नई दिल्ली। व्यापारियों की संस्था कॉन्फेडरेशन आॅफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आॅनलाइन कंपनियों पर आरोप लगाया है कि उनके कारण दिल्ली के बाजार सूने पड़े हैं। ज्यों ज्यों दिवाली का त्योहारी सीजन नजदीक आ रहा है त्यों त्यों दिल्ली के व्यापारियों की इस सीजन में अच्छा व्यापार करने की आशा धूमिल होती जा रही है क्योंकि बाजारों में ग्राहकी बेहद कम है और व्यापारियों के पास सामान के स्टॉक का अंबार लगा हुआ है।
एक तरफ व्यापारियों के व्यापार पर आॅनलाइन व्यापार की मार पड़ पर रही है तो दूसरी ओर बाजार में नगद तरलता के बेहद अभाव है। इस स्तिथि को देखते हुए दिल्ली के सभी बाजारों में बेहद निराशा का माहौल है, त्योहारी बिक्री की कोई गहमा गहमी नहीं है और त्योहारों के होते हुए भी सभी प्रमुख खुदरा एवं थोक बाजार पूरी तरह सुनसान पड़े हैं। उधर दूसरी तरफ सीलिंग पर बनी मॉनिटरिंग कमेटी से सीलिंग का साया भी व्यापारियों पर बुरी तरह मंडरा रहा है, जिसने दिल्ली के सदियों पुराने व्यापारिक वितरण स्वरुप की चूलें हिला कर रख दी हैं।
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बाजारों की वर्तमान स्तिथि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा की दिल्ली के बाजारों में व्यापार का सबसे ज्यादा नुक्सान विभिन्न ई कॉमर्स कंपनियों ने लागत से भी कम मूल्य पर माल बेच कर और भारी डिस्काउंट देकर उपभोक्ताओं को बाजारों से दूर कर दिया है। ये कंपनियां सीधे तौर पर केंद्र सरकार की एफडीआई नीति का खुला उल्लंघन करते हुए सरकार की नाक के नीचे धड्डले से माल बेच रही हैं और अनेक बार सबूतों के साथ शिकायत करने के बावजूद भी अभी तक सरकार ने इन कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है जिससे इन कंपनियों के हौंसले बुलंद हो गए है और पिछले सप्ताह ही एक फेस्टिवल सेल लगाने के बात ये कंपनियां अब एक बार फिर 12 अक्टूबर से फेस्टिवल सेल का दूसरा चरण शुरू कर रही हैं जो व्यापारियों की बची खुची आशाओं पर भी पानी फेर देगा।
पहली फेस्टिवल सेल के बाद इन कंपनियों ने अपनी बिक्री में 75 प्रतिशत के इजाफे और लगभग 50 प्रतिशत नए कस्टमर होने का दावा भी किया है। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 500 करोड़ रुपये का कारोबार होता है और आॅनलाइन कंपनियों के कारण दिल्ली के विभिन्न बाजारों के व्यापारियों की बिक्री में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट हुई है। अगली फेस्टिवल सेल के बाद ये आंकड़ा 50 से 60 प्रतिशत हो सकता है जो दिल्ली के सदियों पुराने व्यापार के लिए एक बड़ा धक्का साबित होगा।