(Nuh News) नूंह। जिला में सोमवार को सोमोती अमावस्या(कुशाग्रहणी पिठोरी अमावस्या)े पर्व धूमधाम से मनाया गया। लोगों ने घर में पूजन कर अपने पितृों के अलावा ईश्वर की भक्ति कर पुण्य कमाया। इस अमावश्या को सोमोती व कुशाग्रहणी पिठोरी अमावस्या भी कहते हैं। राजकुमार शास्त्री ने बताया कि हिंदू धर्म में अमावश्या विशेष महत्व रखती है। यह अमावस्या भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को आती है। सोमवार के दिन पडऩे वाली अमावस्या सोमवती अमावस्या कहलाती है, इससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन विशेष रूप से माताएं अपनी संतानों की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं।
मत्स्य पुराण के एक प्रसंग के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को पुन: स्थापित किया
इस अमावस्या का नाम कुशाग्रहणी इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन कुश नामक पवित्र घास का संग्रहण और पूजा का विशेष महत्व है।मत्स्य पुराण के एक प्रसंग के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को पुन: स्थापित किया। उसके बाद उन्होंने अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से बाल पृथ्वी पर गिरे और कुशा के रूप में बदल गए। इसके बाद कुशा को पवित्र माना जाने लगा। एक अन्य पौराणिक प्रसंग के अनुसार जब सीता जी पृथ्वी में समाई थीं, तो श्री रामजी ने जल्दी से दौड़ कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता जी के केश ही आ पाए।
यह केशराशि ही कुशा के रूप में परिणत हो गई। इसी तरह, अमावश्या को लेकर साप्ताहिक सत्संग हवन पंचगांव स्थित श्याम गौशाला में किया गया। आचार्य राजेश ने कहा हवन के तीन अर्थ होते हैं जिसमें देव पूजा संगतिकरण और दान। माता-पिता गुरु आचार्य अतिथि और परमात्मा यह हमारे साक्षात देवता हैं हमें इनका यथायोग्य सेवा और सम्मान करना चाहिए। लालचंद आर्य ने कहा अब अमावस्या के पावन पर्व पर लोग धार्मिक कार्य अनुष्ठान यज्ञ सत्संग और पितरों के लिए तर्पण करते हैं हवन सबसे उत्तम कर्म है इसको करने से व्यक्ति लोक और परलोक दोनों से पार हो जाता है।
इस अवसर पर यजमान की भूमिका प्रभात, गीतांजलि ने निभाईमदन मोहन कश्य, राजकुमार शास्त्री, सत्येंद्र, डीआईजी शिवराज मुख्य रूप से उपस्थित रहे।