आज समाज डिजिटल,नई दिल्ली:
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि राजधानी की उन झुग्गी-बस्तियों को पुनर्वास प्रक्रिया शुरू किए बगैर हटाया जा सकता है, जिन्हें दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) ने अधिसूचित नहीं किया है। हाईकोर्ट ने सर्वे किए बगैर ही सरोजिनी नगर और नेताजी नगर में झुग्गियों को खाली कराने का नोटिस जारी करने पर भूमि एवं विकास विभाग के अधिकारी के खिलाफ अवमानना याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला दिया है। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने फैसले में कहा है कि अजय माकन बनाम भारत सरकार के मामले में मार्च 2019 में पारित फैसला सिर्फ उन झुग्गी-बस्तियों पर लागू होता है, जिसे डूसिब ने अधिसूचित किया है। जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो सरोजिनी नगर और नेताजी नगर की दोनों झुग्गी बस्तियां डूसिब की अधिसूचित सूची में शामिल नहीं हैं, लिहाजा यहां रहने वाले लोग पुनर्वास नीति का लाभ पाने के हकदार नहीं हैं।
ऐसी स्थिति में प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही नहीं हो सकती: जस्टिस प्रसाद
जस्टिस प्रसाद ने कहा है कि ऐसी स्थिति में प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही नहीं हो सकती है और यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादियों ने पूर्व में पारित कोर्ट के निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना की है। अवमानना याचिका में हाईकोर्ट को इस सवाल पर और आगे जाने की आवश्यकता नहीं है कि ‘क्या याचिकाकर्ता-संगठन के सदस्यों को डूसिब के पुनर्वास नीति के लाभ पाने का हकदार है या नहीं। हाईकोर्ट ने दाखिल अवमानना याचिका को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने कहा है कि जब किसी फैसले की दो व्याख्या संभव हैं तो उसके आधार पर अवमानना की कार्यवाही नहीं की जा सकती है। दिल्ली स्लम पुनर्वास और पुनर्वास नीति, 2015 के तहत नगर निगम, दिल्ली सरकार व अन्य विभाग की जमीन पर बनी झुग्गियों को हटाने के बाद डूसिब पुनर्वास करेगा। इस नीति के तहत पुनर्वास सिर्फ उन झुग्गी बस्तियों का होगा जो जनवरी 2006 से पहले बनी हैं। इनमें रहने वाले लोगों को वैकल्पिक आवास दिए बगैर नहीं हटाया जाएगा।
याचिकाकर्ता संगठनों की ओर से वकील कमलेश कुमार मिश्रा ने झुग्गी-झोपड़ी को तत्काल खाली करने के लिए अप्रैल 2022 में जारी नोटिस को चुनौती दी थी। मिश्रा ने कहा कि विभाग ने 2019 में पारित फैसले का उल्लंघन करते हुए पुनर्वास के लिए कोई सर्वे किए बगैर ही खाली करने का नोटिस जारी किया है।