(Nuh News) नूंह। जिला में शुक्रवार को गौवत्स (गौवच्छी) पर्व बडी धूमधाम से मनाया गया। सुबह से ही मंदिरों व गौशालाओं में भक्तों का सैलाब उमड पडा था। व्रत रखी महिलाओं ने दूर दराज के क्षेत्रों में बनी गौशालाओं में गोपूजन किया। शहरी क्षेत्र में गौवंश ना मिलने से पर्व पर इस बात का पूरा असर देखने को मिल रहा था। अधिकांश श्रद्वालूओं ने घरों में बंधी पालतू गौवंश की पूजा अर्चना की। व्रतधारी महिलाओं ने सनातन धर्म मंदिर तावडू प्रबंधन से जुड़ी पंडितानी रामप्यारी के नेतृत्व में नगर परिक्रमा कर पर्व की खुशियां बांटी।
वहीं, दूसरी तरफ श्री श्यामगिरि गौशाला डिढारा पर आयोजित समारोह के दौरान महंत नरेशगिरि महाराज ने कहा कि भारतीय धर्म संस्कृति में इस पर्व का विशेष महत्व है। खासकर स्नान,दान से साधक को पुण्य की प्राप्ति मिलती है और साथ ही यह भी कहा कि मेवात जैसे पिछडे क्षेत्र में गोपालन के प्रति रूझान घटता जा रहा है और गली-मोहल्लो, सडकों पर घूम रही आवारा गौवंश पॉलिथीन, इंजेक्सन सिरिंज व कूडे के ढहरों आदि में विचरती दिखाई दे रही हैं।जिला की अधिकांश गौशालाएं सामाजिक लोगों के सहयोग से ही चल रही हैं। जबकि सरकार को गौशालाओं के लिए हर फील्ड में मदद करनी चाहिए। इसी तरह, एक दिन पूर्व जिला में अजा एकादशी का व्रत मनाया गया।
भक्तों ने व्रत रखकर सुबह से ही मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए जुट गए। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला यह व्रत अधिक से अधिक सम्प्रदाय के लोग रखते हैं। महाराज स्वामी कमलेश्वरा वेदान्ताचार्य ने बताया कि कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक बाद पडने वाले इस व्रत को कामिका या आन्नदा एकादशी भी कहा जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी के इस व्रत में भगवान के उपेंद्र स्वरूप की पूजा की जाती है। अजा एकादशी का व्रत करने से तमाम समस्याएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत में भगवान विष्णू की पूजा अर्चना की जाती हैं। इस व्रत को लेकर कुंतीपुत्र युधिष्ठिर , चक्रमवर्ती राजा हरिशचंद्र आदि की कहानियां प्रचलित हैं जिनमें उन्होंने इस व्रत की गाथा के बारे में बताया हैं।