(Nuh News) नूंह। नेता जी सुभाष चंद बोस द्वारा आजाद हिन्द फौज के 81वें स्थापना दिवस व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारी असफाक उल्लाह खां की जयंती पर उनको आयोजित कार्यक्रमों में याद किया गया। अखिल भारतीय जनसेवक समाज(पंजी0) के तत्वधान में राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ महाविद्यालय तावडू के प्रांगण में स्थित आजाद हिन्द फौज के स्वतंत्रता सेनानियों की यादगार में बना कीर्ति स्तम्भ पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रधान नम्बरदार सुरेन्द्र सिंह ने की।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेजों के खिलाफ लडऩे के 21 अक्तुबर 1943 में उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया था
जिला अध्यक्ष कामरेड काले खान ने कहा कि नेता जी सुभाष चंद बोस भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेजों के खिलाफ लडऩे के 21 अक्तुबर 1943 में उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया “जय हिन्द” का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। उन्होंने कई नारे दिए, जैसे कि “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” “दिल्ली चलो”, हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। इसी तरह, महान क्रान्तिकारी शहीद अशफाक उल्लाह खां की जयंती भी धूमधाम से मनाई गई कीर्ति स्तम्भ पर पुष्प अर्पित करते हुए वक्ताओं ने बताया कि उनका जन्म 22 अक्तुबर 1900 में ब्रिटेनिस भारत के शाहजहाँपुर में शफिकुल्लाह खान और मजरुनिस्सा के घर हुआ।
वर्ष 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने आन्दोलन वापस ले लिया
वो एक मुस्लिम पठान परिवार से संबंध रखते थे। वर्ष 1920 में महात्मा गांधी ने भारत में ब्रितानी शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। लेकिन वर्ष 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने आन्दोलन वापस ले लिया।इस स्थिति में अशफाक उल्लाह खां सहित विभिन्न युवा लोग खिन्न हुए। इसके बाद अशफाक उल्लाह खां ने समान विचारों वाले स्वतंत्रता सेनानियों से मिलकर नया संगठन बनाने का निर्णय लिया और वर्ष 1924 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया।अपने आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए, हथियार खरिदने और अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक गोलाबारूद इक_ा करने के लिए, हिन्दुस्तानी सोशिलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सभी क्रान्तिकारियों ने शाहजहाँपुर में 8 अगस्त 1925 को एक बैठक की।
एक लम्बी विवेचना के पश्चात् रेलगाडी में जा रहे सरकारी खजाने को लूटने का कार्यक्रम बना। 9 अगस्त 1925 को खान सहित उनके क्रान्तिकारी साथियों राम प्रसाद श्बिस्मिलश्, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, शचीन्द्रनाथ बख्शी, चन्द्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, बनवारी लाल, मुरारी शर्मा, मुकुन्दी लाल और मन्मथनाथ गुप्त ने मिलकर लखनऊ के निकट काकोरी में रेलगाड़ी में जा रहा ब्रितानी सरकार का खजाना लूट लिया। रेलगाडी के लूटे जाने के एक माह बाद भी किसी भी लुटेरे की गिरफ्तारी नहीं हो सकी।
यद्यपि ब्रिटेन सरकार ने एक विस्तृत जाँच का जाल आरम्भ कर दिया था। 26 अक्टूबर 1925 की एक सुबह, बिस्मिल को पुलिस ने पकड़ लिया और खान अकेले थे जिनका पुलिस कोई सुराख नहीं लगा सकी। दोस्त ने उन्हें धोखा देते हुए उनका ठिकाना पुलिस को बता दिया और 7 दिसंबर 1926 की सुबह पुलिस उनके घर आयी तथा उन्हें गिरफ्तार किया। कारावास के दौरान अशफाक उल्लाह खान ने कुरान का पाठ किया और नियमित तौर पर नमाज पढऩा आरम्भ कर दिया तथा इस्लामी माह रमजान में कठोरता से रोजे रखना आरम्भ कर दिया।
काकोरी डकैती का मामला बिस्मिल, खान, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 को फैजाबाद कारावास में फांसी की सजा सुनाकर पूरा किया गया। हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।इस मौके पर संस्था के महासचिव वेदप्रकाश, ललिता, तैयब हुसैन, सचिन, मोहित रोहिल्ला, डा0 बिल्लू व सतीश लुहेरा आदि समेत संगठन से जुड़े प्रमुख लोग भी मौजूद रहे।
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