वन्दनीय माँ के चरणों में अर्पित
( *माँ तृप्ति का सागर है।*)
करुणामयी,ममतामयी,
जननी विश्व प्रकाशिनी।
अदम्य सृष्टि प्रहर्षिका,
वात्सल्य मणि कामायनी।।
आभा अपरिमित मातुके,
तू ही सृष्टि रचनाकर है।।
*माँ तृप्ति का सागर है।*
गंग सम माँ उज्जवला,
कमला कला तू निर्मला।
दिव्य रुप अलंकृता।
तपस्वनी काहलकला।।
अनुपम विशेषण संयुक्ता,
माँ सर्व सुख सागर है।
*माँ तृप्ति का सागर है।*
स्वर्ग सम तेरे चरण,
भगवद्रुप महेश्वरी माँ।
जन्मदात्री भू वंदिनी ,
शक्ति रुप श्रद्धेश्वरी माँ।।
मूक प्रेम करुणाकर है।
*माँ तृप्ति का सागर है।*
निस्वार्थ प्रेम की अद्भुत रचना,
ममत्व त्याग विपुल संरचना।
गरल काव्य नव छन्द कल्पना,
मात प्राण प्रण दिव्य अर्चना।।
भाव पूर्ण मधु रस गागर है।।
*माँ तृप्ति का सागर है।*
धीरज ,धर्म,त्याग की मूर्ति,
माँ है भाग्य रूप सत्कीर्ति।।
अमिय प्रीति से पूर्ण विधा माँ,
संतति की है प्राण सुधा माँ।।
अतुल स्नेह की भवसागर है।
*माँ तृप्ति का सागर है।*
स्वर्ण सी मन कंचना हो।
वात्सल्य की अति व्यंजना हो
तुच्छ है माँ स्वर्ग-सुख भी।
निश्छल प्रीत की साधना हो।।
माँ ही शाश्वत गुण आगर है।
*माँ तृप्ति का सागर है।*
✍आशा त्रिपाठी