(Nuh News) नूंह। विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर मुस्लिम बाहुल्य नूंह विधानसभा में इन दिनों सरगर्मियों का दौर जारी है। इस सीट से आज तक कोई हिन्दु विधायक बनकर चण्डीगढ नहीं पहुंच सका है और भाजपा कभी कमल नहीं खिला सकी है।हांलाकि, वर्तमान में राज्यमंत्री व भाजपा के सोहना से विधायक कुंवर संजय सिंह अपनी किस्मत आजमाने के लिए इस सीट से भाजपा की टिकट पर 2014 में कूदे थे लेकिन मोदी लहर में भी उनको कांग्रेसी से हार का सामना देखना पड़ा। विधानसभा पर अकसर दो ही परिवार का कब्जा रहा है और अदल-बदल कर यहां इन परिवारों के लोग जीतते आये हैं। हांलाकि, 2004 में कांग्रेस की आंधी में निर्दलीय हबीर्बुरहमान ने कांग्रेसी प्रत्याशी रहे आफताब अहमद को हरा दिया था। इससे इन दोनों परिवारों को भी हराया जा सकता है कि बात आगे बढ़ी और कई नेताओं ने इन दोनों परिवारों के खिलाफ मोर्चा खोला।
वर्तमान में तीसरा मोर्चा भी इसी नीति को लेकर आगे बढ़ रहा है
वर्तमान में तीसरा मोर्चा भी इसी नीति को लेकर आगे बढ़ रहा है। इसी सीट की स्थिति देखे तो 2014 में इनेलो के प्रत्याशी जाकिर हुसैन ने नूंह विधानसभा का रूख करते हुए कांग्रेस सरकार में परिवहन मंत्री रहे आफताब अहमद को हराकर चंडीगढ पहुंचे, लेकिन केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकार आने व इनेलो के टूटने के बाद उनकी नजदीकिया भाजपा की तरफ बढ़ गई और 2019 के चुनाव में उन्होंने भाजपा का दामन थामते हुए चुनावी मैदान में कूदे परन्तु कांग्रेस की टिकट पर आफताब अहमद ने भाजपा के कददावर प्रत्याशी जाकिर हुसैन को हराकर चुनाव जीता था। विपक्ष में बैठते हुए जाकिर हुसैन भाजपा की नीतियों को नूंह में आगे बढ़ाते रहे लेकिन इस बीच नूंह दंगों की आंच नूंह के अमन शांति व भाईचारे पर पड़ी कथिततौर से इससे कांग्रेसियों का नाम इन दंगों में आने के बाद मेवात में कांग्रेस की तरफ एक समुदाय के लोग आकर्षित हो गये जिससे भाजपा, इनेलो,जजपा आदि दलों के वोट बैंक भी खिसक कर कांग्रेस की झोली में जा गिरा और लोकसभा 2024 के चुनाव में मेवात की तीनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी को बढत हांसिल हुई।
कांग्रेस को रोकने के लिए भाजपा, इनेंलो-बसपा गठबंधन, जजपा-एएसपी गठबंधन, आप आदि दलों के नेता अपनी रणनीति बनाये हुए हैं
इस बार विधानसभा चुनाव 2024 में नूंह सीट पर कांग्रेस की लहर साफ देखी जा सकती है और कांग्रेस को रोकने के लिए भाजपा, इनेंलो-बसपा गठबंधन, जजपा-एएसपी गठबंधन, आप आदि दलों के नेता अपनी रणनीति बनाये हुए हैं लेकिन राजनीतिक जानकारों की माने तो कांग्रेस के अभेद किला को भेदने के लिए अभी इनको काफी जोर लगाना होगा। इसका मुख्य कारण पार्टियों द्वारा टिकट वितरण में देरी है। भाजपा ,कांग्रेस सहित अन्य किसी भी दल ने प्रत्याशी मैदान में नही उतारे हैं जबकि कांग्रेसी विधायक व सीएलपी के उप नेता रोज अपनी जनसभाओं के जरिये वोटरों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं और उनको टिकट मिलना तय माना जा रहा हैं, अन्य दलों के नेता टिकट को लेकर ऊह पोह की स्थिति में हैं।
नूंह शहर का वोटर हमेंशा से ही कांग्रेस व भाजपा में आधा बंटा रहता है और इस बार भी शहरी वोटर का रूख साफ देखा जा सकता हैं और वह फिल्हाल कांग्रेस की ओर आकर्षित हो रहा हैं। लेकिन चुनाव को कभी भी हल्का में नही लेना चाहिए और चुनाव रात-रात में बदल जाता है। पाल-गोत्र की राजनीति नूंह विधानसभा में हावी रहती है और चुनाव अगर पाल व गोत्र पर आ गया तो जिसकी पाल व गोत्र के मतदाता अधिक हैं वह जीत का स्वाद चख सकता हैं। जो दल अपने को मजबूत मानकर चल रहा है वह हार का स्वाद भी चख सकता है। हांलाकि, जिला की पुन्हाना, फिरोजपुर झिरका सीटों से भी आज तक कमल नहीं खिल सका हैं।