पूरा देश इस समय कोरोना के साथ मुसलमानों की चर्चा में भी जुटा है। तबलीगी जमात की गल्तियों की सजा देश तो भुगत ही रहा है, मुसलमानों को भी समग्र रूप से एक अलग ही विषादपूर्ण वातावरण का सामना करना पड़ रहा है। इन स्थितियों में देश के सामने यह समझने की चुनौती तो है ही कि हर मुसलमान तबलीगी नहीं है, इसलिए कुछ लोगों की गलती के लिए पूरे समाज को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं कहा जा सकता। वहीं मुस्लिम नेतृत्व को भी समझना होगा कि तब्लीगी जमात का नेतृत्व एक मुसलमान के हाथ में ही है, जो खुद कानून से भागा फिर रहा है।
कोरोना संकट गहराने के लिए जिस तरह देश में मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराने की होड़ सी लगी हुई है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। खुद को हिन्दू समाज का ठेकेदार बताने वाले लोग भी इस मुहिम को हवा देने में पीछे नहीं हैं। दरअसल कई बार तो लगता है कि हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के पैरोकारों के लिए मानो यह मुद्दा सौगात सा बनकर आ गया है। पूरी दुनिया में कोरोना से निपटने और उस कारण उत्पन्न संकट के समाधान पर चर्चा हो रही है, वहीं भारत के तमाम टीवी चैनलों के प्राइम टाइम मुसलमानों और कोरोना के संबंधों की चर्चा में डूब रहे हैं। ऐसे में यह समय मुस्लिमों के लिए भी चिंतन का समय है। देश में स्वतंत्रता के बाद से मुस्लिम नेतृत्व ने उन्हें जाहिलियत में डुबाकर अपना उल्लू सीधा करने का काम किया है। यह तो निश्चित ही है कि भारतीय सर्वधर्म संद्भाव का भाव अल्पसंख्यकों के रूप में जिस तरह से मुस्लिमों की चिंता कर लेता है, वैसी चिंता आसपास के किसी भी देश के अल्पसंख्यकों की नहीं की जाती। ऐसे में मुस्लिमों को भड़काकर सत्ता में हिस्सेदारी बनाए रखने का स्वप्न पालने वाले नेता भी इस मसले पर हिन्दू-मुस्लिम खींचतान को और बढ़ा देना चाहते हैं। यही कारण है कि मुसलमानों के बीच तब्लीगी जमात की गल्तियों से सीखकर सुधार की मुहिम के स्थान पर इस दौरान हिन्दुओं द्वारा की जा रही गल्तियों की पड़ताल पर शोध ज्यादा हो रहा है। कोई कह रहा है कि कोटा से बच्चों को लाना गलत है, तो कोई मुंबई में लोगों के एकत्र होने को मुद्दा बना रहा है। ये सब तो गलत है ही, किन्तु इससे तब्लीगी जमात की अराजकता कहां से सही साबित हो जाती है। यह मुस्लिम समाज के लिए भी नेतृत्व का संक्रमण काल है, इस दौरान सकारात्मक मुस्लिम नेतृत्व सामने आ कर धार्मिक सद्भाव की बड़ी लकीर खींचने की पहल कर सकता है।
इस पूरे घमासान के बीच मुस्लिमों के विरोधी या कहा जाए तो दुश्मन के रूप में परिभाषित किये जाने वाले संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से मुसलमानों के संदर्भ में बेहद सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने कहा है कि भयवश या क्रोधवश यदि कोई कुछ उल्टा सीधा कर देता है, तो उसके लिए पूरे समाज को जिम्मेदार मानकर उससे दूरी बनाना ठीक नहीं है। देश में भड़काने वाले लोगों की संख्या कम नहीं है और इसका लाभ लेने की कोशिश करने वाली ताकतें भी सक्रिय हैं। संघ के कार्यकतार्ओं से उन्होंने प्रतिक्रियावश खुन्नस से बचने व सभी 130 करोड़ भारतवासियों को अपना बंधु मानने का आह्वान किया है। संघ प्रमुख का यह बयान उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा है, जो हमेशा मौका देखकर संघ को मुसलमानों का दुश्मन घोषित करने की कोशिश में जुटे रहते हैं। यह समय दूरियां घटाने का है। इसके लिए देश के सभी नागरिकों को ऐसे लोगों और विचारों से दूरी बनानी होगी, जो सिर्फ विभाजन पर केंद्रित रहते हैं। उनकी राजनीति व नेतृत्व की रणनीति भी विभाजन आधारित ही होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में देशवासियों से अपने आचरण में एकता व भाईचारे को बढ़ावा देने की बात कही है। कोरोना के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराए जाने की तमाम चचार्ओं और इस कारण हो रही मुस्लिम विरोधी घटनाओं के बाद प्रधानमंत्री को स्वयं ट्वीट कर कहना पड़ा कि कोविड-19 जाति, धर्म, रंग, पंथ या भाषाओं की सीमा को नहीं देखता। इस मुश्किल वक्त में हमें साथ मिलकर चुनौती का सामना करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने रमजान के महीने भी सेवाभाव की मिसाल देने का आह्वान किया है। रमजान का महीना इबादत का महीना होता है। हर मुसलमान इस समय अल्लाह की इबादत के साथ देश को कोरोना से मुक्ति की दिलाने की दुआ भी मांग रहा है। इसी के साथ देश में व्यापक सद्बुद्धि की दुआ मांगे जाने की जरूरत भी है। देश के सामने इस समय कोरोना संकट के बाद की सामाजिक, आर्थिक चुनौतियों का पहाड़ मुंह बाए खड़ा है। हमें मिलकर इससे निपटना होगा और इसके लिए हिन्दू-मुसलमान की खींचतान से बचना होगा। ऐसा न हुआ तो हम बहुत पीछे हो जाएंगे… और पीछे होना तो कोई नहीं चाहता, न हिन्दू, न मुसलमान।
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डॉ. संजीव मिश्र
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)