देश की बेटियों का नाम रोशन किया है। ऐसी खबरों का सिलसिला आना लगातार जारी है।अब मध्य प्रदेश की रहने वाली आंचल अपनी प्रतिभा के दम पर वायुसेना में भर्ती हुई है। आंचल के पिता सुरेश गंगवाल मध्य प्रदेश के नीमच में चाय की दुकान लगाते हैं।राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर आंचल की प्रशंसा करते हुए बधाई दी है। आंचल अब वायुसेना में फाइटर प्लेन उड़ाएगी। इस खबर से पूरे राज्य में खुशी का माहौल है। किसी भी बाप की तपस्या तब सफल होती है जब उसके बच्चे कामयाब हो जाए और खुशी का मजा सौ गुणा हो जाता है जब किसी गरीब का बच्चा इतिहास लिखता है। चूंकि उनको उतनी सुविधाएं प्राप्त नही होती जितना अमीरों के बच्चों को मिलती हैं। चूंकि आंचल जैसे बच्चों का बेहद सीमित साधनों के साथ जीवन निर्वाह होता है। कई बार आर्थिक तंगी बडी चुनौती बन जाती है जिससे कई मोड पर मनोबल टूटता है लेकिन जब कोई इंसान कामयाब होने की ठान लेता है तो वह उसको अंजाम देकर की मानता है।
कई बार हमारे समक्ष ऐसी कहानियां आ जाती हैं जो किसी फिल्मी स्टोरी से कम नही होती और शायद यही कारण है कि आजकल फिल्म जगत भी संघर्ष करने वालों की जिंदगी की सच्चाई पर्दे पर उतार रहा हैं। दिलचस्प बात यह है कि दर्शक भी ऐसी फिल्मों को खूब पंसद कर रहे हैं। मिल्खा सिंह पर आधारित ‘भाग मिल्खा भाग’ और गीता व बबीता फोगाट पर ‘दंगल’ जैसी फिल्मों ने करोड़ो का बिजनेस किया। यह बात सौ फीसदी सच है कि जो डटा नही,वो लड़ा नही और जो लड़ा नही जीता नही। शिक्षा की सबसे अहम विशेषता यही है कि जो धरातल पर उतरकर मेहनत करता है विजय उसे ही प्राप्त होती है। आज हमारे पास तमाम ऐसी कहानियां हैं जो पुरी दुनिया में मिसाल के लिए काम करती है। और जो लोग सुविधाओं के अभाव का हवाला देते हुए कामयाब नही होते, उनके मुंह पर यह चाटा माना जाएगा। इस बेटी की कहानी से कई तरह की प्रेरणा मिलती है। यदि इंसान किसी भी काम करने की सोच लेता है तो उसे पूरा करने से कोई नही रोक सकता साथ ही परिवार की भी प्रशंसा करनी होगी चूंकि हमारी जीत या हार का श्रेय परिवार को जाता है।
आंचल जैसे प्रतिभाशाली बच्चों ने दुनिया को यह समझाया है कि मेहनत के आगे कुछ नही टिकता। यदि देश की ऐसी बेटियों बात की जाए तो पिछले कुछ दिनों से ऐसी बच्चियां दुनिया के लिए मिसाल बनती जा रही हैं। विगत दिनों ऐसा ही एक मामला हरियाणा के छाजपुर गांव की एक लड़की का सामने आया था। यह इस गांव की यह पहली ऐसी बेटी है जिसने सैन्य वर्दी पहनी है। मिथलेश की भी दिलचस्प कहानी फिल्मी स्टोरी से प्रेरित लगती है।गरीबी के कारण आठवीं कक्षा तक पढाई करने वाली इस बेटी ने पढ़ाई छोड़कर पशुओं का चारा डालना और उपले बनाने के साथ पूर्ण से एक आम जिंदगी जीना शुरु कर दिया था। लेकिन कुछ समय पहले गांव के किसी जानकर ने ताना मारते हुए कहा ‘ऐसी लड़कियों का कोई भविष्य नही होता यह तो अनपढ है और हमेशा ऐसे ही रहेगी और गोबर ही उठाएगी।‘
यह बात मिथलेश को इतनी चुभी कि उसने अपनी जिंदगी ही बदल डाली। मिथलेश का बड़ा भाई जूडो खेलता था और मिथलेश ने अपने लिए समय निकाला और उससे जूडो सीखे। थोडा समय बीतने के बाद मिथलेश एक प्रोफेशनल खिलाडी के रुप में तैयार हुई और जिंदगी के असली खेल को शुरु करते हुए खेलना शुरु किया। लगातार छोटे खिताब जीतते हुए बड़ी छलागं लगाई और राष्ट्रीय स्तर के मेडल जीते इसके बाद आज वो खेल कोटे से सीमा सुरक्षा बल में भर्ती हो गई।
ऐसी ही एक और खबर जम्मू के राजौरी जिले के धनोर गांव से आई थी। इस गांव रहने वाली इरम शमीम को 2019-20 की जिला राजौरी के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान का ब्रांड अंबेसडर बनाया गया है। इरम ने एम्स की प्रवेश परीक्षा में भाग लिया और इस परीक्षा को बेहद अच्छे नंबरो से पास किया जिसके लिए उन्हें केन्द्र सरकार ने एक लाख रुपये की आर्थिक मदद देकर हौसला भी बढ़ाया । इरम अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली में चिकित्सा अध्ययन के लिए चुनी गई थी। जब यह पता चला कि इरम की मां एक आंगनबाड़ी में कर्मचारी हैं तो मामला और भावनात्मक हो गया व इस प्रकरण की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इरम ने यह परीक्षा बिना किसी कोचिंग व किसी प्रकार टयूषन के उत्तीर्ण की है। इरम के लिए बेहद अधिक प्रशंसा की बात यह है कि जिस क्षेत्र में रहकर उन्होनें यह उपलब्धि हासिल की है वहां के अधिकतर लोग पढ़ाई लिखाई को ज्यादा गंभीरता से नही लेते। इसके अलावा भी तमाम ऐसे उदाहरण है जिससे हमें प्रेरित होकर बेटियों का आगे बढाना चाहिए जिससे वह परिवार व देश का नाम रोशन करें। जो लोग बेटा व बेटी फर्क समझते हैं उनको यह समझना चाहिए कि आज हर क्षेत्र में बेटियां नाम रोशन कर रही है इसलिए उनके पंखों को उडान भरने दें।
योगेश कुमार सोनी