राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में कहा कि हम किस व्यक्ति या संस्था पर टिप्पणी कर रहे हैं, उसका कद क्या है और हम उस कद के सामने कहां खड़े हैं? यदि यह आइना देखकर हम टिप्पणी करेंगे, तो शायद न्याय कर सकें। आज हर कोई राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और अन्य उन तमाम नेताओं पर टिप्पणी कर देता है, जिनके लाखवें अंश का भी उसका न कद है और न योगदान। हम सब उन शख्शियतों के आगे बेहद बौने लोग हैं, जिन गांधी-नेहरू पर अभद्र भाषा में टिप्पणी करते हैं। सरदार पटेल ने नवंबर 1948 में खुद लिखा था कि बापू ने जवाहर को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना, आज मुझे लगता है कि उनका चयन पूर्ण रूप से सही था। मनोज का कथन नि:संदेह सत्य है। जिस सोशल मीडिया की खुद कोई जवाबदेही नहीं है, उससे ज्ञान लेकर लोग ज्ञानी बन जाते हैं। किसी एक विचारधारा के लोग, इन संस्था रूपी व्यक्तियों पर कुछ भी लिख या कह देते हैं और हम मूर्खों की तरह उसी को ब्रह्मवाक्य बना लेते हैं। हमें अपनी और सामने वाली की औकात को समझना चाहिए, उसके मुताबिक यथोचित संस्कारों में व्यवहार करना चाहिए। दुख तब होता है, जब कैलाश विजयवर्गीय जैसे कथित नेता एक न्यूज एंकर के सवाल पर उसको औकात बताने लगते हैं, जबकि कैलाश की खुद की औकात क्या है यह किसी से छिपा नहीं है?
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा महासिचव कैलाश विजयवर्गीय के विधायक पुत्र आकाश विजयवर्गीय के आपराधिक कृत्य को लेकर स्पष्ट किया कि यह बर्दास्त नहीं किया जाएगा। इसी अंदाज में उन्होंने तब भी कहा था कि मैं कभी प्रज्ञा सिंह को माफ नहीं कर पाऊंगा, जब उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए अभद्र टिप्पणी की थी। प्रधानमंत्री मोदी क्या करेंगे या नहीं करेंगे, यह चर्चा का विषय नहीं है। विषय यह है कि क्या इन लोगों की यह औकात है कि वे इतने बड़े लोगों पर टिप्पणी कर सकें? शायद नहीं। कैलाश विजयवर्गीय का अतीत और वर्तमान दोनों देखें, तो हम पाते हैं कि वह जो कुछ पाए हैं और उनके कार्यकलाप रहे हैं, वो गुंडों वाले थे। उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले भी इसी वजह से दर्ज हुए। उनका बेटा भी उनकी दबंगई और गुंडई वाली छवि का डर दिखाकर जीता है। जनता में तो यही छवि है कि इनसे पंगा मत लेना, नहीं तो…! एक राजकीय लोकसेवक अपने दायित्वों को निभाने जाता है और आकाश उसे न सिर्फ कार्य से रोकता है बल्कि बैट से पिटाई भी कर देता है। अफसरों में खौफ पैदा करके उनसे मनमानी काम कराने की पिछले 15-20 वर्षों से विजयवर्गीय परिवार की आदत रही है। इस डर का असर उन्होंने जनता में भी छोड़ा, नतीजतन लोग पंगा लेने में डरते हैं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्कारों से जन्मी भाजपा ने सत्ता हासिल करने के लिए अब शायद संस्कारों से दूरी बना ली है। नतीजतन, विजयवर्गीय जैसे लोग कार्यकर्ता से नेता बन गए हैं। कैलाश विजयवर्गीय की खासियत ही यही है कि वह जहां जाते हैं, दंगे-फसाद कराकर अपने और अपने दल के लिए जगह बनाते हैं। इसके कई उदाहरण बसबूत मौजूद हैं। बिल्कुल इसी तरह अपने डर का साया उन्होंने पत्रकारों पर भी बनाया। जब आकाश विजयवर्गीय के कुकृत्य पर एक न्यूज चैनल के एंकर ने उनसे सवाल किया तो उन्होंने उस एंकर को उसकी औकात एक तुक्ष्य प्राणी की तरह बताने की कोशिश की। यह दुख का विषय है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से न दुख व्यक्त किया गया और न ही र्शमिंदगी। हालात बिल्कुल उलट रहे, मध्य प्रदेश की पूरी भाजपा आकाश विजयवर्गीय के बचाव में जुटी उनका महिमा मंडन करती रही। हर बात पर टिप्पणी करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से ही इंकार कर दिया। भाजपा ने आकाश को ऐसे प्रस्तुत किया जैसे वह देश की आजादी की लड़ाई जीत कर आ रहा हो। हर्ष फायरिंग कर जनता और अफसरों को डराने की कोशिश की गई। विधि और संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने की शपथ लेने वाले बाप-बेटे विजयवर्गीय ने जो आचरण प्रस्तुत किया, वह उनकी गुंडे वाली औकात को स्पष्ट दर्शाता है। इससे एंकर और सियासी एक्टर (विजयवर्गीय) के बीच का अंतर समझ आता है। एंकर की औकात तो एंकर की ही है मगर कैलाश विजयवर्गीय की औकात जनता से भीख में मिली है।
सियासी भूमिका में मौजूदा नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह बात समझनी चाहिए कि उन्हें यह हैसियत उनके किसी महान योगदान के लिए नहीं मिली। उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी है। उन्होंने देश के लिए कोई आहुति भी नहीं दी है। वे शिक्षा और ज्ञान के इतने योग्य व्यक्ति भी नहीं कि उन्हें राजकीय पद मिल सके। उन्हें यह औकात उस जनता ने दी है जो अपने हकों की लड़ाई नहीं लड़ पाती। उसने उनको विधि और संविधान के दायरे में काम करके यथोचित सुविधाएं दिलाने के लिए नेता बनाया है। बहराल, कैलाश विजयवर्गीय यह नहीं समझ पाएंगे क्योंकि उनकी औकात कुछ समझने वाली नहीं है मगर भाजपा के शीर्ष नेताओं से तो उम्मीद की जाती है कि वे संस्कारों और सिद्धांतों पर कायम रहें। दुख तब हुआ, जब भाजपा की ओर से ऐसा कुछ नहीं किया गया कि उसे वह संस्कारों वाला सियासी दल कहा जा सके, जिसकी परिकल्पना संघ ने की थी। हमें बहुत अच्छा लगा जब महाराष्ट्र के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री नारायण राणे ने अपने विधायक पुत्र की गलती पर खुद भी माफी मांगी और बेटे से भी माफी मांगने को कहा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी बड़प्पन का परिचय दिया। उन्होंने छोटी बात करने के बजाय लोकसभा चुनाव में हार को लेकर अपना इस्तीफा दे बड़ी लकीर खींची। निश्चित रूप से उनका यह कदम देश को आजादी दिलाने वाली कांग्रेस के लिए गुणवत्तापरक होगा। राहुल को भी बतौर सांसद एवं नेता के रूप में सीखने और जमीनी हकीकत से रूबरू होने का मौका मिलेगा। वहीं, भाजपा के नेताओं ने हाल के सालों में मिली जीत से सबक लेने के बजाय सिर पर घमंड को सजा लिया है। वे भूल रहे हैं कि इस देश को आजादी दिलाने से लेकर बनाने तक में कांग्रेस का योगदान रहा था मगर जब उसके नेताओं में घमंड आया तो जनता ने उन्हें इस योग्य भी नहीं छोड़ा कि नेता प्रतिपक्ष का दर्जा पा सकें। लोकतंत्र में औकात सिर्फ जनता की होती है। जनता ही जनार्दन है, यह बात सभी कहते भी हैं मगर इसे वास्तव में अमल में लाने से ही कोई सार्थकता निकलेगी।
भाजपा पर जनता ने यकीन किया है। उन्हें बड़ा सत्तारूढ़ दल बनाया है। नरेंद्र मोदी को निर्विवादित रूप से सबसे बड़े नेता की तरह खड़ा किया है। अब जिम्मेदारी भाजपा और उनके नेताओं की है कि वे बड़े बनें, न सिर्फ पद के कारण बल्कि अपने व्यक्तित्व और आचरण के कारण। वे खुद को खुदा बनाने की कोशिश न करें बल्कि वास्तविकता में मानवता, ज्ञान और सर्वजनहिताय पर काम करने की सोचें, जिससे वे लंबे समय तक टिक सकें। यही देश, समाज और उन नेताओं के लिए भी हितकर होगा, नहीं तो न जाने कितने आए और चले गए, उनका कोई अस्तित्व भी शेष नहीं रह गया।
जय हिंद!
अजय शुक्ल
ajay.shukla@itvnwtwork.com
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)