(Nuh News) नूंह। माता के चल रहे शारदीय नवरात्रों में रविवार को माता के चौथे स्वरूप मॉ कुष्मांडा की पूजा अर्चना की गई। जिला के नूंह स्थित पथवारी गडजीत माता मंदिर, काली मंदिर, गायत्री माता मंदिर, मनसा देवी मंदिर गहबर के अलावा तावडू के प्राचीन देवी भवन मंदिर, माता वैष्णों मंदिर सहित पुन्हाना, नगीना, पिनगवा, फिरोजपुर झिरका के अलावा उजीना, इंडरी, जौरासी, डिढारा, भोगीपुर, अकबर बिस्सर व मोहम्मदपुर अहीर आदि के मंदिरों में चौथे नवरात्र की पूजा अर्चना की जा रही है। मंदिर में सुबह से ही भक्ति की भीड जुट रही है तथा नियमों के तहत पूजा अर्चना की। प्राचीन देवी भवन मंदिर के पुरोहित पंडित विनोद शर्मा पराशर व सुरेन्द्र शर्मा ने संयुक्त तौर पर जानकारी दी कि आज माता के चतुर्थ स्वरूप कुष्मांडा की पूजा अर्चना की गई। भक्तजन मंदिर पर नंगे पैर, पेट पलनिया पहुंचकर माता के दरबार पर अपनी अरदास लगा रहे हैं।
उन्होने बताया कि क्षेत्र व जिला में शारदीय नवरात्री के चतुर्थ दिवस चतुर्थी तिथि को मां नरी सेमरी (नगरकोट कांगड़ा वाली देवी) के पावन दर्शन के लिए क्षेत्र से जत्था गया है। उन्होंने बताया कि मंदिर के बारे में ये मान्यता है इन्हें नगरकोट वाली देवी भी कहा जाता है। मां नरी सेमरी देवी मंदिर प्राचीन है। मान्यताओं के अनुसार माता नगर कोट वाली देवी का एक भक्त था। जिनका नाम धांधू था, जो माता को अपने शहर आगरा लाना चाहता था। उन्होंने माता को खुश कर हिमाचल प्रदेश से अपने साथ आगरा आने का वरदान मांगा। कांगड़ा देवी ने उन्हें वचन दिया और एक शर्त भी रखी कि मैं तुम्हारे पीछे पीछे चलूंगी लेकिन अगर तुमने पीछे मुडकर देखा तो मैं हमेशा हमेशा के लिए उसी स्थान पर विराजमान हो जाऊंगी। धांधू भगत ने माता की शर्त को स्वीकार कर लिया लेकिन मथुरा के नरी गांव में आकर धांधू भगत ने यह देखने के लिए पलट कर देखा की माता कांगड़ा आ रही हैं या नहीं।
जैसे ही धांधू भगत में मुडकर देखा और माता वहीं स्थान पर विराजमान हो गई। तब से लेकर आज तक देवी यही विराजमान है। इस मंदिर से जुड़ी कई अनोखी कहानियां है। कई चमत्कार भी है। उन्हीं में से एक चमत्कार यहां चादर आरती में भी देखने को मिलता है। इस आरती की विशेषता है कि इसमें आटे से बने दीपक का इस्तेमाल किया जाता है। फिर उसे एक सफेद सूती चादर के साथ जलते दीपक से आरती की जाती है। जिसे धांधू भगत के परिजन चारों कोनों से पकड़ लेते हैं। उसके नीचे से इस तेज अग्नि की जोती उस कपड़े पर घुमाई जाती है। उस दीपक की लौ को इस तरह घुमाया जाता है कि लौ चादर के आर-पार हो जाती है लेकिन चादर नहीं जलती।
इसी आरती को चादर आरती कहा जाता है। यह आरती मां की पारंपरिक आरती है। धांधू भगत के परिवारीजन इस पारंपरिक आरती को सैकड़ों वर्षों से करते आ रहे हैं।देवी के मंदिर में होने वाली इस विशेष आरती को एक दो बार नही बल्कि पांच बार दोहराया जाता है। धांधू भगत के परिवार के पांच वंशज आगरा से मथुरा आते हैं और फिर इस विशेष आरती को करने से पहले विशेष पूजा करते हैं। मां से प्रार्थना करते हैं कि आरती वो करने जा रहे हैं। उसकी ज्योति ठंडी हो जाए और उससे कपड़ा न जले। इसके लिए वो कई घंटों तक मां की पूजा करते है। कहा जाता है कि जिस वक्त यह आरती मथुरा के नरी सेमरी में की जाती है उस वक्त हिमाचल के कांगड़ा में बने मां के मुख्य मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। नगर कोट वाली देवी मथुरा के इस मंदिर में खुद आकर भक्तों को दर्शन देती हैं।