बोलीं- मेडल हाथ से निकला हिम्मत नहीं, अगली बार लाना है स्वर्ण
(आज समाज) पानीपत: मैं पेरिस ओलंंपिक को लेकर पूरी तरह से तैयार थी और क्वार्टर फाइनल में भी अच्छा खेल चल रहा था। मैंने कोहनी में लगी चोट को भी सहन किया और 8-1 से आगे होने पर जोश भी बढ़ गया था। तभी कंधा उतर गया और दर्द सहन नहीं हो पा रहा था। मैंने फिर भी हिम्मत की, लेकिन फिर आखिरी के 40 सेकंड प्वाइंंट नहीं बना पाई। प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी 10-8 से मैच जीत गई। मेरे हाथ से मेडल निकला है, लेकिन हिम्मत अब भी है। मैं अब कंधे का इलाज कराकर दोबारा मेहनत करुंगी और अगले ओलंंपिक में देश की झोली में स्वर्ण पदक लेकर आऊंगी। यह कहना है आदियाना की बेटी निशा दहिया का। निशा दहिया पेरिस ओलंपिक से रविवार को अपने गांव पहुंची। उनका भालसी गांव स्थित गंगा हैचरी पर अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. नवीन नैन भालसी व आसपास के ग्रामीणों ने जोरदार स्वागत किया। यहां से जुलूस के रूप में मतलौडा व फिर आदियाना गांव में पहुंचीं। यहां मंदिर व खेड़े पर माथा टेका। वे इसके बाद गांव के सरकारी स्कूल में आयोजित समारोह में पहुंचीं। यहां ग्रामीणों व आसपास के गांवों के लोगों ने उनको सम्मानित किया। पिता रमेश दहिया और मां बबली ने बेटी को गले लगाया। मां ने सबसे पहले उसके हाथ पर लगी चोट को देखा। रमेश दहिया ने बताया कि उनके पास दो बेटी हैं। बड़ी बेटी की शादी कर दी है। निशा खेलों में आगे आना चाहती थी। उसको पहले जींद के निडाना में कुश्ती अखाड़ा में छोड़ा। इसके बाद रोहतक व अन्य जगह अभ्यास कराया। निशा ने 2020 के ओलंपिक को लेकर भी तैयारी कर रखी थी। वह उस समय नहीं जा सकी। इस बार उसको पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक की उम्मीद थी। वह ओलंपिक मेडलिस्ट साक्षी मलिक के अखाड़े में तैयारी कर रही थी। निशा दहिया के लिए पिता ने भी काफी संघर्ष किया। उसने उसके लिए ट्रैक्टर-ट्राली तक बेच दिया। उस पर हर महीने करीब 40 हजार रुपये खर्च आता है। निशा दहिया ने 2021 से अब तक पांच अंतरराष्ट्रीय समेत 18 पदक जीते हैं।
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