(Nuh News) नूंह। दीपावली पूरे पांच दिन का महापर्व है जो कि धनतेरस से प्रारंभ होकर भाई दूज तक मनाया जाता है। मगर इस बार दीपावली को लेकर लोगों के बीच में लगातार असमंजस की स्थिति बनी हुई है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, गणेशापा और ऋषिकेश पंचांग के अनुसार दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को सर्वसम्म्मत रूप से मनाया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य रमेश शास्त्री के मुताबिक दीपावली पूरे पांच दिन का महापर्व है जो कि धनतेरस से प्रारंभ हो जाता है। धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल धनतेरस 29 अक्टूबर मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन सोने चांदी के आभूषण और नए बर्तन खरीदने की परंपरा बरसों से चली आ रही है। धनतेरस का पर्व भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेरजी के साथ ही धन की देवी मां लक्ष्मी और गणेशजी की पूजा की जाती है।
धनतेरस के शुभ अवसर पर घर में नई झाड़ू और धनिया लाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर पूरे साल धन समृद्धि बढ़ाती हैं और कृपा बरसाती हैं। इस दिन बहुत से लोग अपने घर में रोजाना के प्रयोग की नई इलेक्ट्रॉनिक चीजें भी लाते हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को छोटी दिवाली मनाई जाती है।
छोटी दिवाली इस बार 30 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी की जयंती भी मनाई जाती है। साथ ही इसे रूप चौदस और छोटी दीवाली भी कहते हैं। इस दिन दक्षिण दिशा में यम देवता के नाम का दीपक भी जलाया जाता है।
साथ ही इस दिन हनुमानजी को बूंदी के लड्डू का भोग लगाना और चोला चढ़ाना भी बहुत शुभ माना जाता है।दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है और प्रदोष काल के बाद दीपावली की पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार इस साल अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर के बाद 3 बजकर 52 पर शुरू होकर 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगी।
यानी कि 31 अक्टूबर की रात को अमावस्या तिथि विद्यमान रहेगी। इसलिए 31 अक्टूबर की रात को ही दीपावली मनाना तर्कसंगत होगा। 31 अक्टूबर को रात में ही लक्ष्मी पूजन, काली पूजन और निशिथ काल की पूजा की जाएगी। मध्य रात्रि की पूजा भी 31 अक्टूबर की रात को ही करना सर्वमान्य होगा।
जबकि अमावस्या से जुड़े दान पुण्य के कार्य और पितृ कर्म आदि 1 नवंबर को सुबह के वक्त करना उचित होगा। गोवद्र्धन पूजा दीपावली के अगले दिन होती है। इसे अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। गोवद्र्धन पूजा 2 नवंबर की जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने गोवद्र्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाकर सभी मथुरावासियों को भीषण वर्षा से रक्षा की थी।
तब से इस पर्व को गोवद्र्धन पूजा के रूप में हर साल मनाते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। कार्तिक मास के शक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस साल भाई दूज 3 नवंबर को मनाई जाएगी। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन यमराज की यमुना ने अपने भाई को सबसे पहले तिलक किया था।
तभी से हर साल इस शुभ मौके पर बहनें अपने भाइयों को टीका करती हैं और उनकी दीर्घायु की कामनी करती हैं। इन पर्वो को लेकर जिला के बाजार सजे हुए हैं तथा लोग जमकर खरीददारी कर रहे हैं। व्यापार, उद्योग, दुकान एवं प्रतिष्ठान आदि में लक्ष्मी पूजन के लिए धनु लग्न को श्रेष्ठ माना गया है।
क्योंकि धनु का स्वामी बृहस्पति हो जो कि व्यापार आदि के लिए श्रेष्ठ माना गया है, और गुरू सभी की सफलता में सहायक होता है। धनु लग्न प्रात: काल 10 बजकर 08 मिनट से दोपहर 12 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। शुभ की चौघडिय़ा प्रात: काल 6 बजकर 32 मिनट से 7 बजकर 55 मिनट तक श्रेष्ठ है।इसके उपरांत चल, लाभ एवं अमृत की चौघडिय़ा प्रात: 10 बजकर 41 मिनट से 2 बजकर 50 मिनट तक शुभ रहेगी।
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