Nuh News : जिला में अहोई अष्टमी पर्व की धूम रही

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Ahoi Ashtami festival was celebrated with fervour in the district
अहोई अष्टमी पर्व पर महिलाऐं चन्द्रमा को जल देते हुए

(Nuh News) नूंह। जिला में गुरूवार को अहोई अष्टमी पर्व की धूम रही। जिला के नूंह,तावडू, पुन्हाना, नगीना,पिनगवा, ईंडरी, फिरोजपुर झिरका व ग्रामीण परिवेश में सनातन धर्म के मानने वालों ने अहोई माता की सांय को कहानी सुनकर पूजा अर्चना कर रात को व्रत खोला। इस मौके पर महिलाऐं सज संवरकर सुबह से ही मंदिरों में पूजन कर रही थी तथा व्रत रखकर अपने परिवार की सुख -स्मृद्वि व बच्चों की लम्बी आयु के लिए कामना की।

महिलाओं ने इक्टठा होकर पर्व की खुशियां बांटी व अपने बुजुर्गों का सम्मान किया। सुनीता, संतोष देवी, क़ंचन सक्सेना,कांता, पूनम, बीरबाला, सरोज, ऐकता, रूकमनी, सोनिया, मोनिका सिंगला, कृष्णा देवी, पूनम, राधा आदि ने बताया कि अहोई अष्टमी पर्व उनके लिए बच्चों की लम्बी आयु व परिवार में सुख स्मृद्वि रखने का माध्यम है, अहोई माता फलदायनी है और उनकी पूजा करके वह धन्य हो गई है। उन्होंने बताया कि माता की पूजा अर्चना के बाद मिटटी के बर्तन में पानी भरकर सांय को कथा सुनकर रात को व्रत खोलती हैं।

दीवाली से ठीक एक सप्ताह पहले अहोई अष्टमी मनाया जाता है। स्त्रियां दिनभर व्रत रखती हैं। सायंकाल से दीवार पर आठ कोष्ठक की पुतली लिखी जाती है। उसी के पास सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। पृथ्वी पर चौक पूरकर कलश स्थापित किया जाता है। कलश पूजन के बाद दीवार पर लिखी अष्टमी का पूजन किया जाता है। फिर दूध-भात का भोग लगाकर कथा कही जाती है। आधुनिक युग में अब बहुत सी महिलाएं दीवारों पर चित्र बनाने के लिए बाजार से अहोई अष्टमी के रेडीमेड चित्र खरीदकर उन्हें पूजास्थल पर स्थापित कर उनका पूजन करती हैं। सनानत धर्म मंदिर प्रबंधन तावडू से जुड़ी पंडितानी रामप्यारी ने बताया कि अहोई अष्टमी व्रत के संबंध में कुछ कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथानुसार प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था।

उसके सात लडके थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई, जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था, वह पश्चाताप करती हुई शोकाकुल अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए।

महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। इस बात को पडोस की एक वृद्व महिला को बताया तो उसने अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करने और क्षमा-याचना करने की बात पर कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

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