(Nuh News) नूंह। जिला में एकादशी देवोत्थान की प्राचीन परम्परा अब गुजरे जमाने की बात हो गई हैं और इक्का-दुक्का जगहों पर ही यह पर्व महज औपचारिकता पूर्ण कर रहा हैं। जिला के बुजुर्गो की माने तो आधुनिकता की चकाचौंध ने इस पर्व को ग्रहण सा लगा दिया हैं।

यहां, यह बताना जरूरी है कि एकादशी देवोत्थान का पर्व के मौके पर घरों के आगे साज सज्जा करके रात को जमीन पर चौका लगाकर गन्ना और सिंगाड़े के अलावा शकरगंद, चौक पर रखकर खिचड़ी का भोग लगाकर देव जगाने की परम्परा चली आ रही हैं खासकर ब्रज चौरासी कोस की परीधि में ऐसी परम्परा की धूम रहती थी। इस पर्व पर कस्बा में किसान अपने खेतों से गन्ना काटकर कस्बा में दो दिन पहले से ही बिक्री कर देते थे, वहीं महिलाएं अपने मकान, आंगन में साफ-सफाई कर पूजा के लिए चौक आदि कर देव प्रतिमांए बनाती हैं, रात को देव पूजा में प्रचलित प्रार्थना में “उठो देव, बैठो देव, पंगुलियां चटकाओ देव, ब्याह करो, गांव करो,” प्रार्थनाओं की गूंज सुनाई देती थी। लेकिन आजकल की युवा पीढियां खासकर महिलाओं को सांस्कृतिक लोक गीत, नृत्य आदि तक नही आता हैं और वह मोबाईल के सहारे ही हर पर्व को मनाना चाहती हैं। ब्रज क्षेत्र की संस्कृति में दिन प्रतिदिन आ रही कमी के चलते ही आज संस्कृति का बोध कम हो रहा हैै।

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