Officer made disaster an opportunity to earn! आपदा को कमाई का अवसर बनाते अफसर!

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कोरोना संकट के शुरू होने के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से आान करते हुए कहा था कि हमें आपदा को अवसर में बदलना है। प्रधानमंत्री के इस एलान पर कम से कम यूपी के अफसरों ने पूरा अमल किया है। महामारी के इस दौर में राहत के नाम पर यूपी के तमाम जिलों में अफसरों ने भ्रष्टाचार के रिकार्ड बना सचमुच आपदा को अपने लिए सुनहरे अवसरों में बदल दिया है।
विपक्ष ही नही सत्ता पक्ष भी कोरोना संकट के दौरान प्रदेश के जिले जिले में हुयी सरकारी लूट के विरोध में आवाजें उठा रहा है। सबसे पहले कांग्रेस महासाचिव प्रियंका गांधी और अब आम आदमी पार्टी सासंद संजय इस भ्रष्टाचार के खिलाफ हमलावर हुए। सरकार के सामने सबसे बड़ा संकट उसके अपने विधायकों की जगह जगह से उठने वाली विरोध की आवाजें हैं जो इस लूट के खिलाफ आम जन तक पहुंच रही  हैं। संकट काल में ही बरेली नगर निगम में स्मार्ट सिटी के काम आवंटन में धांधली की शिकायत को लेकर भाजपा के मेयर ने मुख्यमंत्री तक से शिकायत की। हालांकि उनकी शिकायत को भी दरकिनार करते हुए अफसरों ने अपनी मनमर्जी ही चलाई।
ताजा मामला सत्ता पक्ष के एक विधायक ने उठाते हुए कहा है कि झाँसी में कोविड के नाम पर बड़ी धांधली हुई है और मास्क और सैनिटाइजर व आॅक्सीमीटर की खरीद  में धांधली का आरोप लगाया है।  भारतीय जनता पार्टी के गरौठा विधायक जवाहर लाल राजपूत ने आरोप लगाया है।  विधायक ने घोटाले की जांच कराने की मांग को लेकर अफसरों को और सरकार को चिट्ठी भी लिखी है।  चिट्ठी में लिखा गया है कि जिला और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों ने कोविड खरीद वितरण में धांधली की है। विधायक ने चिट्ठी में आरोप लगाया है कि देहात क्षेत्रों में सैनेटाइजेशन का काम कराए बिना भुगतान करा दिया गया। विधायक का कहना है कि उन्होंने इस संबंध में चिट्ठी लिख कर इस मामले की जांच कर कारवाई की मांग की है। सुल्तानपुर के लंभुआ के भाजपा विधायक देवमणि एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ कुछ नहीं कहा है लेकिन कोविड सर्वे में घोटाले की बात उजागर की है। उन्होंने सुल्तानपुर जिलाधिकारी के खिलाफ शासन स्तर पर शिकायत की है कि उन्होंने कोविड सर्वे में किट खरीद को लेकर घोटाला किया है। उनकी शिकायत के बाद जांच के आदेश का पत्र वायरल होते ही जिले में हड़कंप मच गया। डीएम इंदुमति ने मामले पर सफाई देते हुए लेटर जारी करते हुए मामले में भुगतान पर रोक और जांच के आदेश दिए हैं। इसी मुद्दे को लेकर आप सासंद संजय सिंह ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए सीबीआई जांच की मांग करते हुए पत्र लिखा है।
लंभुआ विधायक देवमणि द्विवेदी ने सुल्तानपुर की डीएम इंदुमणि पर आरोप लगाया है कि कोविड सर्वे के दौरान खरीदी जाने वाली  2800 की किट 9950 रुपए में खरीदी गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि ग्राम पंचायतों में शासनादेश है कि 2800 रुपये में किट खरीदी जाए, लेकिन इसके स्थान पर डीएम ने 9950 रुपये में यह किट खरीदने के लिए गांव की पंचायतों पर दबाव बनाया। इतना ही नहीं सप्लाई करने वाली फर्म को भुगतान भी कराने का आरोप भी विधायक ने डीएम पर लगाया है। फिलहाल इस पर मामले पर शासन स्तर से जांच का आदेश हो गया है जबकि सोमवार प्रदेश सरकार ने सुल्तानपुर और गाजीपुर के जिला पंचायती राज अधिकारियों को खरीद में गड़बड़ी का दोषी पाते हुए निलंबित भी कर दिया है। मतलब, जब घोटाले की लिखित शिकायत सीबीआई तक पहुंच गई तब जिलों में धांधली करने वाले अफसरों की आंखें खुली और लखनऊ में बैठे अफसरों की ओर से उन्हें कहा गया कि फौरन कार्रवाई करते हुए कुछ लोगों को दंडित किया जाए।
जाहिर है, बड़ी मछलियां फिलहाल बचाई जा रही हैं और निचले स्तर के अधिकारी सांकेतिक तौर पर नापे जा रहे हैं  । लेकिन इतना तो साफ है की जीरो भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली योगी सरकार के अफसरों में इस आपद काल में भ्रष्टाचार तो किया हीहै । इतना ही नहीं , राज्य मुख्यालय स्तर पर सरकारी दवाओं और उपकरणों की खरीद करने वाले कारपोरेशन की कार्यशैली पर भी तमाम सवाल उठाए गए हैं। इसके पहले श्याम प्रकाश विधायक हरदोई, सीतापुर विधायक राठौर और सत्तारूढ़ दल के कई अन्य विधायक भी कोविड-19 में अफसरों की लूट का मुद्दा उठा चुके हैं। विधायकों का कहना है कि प्रधानमंत्री के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आपदा को अवसर के तौर पर बदल कर देश में श्रेष्ठ कार्य किया है और यूपी के अफसर वाकई आपदा में माल कमाने का अवसर तलाशते नजर आए हैं। पहले भी उत्तर प्रदेश में गोपामऊ विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक श्याम प्रकाश ने भ्रष्टाचार को लेकर अपनी ही सरकार पर सवाल उठाए थे और कहा था कि राजनीतिक जीवन में इतना भ्रष्टाचार आज तक नहीं देखा है। हालांकि ज्यादा बवाल मचने उन्होंने अपनी पोस्ट डिलीट भी कर दी थी। विधायक ने अपनी फेसबुक आईडी पर लिखा था कि मैंने अपने राजनीतिक जीवन में इतना भ्रष्टाचार नहीं देखा, जितना इस समय देख और सुन रहा हूं. जिससे शिकायत करो, वह खुद वसूली कर लेता है. बाद में ज्यादा बवाल मचने पर उन्होंने अपनी पोस्ट डिलीट कर दी थी।  पोस्ट डिलीट करने के बाद उन्होंने लिखा, मैंने हरदोई में कुछ अधिकरियों के भ्रष्टाचार की बात लिखी, लोग उसे सरकार में भ्रष्टाचार कहने लगे, इसलिए पोस्ट डिलीट कर दी।
विधायक श्याम प्रकाश ने ऐसा पहली बार नहीं किया है। इससे पहले भी वह सरकार और तंत्र के साथ ही अधिकारियों के खिलाफ सोशल मीडिया के माध्यम से हमला बोल चुके हैं। उन्होंने फेसबुक को ही अपनी बात रखने का जरिया बनाया है. फेसबुक पर विधायक की पोस्ट से विपक्षी दलों को सरकार के खिलाफ बोलने का मौका जरूर मिल गया है। कोरोना संकट में लाकडाउन के ही दौर में बहराइच के भाजपा विधायक सुरेश्वर जो लंबे समय से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे हैं, ने सरकारी मंडियों में छोटे किसानों से हो रही लूट को भी सरेआम सड़क पर चिल्ला चिल्ला कर उजागर किया था। उन्होंने अधिकारियों की मौजूदगी में कहा था कि सब्जी किसानों से टैक्स माफ होने के बावजूद 6 फीसदी कर वसूला जा रहा है जो आढ़ती और अधिकारी जेब में रख रहे हैं। विधायक ने कहा था कि सरकारी मंडी में अपनी सब्जी लेकर आने वाले किसान से आढ़ती 4 फीसदी और अधिकारी 2 फीसदी टैक्स लेकर अपनी जेब में रख रहे हैं। हाल ही में प्रदेश सरकार ने 40 तरह की सब्जियों व फलों को सभी तरह के मंडी टैक्स से मुक्त कर दिया है। कोरोना काल में ही सरकारी गेंहूं की खरीद पर भी लगातार राजनैतिक दल व जनप्रतिनिधि लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकारी खरीद की दर 1950 रुपये कुंतल होने के बावजूद ज्यादातर जिलों में किसान अपनी उपज बिचौलियों को 1300-1400 रुपये में बेंचने को मजबूर हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी हाल ही में इस मुद्दे को उठाया था। जून के ही महीने में प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग में पीपीई किट से लेकर मास्क तक की खरीद में हुआ घोटाला सामने आया था।
कुल मिलाकर कोरोना संकट में लगातार बेहतर काम करने के नाम पर अपनी पीठ ठोंक रही यूपी सरकार के लिए विपक्ष से ज्यादा अपने ही मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। अभ तक प्रदेश में सत्तापक्ष के एक दर्जन विधायक अपने अपने क्षेत्रों में हो रहे भ्रष्टाचार की कहानी सार्वजनिक कर चुके हैं। जानकार बताते हैं कि दो महीने पहले खुद मुख्यमंत्री कार्यालय ने जब विधायकों को फोन कर राहत कार्यों के बारे में फीडबैक तब भी बड़ी तादाद में लोगों ने भ्रष्टाचार का रोना रोते हुए अपनी कहीं सुनवाई न होने की बात बताई थी।
कोरोना काल में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायतें सरकार के साथ ही भाजपा संगठन के पास भी ढेरों की संख्या में पहुंचाई जा रही हैं।
पार्टी कार्यकत्तार्ओं का कहना है कि तमाम मोर्चे पर बेहतर काम करने के बाद भी अफसरों की मनमानी और लूट उन्हें चुनावी मोर्चे पर भारी पड़ सकती है।

हेमंत तिवारी
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अघ्यक्ष हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)