यह चैम्पियनशिप टोकियो ओलिम्पिक का पहला क्वॉलिफाइंग मुकाबला होगा। यहां ओलिम्पिक वजनों में मेडल राउंड में पहुंचने से ही टोकियो का टिकट कट जाएगा लेकिन दुनिया भर के कुश्ती प्रेमियों को खासकर बजरंग और विनेश से पदक की उम्मीद है। बजरंग से तो गोल्ड मेडल से कम किसी को मंजूर नहीं है। सुशील आज टॉप 20 में भी जगह नहीं बना पाये हैं और न ही वापसी के बाद किसी बड़ी प्रतियोगिता में ही उनके हाथ कोई मेडल हाथ लगा है। पिछले दिनों उज्बेकिस्तानी पहलवान बेकजोद ने उन्हें डेढ़ मिनट में ही रौंद दिया था। महिलाओं में सीमा के पास भारतीय महिला दल में सबसे ऊंची तीसरे नम्बर की रैंकिंग है। इस साल इटली में सासारी कप और यासर डोगू टूनार्मेंट में गोल्ड और स्पेन ग्रां प्री में सिल्वर मेडल जीतकर उन्होंने फोगट बहनों की गैर मौजूदगी का भरपूर फायदा उठाया है। उनके अपने प्रदर्शन में भी काबिलेगौर सुधार देखने को मिला है। फिलहाल वह भी इन दिनों रूस में अभ्यास में जुटे हुए हैं।
57 किलो में पूजा ढांडा छठे नम्बर की रैंकिंग होने के बावजूद 59 किलो में लड़ने को विवश हैं क्योंकि वह ट्रायल में इस वजन में सरिता से हार गई हैं। इन्हीं पूजा ढांडा ने पिछले साल इसी चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था। वहीं सरिता की 59 किलो में छठी रैंकिंग है लेकिन वह 57 किलो में एक नई चुनौती के तौर पर उतर रही हैं।
शनिवार को पहले दिन चार ग्रीकोरोमन के भारतीय पहलवान उतरेंगे। मंजीत 55 किलो में, सागर 63 किलो में, योगेश 72 किलो में और हरप्रीत 82 किलो में अपनी चुनौती रखेंगे। एशियाई खेलों में हरप्रीत 87 किलो में उतरे थे। उन्होंने ओलिम्पिक क्वॉलीफाई करने से ज्यादा पदक जीतने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है। मंजीत ने इस साल तिबस्ली (जॉर्जिया) और मिंस्क (बेलारूस) में पदक जीतकर उम्मीदें जगाई हैं। वहीं योगेश को भी आखिरी बाधा में पदक से दूर होने की कमजोरी का निदान ढूंढना होगा। भारतीय टीम के चीफ कोच हरगोविंद ने कहा कि यहां प्रतियोगिता का स्तर काफी ऊंचा है लेकिन पहलवानों ने हाल में वह कर दिखाया है, जो पहले कभी देखने को नहीं मिला है। हरगोविंद 2000 के ओलिम्पिक में भारतीय ग्रीकोरोमन टीम के साथ सिडनी गये थे।