(Nuh News) नूंह। भारतीय धर्म संस्कृति में तीज त्योहार व उत्सव आदि का विशेष महत्व हैं। खासकर ब्रज चौरासी कोस के अंतर्गत आने वाले मेवात क्षेत्र में पारम्परिक त्योहारों की सांझी संस्कृति रही हैं। मेवात के सर्व धर्म के लोग पारम्परिक उत्सवों को मिल बैठकर मनाकर साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम किये हुए हैं।
उधर, दूसरी तरफ हमारी संस्कृति में श्रावणी पूर्णिमा वाले दिन मनाये जाने वाला रक्षाबंधन पर्व भी हैं। सावन के अंतिम सोमवार के दिन सावन मास की पूर्णिमा उत्सव होने से यह हिन्दुओं के लिए यह उत्सव और प्रिय बन गया हैं। रक्षाबंधन में स्वभाविक उत्सर्ग भावना से प्रेरित स्नहे भाव का अनुठा प्रदर्शन हैं।
गुरूकुलों में श्रावणी पूर्णिमा से शैक्षणिक सत्र का आंरभ होता था, गुरूकुलों में यह दिन अध्ययन व अध्यापन के लिए सर्वाधिक महत्व का रहा हैं। लेकिन मौजूदा दौर में त्योहारों का स्वरूप बदलता जा रहा हैं। खासकर रक्षा बंधन का रूप भी बदल गया है। आजकल नारियां अपने भाईयों को राखी बांधती हैं और उससे भेंट लेती हैं, इसी तरह जिला के बाजारों में रक्षाबंधन व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व के चलते बाजार ग्राहकों से गुलजार हैं।
खासकर राखी, मिष्ठान, रेडिमेट कपडे, गिफ्टपैक, ड्राईफू्रट, सौन्दर्य, मैहन्दी, साज-सज्जा, ब्यूटी पार्लर व पटरी आदि पर खुली दुकानों पर हुजूम है। सुरेन्द्र उर्फ चाटू सोनी, नरेश सोनी, कपिल सोनी, पंडित दिनेश, सुशील बंसल, रवि शर्मा, भगत पूरण, पदम सिंह, भूप प्रधान, रविन्द्र व देवेन्द्र सिंह आदि ने बताया कि पर्व उत्सव हमारी संस्कृति का एक हिस्सा हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाला रक्षाबंधन पर्व भी लोगों के लिए उत्सव प्रिय है। इसी तरह पूर्णिमा मेले को लेकर समीपवर्ती बाबा मोहनराम के काली खोली धाम पर भक्तों का सैलाब उमडऩे लगा है और भक्तजन कांधे पर पर बाबा का ध्वज लिये पैदल, डीजे, हारमोनियम के साथ संगीतमय ढंग से पहुंच रहे हैं। इससे सोहना-तावडू-भिवाडी मार्ग पर भक्तों की आवाजाही तेज हो गई है। इस चिल चिलाती गर्मी में भी भक्तों के जोश में कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है। साल में दूज, फाल्गुन के अलावा हर पूर्णिमा पर बाबा के धाम पर मेले का सा माहौल रहता है।