(Nuh News) नूंह। जिला के मंदिरों में कार्तिक मास की धूम मची हुई हैं। देव प्रबोधिनी एकादशी (देवउठानी), तुलसी विवाह व एकादशी व्रत के दौरान श्रद्वालुओं ने इस दिन व्रत रखकर अपने अराध्य की पूजा अर्चना की। इसी तरह, ग्राम छछैड़ा में तुलसी पूजन हवन किया आचार्य राजेश ने कहा तुलसी को विशेष महत्व दिया गया है। इसलिए हिंदू धर्म के लोग तुलसी को माता का रूप मानकर उसकी पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं।ऐसी मान्यता है कि जहां तुलसी फलती है, उस घर में रहने वालों को कोई संकट नहीं आते।
स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद में तुलसी के अनेक गुण के बारे में बताया गया हैं।तुलसी केवल एक पौधा ही नहीं है बल्कि धरा के लिए वरदान है। जिसके कारण इसे हिंदू धर्म में पूजनीय और औषधि तुल्य माना जाता है।आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया है क्योंकि ये औषधि भी हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी के एक संध्या को भोजन करने से दो जन्म के तथा पूरे दिन उपवास करने से सात जन्म के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से सहज ही प्राप्त हो जाती है। प्रबोधिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से बड़े-से-बड़ा पाप भी क्षण मात्र में ही नष्ट हो जाता है।
पूर्व जन्म के किए हुए अनेक बुरे कर्मों को प्रबोधिनी एकादशी का व्रत क्षण-भर मे नष्ट कर देता है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से कायिक, वाचिक और मानसिक तीनों प्रकार के पापों का शमन हो जाता है। इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान विष्णु की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ आदि करते हैं, उन्हें अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। पद्मपुराण के पौराणिक कथानुसार राजा जालंधर के अत्याचार से सभी देवता गण बहुत ही त्रस्त हो चुके थे तब जाकर प्रभु श्री विष्णु ने जालंधर को मारना चाहा पर वह अपने पत्नी वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण बहुत प्रयासों के बावजूद भी मारा नहीं जा रहा था तब प्रभु श्री विष्णु ने जालंधर की पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म उनको स्पर्श करके भंग किया तब पत्नी वृंदा (जिनको हम तुलसी भी कहते हैं ) के श्राप से भगवान विष्णु काले पत्थर के रूप में शालिग्राम पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है, और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं, इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा को वचन दिया कि तुम्हारा तुलसी नाम के एक पवित्र वृक्ष के रूप में धरती पर जन्म होगा और मेरी जहां कहीं पर भी पूजा होगी वहां पर बिना तुलसी के कोई भी पूजा स्वीकार्य नहीं होगी …तुम मुझे तुलसी के रूप में आज से अत्यंत प्रिय रहोगी अपने शालिग्राम स्वरुप में प्रभु श्री हरि विष्णु को तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है,प्राचीन ग्रंथों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी की स्थापना की जाती है और एकादशी के दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाकर उनका विवाह तुलसी जी से किया जाता है।
तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहते हैं। प्रभु श्री नारायण जब जागते हैं तो सबसे पहली प्रार्थना श्रीहरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा (देव दीपावली) तक तुलसी पूजन कर पाँचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
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