अखिल कुमार:
यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि भारत का मुक्केबाज़ी में एक पदक पक्का हो गया। वेल्टरवेट वर्ग की मुक्केबाज़ लवलीना ने ताइपेई की
मुक्केबाज़ चेन निएन को हराकर कर दिखाया। अब उनका सेमीफाइनल मुक़ाबला तुर्की की मुक्केबाज़ सुरमेने बुसेनाज़ से है जो वास्तव में आज के युग की बेहतरीन मुक्केबाज़ हैं।
सुरमेने का यूक्रेन की मुक्केबाज़ से जो क्वॉर्टर फाइनल मुक़ाबला लवलीना के मुक़ाबले से पहले हुआ, उसे मैंने बड़े ध्यान से देखा। सुरमेने के पास
गज़ब के पंचों का अच्छी कॉम्बिनेशन हैं और उनके पास जबर्दस्त सटीक पंच हैं और वह एक तरह से अपने विपक्षी को पंच लगाने के लिए आमंत्रण देती हैं।
सच कहूं तो मैं इस मुक़ाबले को देखकर बहुत भावुक हो गया था। मुझे अपने पुराने दिनों की याद ताज़ा हो गई थी। उसकी कुछेक मूवमेंट मुझसे काफी
मुलती जुलती हैं। उसकी अपना बचाव करने की मूवमेंट और रेंज में रहकर काउंटर अटैक करने की क्षमता दुर्लभ है। वही सुरमेने के बारे में मैं यही
कहूंगा कि जिस तरह की उनकी खेलने की शैली है, उसे देखते हुए वह हर तरह से अटैक करने में कामयाब हो सकती हैं। शायद इन्हीं खूबियों की वजह से इस
मुक्केबाज़ ने 2019 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल किया था।लवलीना को मेरी यही सलाह है कि वह लांग डिस्टेंस से लड़ते हुए उसी पोज़ीशन पर बरकरार रहें और जवाबी हमले बोले। साथ ही मुक्केबाज़ी की भाषा
में कहूं तो सिर्किल टू लेफ्ट, सर्किल टू राइट यानी दाये-बायें मूवमेंट खेले तो शायद वह तुर्की की मुक्केबाज़ को चुनौती देने में सफल हो सके।
लवलीना के खिलाफ ताइपेई की मुक्केबाज़ एक फाइटर की तरह खेलीं। जैसे लवलीना खेलीं, यह एक फाइटर के खिलाफ खेलने की सही रणनीति थी।

वहीं सिमरनजीत कौर से मुझे काफी उम्मीदें थीं लेकिन थाई बॉक्सर ने उनके सामने अपने अनुभव का भरपूर फायदा उठाया। वह स्कोर करके आराम से निकल रही
थी। हालांकि पहले दो राउंड में ही यह तय हो चुका था कि थाई बॉक्सर यह मुकाबला जीत गई हैं लेकिन तीसरे राउंड में सिमरनजीत पर दबाव था या आप उसे
कुछ भी कहें, इस राउंड में उनका शैल गार्ड भी डाउन हो गया था। थाई मुक्केबाज़ ने वहीं अपने स्किल का अच्छा इस्तेमाल करते हुए टारगेट पर पंच
लगाए। मुक़ाबले में कभी ऐसा नहीं लगा कि सिमरन के हाथ में यह मुक़ाबला जा सकता है।

भारतीय मुक्केबाज़ी दल के साथ डॉक्टर का न होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस खेल में इंजरी की सबसे ज़्यादा सम्भावनाएं होती हैं। सच कहा जाये सभी
कॉम्बेट स्पोर्ट्स के साथ फीज़ियो और डॉक्टर टीम की ज़रूरत होते हैं लेकिन फिर भी यह सब मसला ओलिम्पिक के बाद उठता तो अच्छा रहता।
(लेखक पूर्व ओलिम्पियन होने के अलावा अर्जुन पुरस्कार विजेता हैं)