New Delhi News : क्यों भटक रहे हैं अनुभवी खरगे

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Why is the experienced Kharge wandering?

अजीत मेंदोला (New Delhi News ) नई दिल्ली। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के भाषणों से लग रहा है जैसे वह अनुभव के हिसाब से नहीं बोल रहे हैं।कुछ भटकाव है।लगातार कुछ तो गड़बड़ हो रहा है।कई तरह की चर्चाएं होने लगी हैं।खरगे का राजनीतिक अनुभव 50 साल से ज्यादा का है।नीचे स्तर से राजनीति की शुरुआत कर उन्होंने इतना बड़ा मुकाम हासिल किया।खरगे ने उम्र के उस पड़ाव में पहुंच राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा पद पाया जहां नेता रिटायर कर दिए जाते हैं।इसके बाद भी खरगे के भाषणों को लेकर सवाल उठे तो हैरानी होती है।उनके नेता राहुल गांधी तो बोलते रहते हैं जिसके चलते वह विवादों में घिर जाते है।

उनको लेकर तो समझा जा सकता है कि राहुल गांधी जिस परिवेश में पले बढ़े हैं उसमें उन्हें कई बातों की जानकारी नहीं होगी।राहुल कम से कम ऐसी बात नहीं बोलते हैं कि विपक्ष को राजनीतिक लाभ मिले।वह नीतिगत सवाल उठा सरकार पर जरूर निशाना साधते। जाति धर्म पर जरूर नासमझी की बाते बोलते हैं,लेकिन वह बहुत गंभीर नहीं होती।हां इतना जरूर है कि राहुल गांधी ने बीते दस साल में अपने भाषणों में कुछ बातें फिक्स की हुई हैं।जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमला बोल अडानी – अंबानी को लेकर घेरना।आज कल संविधान खतरे में है।जातीय जनगणना,आरक्षण और बीच बीच में पिछड़ी जाति से न अफसर हैं और ना ही पत्रकार है बोलना आदि।राहुल एक तरह से जात पात की राजनीति के भरोसे सत्ता वापसी की उम्मीद कर रहे हैं।शायद उनके सलाहकारों ने उन्हें ऐसा ही समझाया होगा और वह उसी रास्ते पर चल रहे हैं।अनुभवी राजनीति के जानकार खरगे अगर अपने नेता को सलाह देते कि हमें मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरना चाहिए तो शायद तब बात कुछ और होती।

लेकिन खरगे तो जब से अध्यक्ष बने हैं ऐसी राजनीति कर रहे हैं जैसे कि वह राजनीति में नए हों।18 वीं लोकसभा के गठन के दौरान संसद का आरंभिक सत्र रहा हो या बजट सत्र खरगे इसी कोशिश में दिखाई दिए कि गांधी परिवार को अधिक से अधिक खुश किया जाये।उन जैसा अनुभवी नेता सभापति पर टिप्पणी से भी नहीं चूका।शायद इसलिए कि दूसरे सदन में उनके नेता राहुल गांधी स्पीकर और प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर बने हुए थे। उन्हें तब उम्मीद थी कि राजग सरकार लंबी नहीं चलेगी।ऐसे में क्या पता पीएम बनने का मौका मिल जाए।हालांकि ऐसा कुछ नहीं होता,कांग्रेस गलतफहमी में जी रही थी। हरियाणा चुनाव ने गलतफहमी दूर कर दी।खरगे जैसे अनुभवी नेता लोकसभा चुनाव के परिणामों का ठीक से विश्लेषण करते तो शायद उन्हें पता चल जाता कांग्रेस की चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं।लेकिन उन्होंने भी जय जय कार वाला रास्ता ही पकड़ कर रखा।

खरगे भी उम्र के अंतिम पड़ाव में गांधी परिवार के बीच में ऐसे फंस गए हैं कि उन्हें भी कुछ सूझ नहीं रहा।प्रियंका के नामांकन के दिन उनके साथ जो हुआ सो हुआ।इसके बाद खरगे ने कर्नाटक की अपनी सरकार की फ्री योजनाओं पर टिप्पणी कर पार्टी को परेशानी में डाल दिया।पार्टी सफाई देती रही।बीजेपी को मौका मिल गया।इसके बाद खरगे ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ पर टिप्पणी कर विवाद खड़ा कर दिया।योगी के गेरूए वस्त्रों से लेकर उनके बयानों को आतंकी कह बीजेपी को बड़ा मौका दे दिया।योगी हिंदुओं के ऐसे फेस बन गए हैं जिनकी चर्चा पूरे देश भर में हैं।लोकप्रियता के मामले में योगी का नंबर प्रधानमंत्री मोदी के बाद आता है।

हर राज्य में उनकी मांग हैं।खरगे जैसे अनुभवी नेता के बयान के बाद साधू संत तो हमलावर थे ही,योगी ने भी खरगे को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी।दिल्ली में अब यही चर्चा है कि खरगे गलती से गलती कर रहे हैं या कोई और बात है।क्योंकि खरगे कभी भी अपने को मणिशंकर अय्यर से तुलना नहीं करना चाहेंगे।खरगे जानते भी हैं उनकी पार्टी के नेताओं ने ही भगवा आतंकवाद जैसे शब्द की खोज कर पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया।मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चलते पार्टी आज इस हालत में पहुंच गई।हरियाणा की हार के बाद पार्टी का मनोबल पूरी तरह से टूटा हुआ है।महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे को धार दे रही।उत्तर प्रदेश के सीएम योगी का दिया नारा बटोगे तो कटोगे दोनों राज्यों में हिट हो रहा है। ऐसे में खरगे अगर टारगेट बनते हैं तो पार्टी और परेशानियों में घिर जायेगी।सब अनुभवी खरगे के हिस्से में आयेगा।

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