नई दिल्ली। निर्भया गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश कुमार सिंह की याचिका पर सुनवाई की। याचिका में मुकेश ने राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने को चुनौती दी है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान आज मुकेश की वकील अंजना प्रकाश ने तिहाड़ प्रशासन पर बड़े आरोप लगाए और कहा कि मुकेश का तिहाड़ में यौन शोषण हुआ। जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ के समक्ष मुकेश की वकील अंजना ने बताया कि तिहाड़ जेल में मुकेश को निर्भया केस के अन्य आरोपी अक्षय के साथ सबके सामने शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहा गया। उसे पहले दिन से ही जेल में मारा गया है और पांच साल से वह डर से सो नहीं पाया है। जब भी वह सोता है तो उसे मौत के और पिटाई के सपने आते हैं। अंजना ने सुप्रीम कोर्ट में ये भी जानकारी दी कि कैसे मुकेश ने राम सिंह की मौत का प्रश्न उठाया था। उसे किसने मारा मुकेश इस बारे में जानता है। इसे आत्महत्या का केस बनाकर बंद कर दिया गया। वकील ने कोर्ट को बताया कि मुकेश को क्यूरेटिव पिटीशन के बाद से ही एकांत कारावास में रखा है।
इस पर जस्टिस भानुमति बोलीं कि मुकेश को एकांत कारावास में नहीं रखा जाना चाहिए था। केस की जिरह शुरू करते ही मुकेश की वकील अंजना प्रकाश ने कहा कि अदालत न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करते हुए देखे क्या इस केस में उचित रूप से फैसला लिया गया है। मुकेश की वकील ने अदालत के सामने केहर सिंह बनाम भारत सरकार (1989) 1 एससीसी 204 का उदाहरण देते हुए कहा, यहां तक कि राष्ट्रपति की शक्ति भी मानवीय भूल के लिए खुली है। मुकेश की वकील ने ये भी कहा कि यहां तक कि सबसे ज्यादा प्रशिक्षित लोग भी गलतियां कर सकते हैं। जब बात मौत और निजी स्वतंत्रता की हो तो इसे और ऊंची सत्ता के हाथ में सौंपना चाहिए। इस दौरान उन्होंने शत्रुघ्न चौहान केस का भी जिक्र किया। माफी पाना कोई निजी कार्य नहीं है बल्कि यह संवैधानिक प्रणाली का हिस्सा है। राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका कबूल किया जाना एक महान संवैधानिक दायित्व है, जिसे लोगों की भलाई को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। वरिष्ठ वकील प्रकाश ने आगे कहा कि इस मामले में एकांत कारावास के नियमों का उल्लंघन किया गया। दया याचिका खारिज होने के बाद ही एकांतवास हो सकता है। जबकि जेल की कई यात्राओं से पता चला है कि इस मामले में ऐसा नहीं है।मुकेश की वकील अंजना ने आगे कहा कि जो भी सामग्री गृहमंत्री को भेजी जाने वाली हो उसे एक बार में भेजा जाना चाहिए। देरी से बचने के लिए इसका सख्ती से पालन होना चाहिए। जबकि इस केस में दोषियों को देर से कानूनी सहायता दी गई।