मनोज जोशी:
आम तौर पर देखा गया है कि कॉन्टैक्ट स्पोर्ट्स में खिलाड़ी विपक्षी के खेल भावना के विपरीत काम करने पर आक्रामक या यह कहिए कि बदला लेने के लिए उतारू हो जाते हैं लेकिन रवि दहिया इन सबसे अलग हैं। कजाकिस्तान के पहलवान ने बाजी हाथ से निकलने से पहले रवि की बाजू पर काटा जिससे वह बड़ी मुशिक्ल से खुद को बचा पाये लेकिन इस बारे में रवि का कहना है कि वह मेरा अच्छा दोस्त है। वह भी मेरी तरह वहां जीतने आया था। बहुत बड़े आयोजन में ऐसा हो जाता है और मुझे उसका कोई मलाल नहीं है।
रवि ने वर्ल्ड अंडर 23 में सिल्वर, वर्ल्ड चैम्पियनशिप में दो साल पहले ब्रॉन्ज मेडल जीतकर ओलिम्पिक कोटा हासिल किया था। दो बार लगातार एशियाई चैम्पियनशिप का गोल्ड जीता। कोलम्बिया और बुल्गारियाई पहलवान को उन्होंने तकनीकी दक्षता के आधार पर हराया। ैमेरी अच्छी प्रैक्टिस थी। मुझे इस बात का यकीन था कि पहले अंक लेने पर मुकाबले के आगे की राह आसान हो जाएगी। कजाकिस्तान के पहलवान के खिलाफ एक समय मैं पिछड़ता चला गया था लेकिन उसके बाद मेरा दाव सटीक बैठा और मैंने उसे चित पट के आधार पर हरा दिया। क्या फाइनल में रशियन पहलवान के हाथों वर्ल्ड चैम्पियनशिप के सेमीफाइनल में मिली हार का कोई डर मन में था। रवि ने कहा कि नहीं वो भी एक खिलाड़ी है। वह भी मेरी तरह जीतने के उद्देश्य से आया था। उसकी ट्रेनिंग मुझसे अच्छी थी जिससे उसने मुझे हराया। इसके अलावा 2015 में इंजरी की वजह से अगले दो तीन साल उनके बुरी तरह प्रभावित हुए लेकिन इंजरी से पूरी तरह उबरने के बाद रवि ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब वह अपने ओलिम्पिक पदक का रंग पेरिस में बदलना चाहते हैं लेकिन इससे पहले इस साल विश्व चैम्पियनशिप और अगले साल एशियाई खेल और कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतना उनका सबसे बड़ा उद्देश्य है।
रवि ने पीडब्ल्यूएल से मिले अनुभव की सराहना करते हुए कहा कि ज्यादा से ज्यादा एक्सपोजर मिलने से ही इस बात का पता चलता है कि आप कहां स्टैंड करते हैं। पीडब्ल्यूएल के जरिये हमें अपनी तैयारियों का और अपनी मौजूदा स्थिति का जायजा लेने में मदद मिली। इसके अलावा वह अपने परिवार को भी बड़ा श्रेय देते हैं। मेरे पिता कई बार सोनीपत के नाहरी गांव से छत्रसाल स्टेडियम मेरी तैयारी देखने आते थे। उनका एक ही सपना था कि मैं देश का नाम रोशन करूं।
रवि अपनी कामयाबी में छत्रसाल स्टेडियम का भी बड़ा योगदान मानते हैं। जब सुशीलजी का ओलिम्पिक मेडल आया तो हम बहुत छोटे थे। उससे अगले ओलिम्पिक में जब सुशील और योगेश्वर का पदक आया तो वह एक बहुत बड़ी प्रेरणा थी। यहां हम सुबह साढ़े चार बजे उठते हैं। पांच बजे क्लास होती है। आठ से नौ बजे तक प्रैक्टिस करते हैं। दोपहर में आराम करके शाम को पांच बजे से दोबारा ट्रेनिंग शुरू हो जाती है जो करीब साढ़े सात से आठ बजे तक चलती है। हमारा प्रैक्टिस का कार्यक्रम कोच तय करते हैं। हम उसके हिसाब से चलते हैं। एयरफोर्स में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय पहलवान अरुण रवि को पर्सनल कोच की तरह कुश्ती के गुर सिखाते हैं। कड़ी मेहनत से उसका स्टेमिना बना है जो उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उसकी सबसे बड़ी ताकत है। उन्हें खुशी है कि अब उन्होंने अपने डिफेंस में भी काफी सुधार कर लिया है। छत्रसाल स्टेडियम के कोच अनिल मान का कहना है कि उसकी सादगी और अनुशासन उसकी सबसे बड़ी ताकत है। यही वजह है कि वह सभी एज ग्रुप मुकाबलों से ओलिम्पिक तक कामयाबी हासिल करता गया। इसी केंद्र के कोच ललित का कहना है कि रवि का पदक टीम वर्क का बड़ा उदाहरण है। हम इसे विपक्षी के खिलाफ कैसे रणनीति बनानी है, उस पर काम करते हैं। अंतरराष्ट्रीय पहलवान पवन का कहना है कि अब इसकी झिझक खुल गई है। देखना अब इसके लिए अगले साल होने वाले एशियाई खेल और कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतना कितना आसान हो गया है। वह सब अनुभव इसके पेरिस में होने वाले ओलिम्पिक में भी काफी काम आएंगे। इसी अखाड़े से जुड़े जयवीर ने कहा कि हमने रवि के वजन पर भी काम किया। सतपालजी और सुशीलजी जो गाइडलाइंस देते थे, उसके हिसाब से हमने अपनी ट्रेनिंग को अंजाम दिया। पूर्व एशियाई चैम्पियन अमित धनकड़ ने कहा कि उनके पदक से युवा पीढ़ी प्रेरित होगी वहीं सुपर हैवीवेट वर्ग के अंतरराष्ट्रीय पहलवान सत्येंद्र ने कहा कि रवि की कामयाबी छत्रसाल स्टेडियम से जुड़े हर व्यक्ति के लिए फख्र की बात है। अब यहां से कई और प्रतिभाएं आपको अगले वर्षों में ऐसा प्रदर्शन करती दिखाई देंगी।