(Nuh News) नूंह। आजाद हिन्द फौज की महिला इकाई की पहली कैप्टन पदम विभूषण कैन्टन लक्ष्मी सहगल की जयंती के मौके पर उन्हें यहां याद किया गया। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक मॉडल संस्कृति स्कूल प्रांगण तावडू में आजाद हिन्द फौज के सेनानियों की याद में बने कीर्ति स्तम्भ पर क्षेत्र की अग्रणी सामाजिक संस्था अखिल भारतीय जनसेवक समाज(पंजी0) के सौजन्य से संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रधान सुरेन्द्र सिंह की अगुवाई में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कीर्ति माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्वांजलि दी।
जिला अध्यक्ष काले खां ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी, डॉक्टर, सांसद, समाजसेवी के रूप में यह देश उन्हें सदैव याद रखेगा. कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्तूबर 1914 को एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ था. उनके पिता वकील डॉ0 स्वामिनाथन और मां समाज सेविका व स्वाधीनता सेनानी अम्मुकुट्टी थीं, कैप्टन सहगल 1932 में विज्ञान में स्नातक परीक्षा पास की।
उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली, फिर वे सिंगापुर चली गईं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में शामिल हो गईं थीं।वे बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया।उन्होंने 1938 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस पूरा किया। उन्होंने 1940 में एक ही कॉलेज से स्त्री रोग और प्रसूति विज्ञान में डिप्लोमा भी प्राप्त किया और मद्रास के सरकारी कस्तूरबा गांधी अस्पताल में शामिल हो गए।
वे 1943 में अस्थायी आजाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं।आजाद हिंद फौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा।आजाद हिंद फौज की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को वे पकड़ी गईं पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गईं।
लेकिन उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ और वे वंचितों की सेवा में लग गईं। वे भारत विभाजन को कभी स्वीकार नहीं कर पाईं और अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई का हमेशा विरोध करती रही हैं।यह एक विडंबना ही है कि जिन वामपंथी पार्टियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान का साथ देने के लिए सुभाष चंद्र बोस की आलोचना की, उन्होंने ही लक्ष्मी सहगल को भारत के राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया। लेकिन वामपंथी राजनीति की ओर लक्ष्मी सहगल का झुकाव 1971 के बाद से बढऩे लगा था। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संस्थापक सदस्यों में से हैं। उनकी मृत्यु 23 जुलाई 2012 को हुई। हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।
इस मौके पर जिला महासचिव वेदप्रकाश,सदस्य पंकज, सुमित, अनिल व सुनील कुमार आदि भी मौजूद रहे।
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