पार्टी का गठन किया। जनता पार्टी ने देश के तमाम राजनैतिक दलों से गठबंधन कर एक मजबूत मोर्चा तैयार किया। इसके साथ ही, प्रचार के लिए शीर्ष नेताओं का चुनाव किया गया। इसमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह, बाबू जगजीवन राम, चंद्रशेखर सहित अन्य दिग्गज नेताओं के नाम शामिल थे।
आपातकाल के बाद शुरू हुए चुनाव प्रचार में अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता था। तवलीन सिंह ने अपनी किताब में अटल बिहारी के भाषण का जिक्र करते हुए लिखा है कि ठंड और बारिश के बावजूद लोग अपनी जगह पर जमे हुए थे। इसी बीच एक शख्स ने अपने बगल वाले से पूछा कि ठंड लगातार बढ़ रही है, भाषण भी बेहद उबाऊ है, लोग जा क्यों नहीं रहे हैं। बगल वाले ने जवाब दिया, अभी अटल का भाषण बाकी है।
मंच पर आते ही अटल बिहारी ने अपने भाषण की शुरुआत शायरी से की। उन्होंने कहा कि ‘मुद्दत के बाद मिले हैं दीवाने, कहने- सुनने को बहुत हैं अफसाने, खुली हवा में जरा सांस तो लेलें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने।’ अटल बिहारी की इस शायरी के साथ पूरी जनसभा तालियों की गड़गड़ाहट और जिंदाबाद के नारों से गूंज गई।
लोकसभा चुनाव 1977 में जनता तक अपनी बात पहुंचाने और जीत दर्ज करने के लिए इंदिरा गांधी ने पूरे देश का भ्रमण किया। कई बड़ी रैलियों का आयोजन भी किया। उनकी रैलियों में पहले की तरह भीड़ तो जुटी, लेकिन यह भीड़ मतों ने परिवर्तित नहीं हो सकी। नतीजतन, जनता पार्टी 1977 के लोकसभा चुनाव में 298 सीट जीतने में कामयाब रही, जबकि कांग्रेस के खाते में महज 153 सीटें आई। इंदिरा गांधी अपनी रायबरेली सीट भी नहीं बचा सकीं। इस सीट जनता पार्टी के नेता राजनारायण की जीत हुई. इस चुनाव में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी भी अमेठी से चुनाव हार गए। कांग्रेस से चुनाव हारने वाले नेताओं की लिस्ट में जनेश्वर मिश्र और विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम भी शामिल है।