Benefits of New Indian Judicial Code, आलोक मेहता, (आज समाज), नई दिल्ली: भारत सरकार ने जुलाई से सम्पूर्ण लोकतान्त्रिक और न्यायिक व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव के साथ नई ‘ भारतीय न्याय संहिता ‘ लागू कर दी। यह करोड़ों लोगों को अधिक अच्छे नियम कानूनों से लाभान्वित करेगी। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित सरकार का विरोध करने वाले प्रतिपक्ष के नेता और निहित स्वार्थ वाली एक लॉबी इस न्याय संहिता का भी विरोध कर रही है। वहीं इन दिनों कई मंचों पर यह बात भी उठ रही है कि देश को दिशा देने और भविष्य निर्माण करने वाले तंत्र में एक तरह की उश्रृंखलता दिखाई दे रही है।
संसद में सारे नियम तोड़ रहे सांसद
संसद में सारे नियम तोड़कर सांसद अध्यक्ष/सभापति के आदेशों निर्देशों का पालन नहीं कर अशोभनीय दृश्य उपस्थित कर रहे हैं। यहाँ तक कि देश तोड़ने और आतंकवाद के गंभीर आरोपी को जेल से रिहा करने तथा उसे सदन के सम्मानित सदस्य के रुप में स्वीकारे जाने की दुहाई कांग्रेस के नेता दे रहे हैं। इसी तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मीडिया का एक वर्ग, तेजी से फ़ैल रहा सोशल मीडिया किसी भी नियम, संयम का पालन नहीं करते हुए घोर आपत्तिजनक , उत्तेजक, अपमानजनक सामग्री समाज के हर वर्ग तक पहुंचा रहा है।
धर्म-आस्था के नाम पर नए-नए लोग जारी कर रहे फरमान
इसी तरह धर्म आस्था के नाम पर अनेक नए नए लोग खड़े होकर फरमान जारी कर रहे और अन्धविश्वास बढाकर लोगों की जान ले रहे हैं। इन सबसे रक्षा के लिए एकमात्र न्याय पालिका से आशा की उम्मीद रहती है। हाल के वर्षों में कई ऐतिहासिक फैसले सुप्रीम कोर्ट से आए हैं और इस कारण न्यायालय से अपेक्षा बढ़ती जा रही हैं। लेकिन वकीलों और न्यायाधीशों के एक्टिविज़्म से वहां भी चिंता की समस्या दिखने लगी है। यही नहीं कभी कभी शीर्ष अदालत और भारत सरकार के बीच टकराव की स्थिति, जजों की नियुक्तियों में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच मतभेद के कारण सैकड़ों स्थान खाली पड़े हैं और चार करोड़ से अधिक प्रकरण अदालतों में पेंडिंग हैं। इसीलिए सवाल उठ रहा है कि इन सर्वोच्च व्यवस्थाओं के लिए आचार संहिता ( कोड ऑफ़ इथिक्स ) कब और कौन बनाएगा?
सीजेआई ने हाल ही में वकील को लगाई है फटकार
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक वकील को फटकार लगाई, क्योंकि उसने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (ठएएळ) में कथित अनियमितताओं से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई को बाधित करने की कोशिश की थी। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. उन्होंने कहा, “नेदुम्परा, मैं आपको चेतावनी दे रहा हूं। आप गैलरी में बात नहीं करेंगे। मैं न्यायालय का प्रभारी हूं। कृपया सिक्योरिटी को बुलाएं, उन्हें न्यायालय से बाहर निकालें।” इस पर वकील ने जवाब दिया, मैं जा रहा हूं। मैं जा रहा हूं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, आपको ऐसा कहने की ज़रूरत नहीं है, आप जा सकते हैं। मैंने पिछले 24 वर्षों से न्यायपालिका देखी है। मैं वकीलों को इस न्यायालय में प्रक्रिया निर्धारित करने की अनुमति नहीं दे सकता।
मैंने कुछ भी गलत नहीं किया : वकील
वकील ने कहा, मुझे खेद है। मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है। मेरे साथ अनुचित व्यवहार किया गया। इस साल मार्च में, इलेक्टोरल बॉन्ड मामले की सुनवाई के दौरान, वकील हस्तक्षेप करना चाहते थे और बार-बार बीच में टोकते रहे। एक समय पर, मुख्य न्यायाधीश ने दृढ़ता से कहा, मुझ पर चिल्लाओ मत… यह हाइड पार्क कॉर्नर मीटिंग नहीं है, तुम कोर्ट में हो। तुम एक आवेदन पेश करना चाहते हो, एक आवेदन दाखिल करो। तुम्हें मुख्य न्यायाधीश के रूप में मेरा निर्णय मिल गया है, हम तुम्हारी सुनवाई नहीं कर रहे हैं। यदि तुम कोई आवेदन दाखिल करना चाहते हो, तो उसे ईमेल पर पेश करो। इस कोर्ट में यही नियम है।
मामलों को प्राथमिकता देने के आरोप
देश की सर्वोच्च अदालत पर अक्सर हाई प्रोफाइल सियासी मामलों को ही पहले प्राथमिकता देने के आरोप लगते रहे हैं। चाहे वह कांग्रेस के पवन खेड़ा का मामला हो या दिल्ली सरकार बनाम एलजी विवाद। लेकिन, भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ऐसा नहीं मानते। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि ‘ यह एक गलत धारणा है कि अदालत लगातार हाई-प्रोफाइल राजनीतिक मामलों का फैसला कर रही है। देश भर में अदालतों की ओर से किए गए अधिकांश काम, जिसमें सुप्रीम कोर्ट भी शामिल है, व्यक्तिगत नागरिकों के कानूनी विवाद से संबंधित हैं और राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। ये भूमि विवाद, पेंशन दावों या आपराधिक मामलों से संबंधित हैं।
इन मामलों को मिलती है अधिक मीडिया कवरेज
राजनीतिक हस्तियों के मामलों को नागरिकों से जुड़े मामलों की तुलना में काफी अधिक मीडिया कवरेज मिलती है, इससे यह धारणा बनती है कि अदालत राजनीतिक क्षेत्र में भारी रूप से शामिल है।अदालतों ने हमेशा यह सुनिश्चित करने में भूमिका निभाई है कि राजनीति कानून के शासन और संविधान की परिधि के भीतर संचालित होती है। मुझे लगता है कि अगर अदालतें कई मामले सुन रही हैं जिनका राजनीति पर भी असर है, तो यह एक जीवंत लोकतंत्र का स्वाभाविक परिणाम है जहां विचारों और मुद्दों को लगातार अदालतों सहित कई मंचों पर लड़ा जा रहा है।
अदालतों पर काम का बोझ बढ़ा
हाल के वर्षों में अदालतों पर काम का बोझ बढ़ा है। एक तरफ विचाराधीन मामलों की संख्या बढ़ रही है। वहीँ सरकार ने संसद में स्वीकारा कि देश की उच्च अदालतों ( हाई कोर्ट ) में स्वीकृत 1114 पदों में से 357 पद खाली हैं। अकेले इलाहबाद हाई कोर्ट में 76 स्थान खाली हैं। मतलब कहीं न कहीं सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीशों में नामों पर सहमति नहीं बन पाती और नतीजा न्याय समय पर पाने की आस लगाने वाले लाखों लोग भटकते रहते है। हाँ टेक्नोलॉजी और सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाही का सीधा प्रसारण होने से पारदर्शिता आई और विश्वसनीयता के साथ अपेक्षा बढ़ सकती है। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का मकसद लोगों तक आसानी से पहुंचना है।
देश का प्रतिनिधित्व करता है सुप्रीम कोर्ट : सीजेआई
जस्टिस चंद्रचूड़ के अनुसार, हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई कर रहे हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के तहत देश का सुप्रीम कोर्ट सिर्फ वह सुप्रीम कोर्ट नहीं है, जो दिल्ली के तिलक मार्ग तक ही सीमित है। सुप्रीम कोर्ट वास्तव में देश का प्रतिनिधित्व करता है। देशभर से, यहां तक कि देश के दूर-दराज के इलाकों से भी एक वकील, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुनवाई के लिंक के जरिए एक सिंपल से सेल फोन पर हमसे जुड़ सकता है। इसी तरह से जिन वादियों के मामले सुप्रीम कोर्ट में हों या न हों, वे भी सुप्रीम कोर्ट के कामकाज को देख सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से किए जाने वाले कामकाज को समझने में नागरिक थोड़ी-बहुत भूमिका निभाते हैं।
कोई भी सुविधाओं के अभाव में न्याय से वंचित न रहे
जनता का पैसा खर्च होता है, तो उनको यह जानने का हक है कि अदालत में क्या हो रहा है। मुझे लगता है कि अदालतों में हमारे द्वारा किए जा रहे कामों को जानने से आम जनता में विश्वास और विश्वास की भावना आएगी। आम लोगों तक न्यायालयों को पहुंचाने के लिए हम कई तरीके अपना रहे हैं, क्योंकि हर किसी नागरिक के पास लेपटॉप नहीं होता है, स्मार्ट फोन नहीं होता है। हालांकि, हमारा कर्त्तव्य है कि कोई भी व्यक्ति सुविधाओं के अभाव में न्याय से वंचित न रह जाए, इसलिए हमने देशभर में लगभग 18000 ई-सेवा केंद्र जिला अदालतों के परिसरों में खोले हैं।
अभी पायलट बेसिस पर हैं ई-सेवा केंद्र
यह ई-सेवा केंद्र अभी पायलट बेसिस पर हैं। अब आम लोगों को मामलों की इंटरनेट फाइल, ई-फाइलें, कोर्ट में जाने के लिए पास आदि की सुविधाएं भी डिजिटल तरीके से मिल रही हैं। हमारे ई-मिशन मोड प्रोजेक्ट के फेस-3 के लिए केंद्र सरकार ने 7200 करोड़ रुपये की स्वीकृति दे दी है। लोकतंत्र में विश्वसनीयता बहुत जरुरी है। एक अंतर्राष्ट्रीय विधि संस्थान की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में अमेरिकियों का विश्वास पिछले दो वर्षों में नए निचले स्तर पर पहुंच गया है, केवल लगभग 40% ने अपनी अदालतों पर विश्वास व्यक्त किया। दूसरी तरफ कुछ समय पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी देश के प्रति किसी भी तरह से प्रतिबद्ध होना नहीं चाहती।
राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता से बचती है कांग्रेस
प्रधानमंत्री ने जाने-माने वकीलों की चिट्ठी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिपोस्ट करते हुए लिखा, पांच दशक पहले ही कांग्रेस ने ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ का आह्वान किया था। वे (कांग्रेस) बेशर्मी से अपने स्वार्थों के लिए दूसरों से प्रतिबद्धता तो चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचती है। अब कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं। 600 से अधिक वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी में कहा था कि एक खास ग्रुप का काम अदालती फैसलों को प्रभावित करने के लिए दबाव डालना है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जिनसे या तो नेता जुड़े हुए हैं या फिर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर आरोप
चिट्ठी में कहा गया है कि इनकी गतिविधियां देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास के लिए खतरा है। इन आरोपों में निश्चित रुप से दम हैं, क्योंकि सरकार विरोधी कुछ नेतानुमा वकील लगातार याचिकाएं लगाते हैं और न्याय पालिका की विश्वसनीयता पर मीडिया में जाकर आरोप लगाते हैं। उनका पिछला रिकॉर्ड इस बात का प्रमाण भी है कि वे जिस पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचार या अन्य अपराधों के बचाव में आते हैं, उस पार्टी के प्रभाव वाले प्रदेश से चुनाव लड़कर सांसद बनने, फिर कानून मंत्री बनने की कोशिश भी करते हैं। इस दृष्टि से जरुरी है कि भारतीय न्याय पालिका तथा लोकतंत्र की मजबूत जड़ों पर करोड़ों लोगों की आस्था की रक्षा के लिए भारत विरोधी एक्टिविज्म या अन्य गतिविधियों को कड़ाई से नियंत्रित किया जाए।