पारा चढ़ते ही मवेशियों को लेकर घुमंतु गुज्जरों ने किया पहाड़ी क्षेत्रों का रूख, जानिए इनकी दास्तां Nomadic Gujjars Moved to Hilly Areas

0
386
Nomadic Gujjars Moved to Hilly Areas

आजादी के 75 वर्ष बीत जाने पर भी किसी भी सरकार ने उनके संघर्षमय जीवन बारे विचार नहीं किया और भविष्य में उमीद भी नहीं Nomadic Gujjars Moved to Hilly Areas

रमेश पहाड़िया, राजगढ़:

Nomadic Gujjars Moved to Hilly Areas: मैदानी इलाकों में पारा बढ़ने के साथ ही घुमन्तुं गुज्जरों ने पहाड़ी क्षेत्रों का रूख कर दिया है। इस समुदाय का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है फिर भी यह समुदाय अपने व्यवसाय से प्रसन्न है। पहाड़ो पर बर्फ एंव अत्यधिक सर्दी आरंभ होने पर यह घुमन्तु गुज्जर अपने परिवार व मवेशियों के साथ मैदानी क्षेत्रों में चले जाते हैं और गर्मियों के दौरान ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहूंच जाते है। सबसे अहम बात यह है कि इस समुदाय के लोगों को बेघर होने का कोई खास मलाल नहीं है।

आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर घुमन्तु गुज्जर Nomadic Gujjars Moved to Hilly Areas

Nomadic Gujjars Moved to Hilly Areas

आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर घुमन्तु गुज्जर वर्ष भर भैंस के जंगल-जंगल घूमकर कठिन व संघर्षमय जीवन यापन करते हैं। बता दें कि गर्मियों के दिनों घुमंतु गुज्जर समुदाय के लोग नारकंडा, चांशल और चूड़धार के जंगलों में रहते हैं। जबकि सर्दियों के दौरान नालागढ़, बददी, पांवटा, दून और सिरमौर जिला के धारटीधार क्षेत्र में चले जाते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति में इस समुदाय का कोई सरोकार नहीं है। सोशल मीडिया , फेसबुक , इंटरनेट , सियासत इत्यादि से इस समुदाय का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। यह लोग अपने सभी रीति रिवाजों व विवाह इत्यादि सामाजिक बंधनों को जंगलों में मनाते हैं। सर्दी, बरसात, गर्मी के दौरान गुज्जर समुदाय के लोग जंगलों में रातें बिताते हैं। बीमार होने पर अपने पारंपरिक दवाओं अर्थात जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करते हैं।

किसी भी सरकार ने उनके संघर्षमय जीवन बारे विचार नहीं किया और भविष्य में उमीद भी नहीं Nomadic Gujjars Moved to Hilly Areas

मवेशियों को लेकर नारकंडा जा रहे शेखदीन व कमलदीन गुज्जर ने बताया कि आजादी के 75 वर्ष बीत जाने पर भी किसी भी सरकार ने उनके संघर्षमय जीवन बारे विचार नहीं किया और भविष्य में उमीद भी नहीं है। इनका कहना है कि दो जून की रोटी कमाना उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। दूध, खोया, पनीर इत्यादि बेचकर यह समुदाय रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करता है। हालांकि कुछ गुज्जरों को सरकार ने पट्टे पर जमीन अवश्य दी है परंतु अधिकांश गुज्जर घुमंतु ही है।

शेखदीन का कहना है कि विशेषकर बारिश होने पर खुले मैदान में बच्चों के साथ रात बिताना बहुत कठिन हो जाता है। बताया कि उनके बच्चे अनपढ़ रह जाते हैं। सरकार ने घुमंतु गुज्जरों के लिए मोबाइल स्कूल अवश्य खोले हैं परंतु स्थाई ठिकाना न होने पर यह योजना भी ज्यादा लाभदायक सिद्ध नहीं हो रही है। घुमंतु गुज्जर अपने आपको मुस्लिम समुदाय का मानते हैं परंतु इनके द्वारा कभी न ही रोजे रखे गए हैं और न ही कभी नमाज पढ़ी जाती है। कमलदीन का कहना है कि अनेकों बार जंगलों में न केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। बल्कि जंगली जानवरों से जान बचाना मुश्किल हो जाता है।

Also Read : दमदार कैमरा और परफॉर्मेंस वाले ये टॉप सबसे शानदार स्मार्टफोन , जानिए

Also Read: शहीद पिता से बेटी बोली जयहिंद पापा, बेटे ने किया सैल्यूट

Also Read :  टॉप 5 इलेक्ट्रिक स्कूटर, इस साल बने जो इंडियन्स की पंसद

Connect With Us : Twitter Facebook