New Delhi : जीती हुई बाजी को यूं छीना जबड़े से

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The won bet was snatched from the jaws like this
हरियाणा मुख्यमंत्री नायब सैनी को समानित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी
  • संघ की सक्रियता से बेखबर रही कांग्रेस

नई दिल्ली।अजीत मेंदोला। हरियाणा को कैसे जीतना है इसके लिए संघ और भाजपा के प्रमुख नेताओं ने 29 जुलाई को 11अशोका रोड में पूरी रात बैठक कर रणनीति को अंजाम दिया था।संघ ने उस बैठक में बताया वह क्या कर रहे हैं और अब आगे क्या किया जाना है। संघ के दिशा निर्देश में बनी संयुक्त रणनीति ने हारी हुई दिख रही बाजी को जीत में बदल दिया।संघ की तरफ से इस बैठक में सह सर कार्यवाह अरुण कुमार शामिल हुए जबकि बीजेपी से संगठन महामंत्री बी एल संतोष,हरियाणा प्रभारी महामंत्री सतीश पूनिया,चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान,सह प्रभारी विप्लव देव,मुख्यमंत्री नायाब सिंह सैनी,पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर,प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल बारडोली आदि मौजूद थे और प्रदेश संघ के कुछ और नेता भी थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा हरियाणा पर पहले ही पूरी तरह से नजर रखे हुए थे। तीनों नेताओं की सहमति से रणनीति को चुपचाप आगे बढ़ाया। बैठक में संघ की तरफ से अरुण कुमार ने बताया कि कैसे कैसे प्रचार होगा और कैसे नाराज वोटर को मनाया जाएगा।इसके बाद बीजेपी और संघ काम पर जुट गए उधर कांग्रेस चुनाव से पहले ही जीत तय मान ऐसा व्यवहार करने लगी मानो सरकार बन ही गई।अपने घोषणा पत्र की चर्चा के बजाए आपस में ही उलझ गए।

कांग्रेस को यह आभास ही नहीं हुआ संघ ने गांव गांव,शहर शहर नाराज वोटरों को यह कर राजी करना शुरू कर दिया कि बीजेपी क्यों जरूरी है।सूत्रों का कहना है संघ की टोली वोट की बात नहीं करती थी, वह प्रधानमंत्री मोदी के फैसले और देश को विकास की राह में कैसे आगे ले जाना है उस पर फोकस रखती।वोटरों को काफी हद तक राजी कर लेते।मंदिर,आतंकवाद पर अंकुश,सीमा पर मजबूती,अनुच्छेद 370 खत्म करने जैसे राष्ट्रवाद के फैसले व अन्य विकास कार्यों का जिक्र कर वोटर को समझाया। कांग्रेस यह मान रही थी संघ बीजेपी से नाराज है।इसलिए जीत में कोई अड़चन नहीं आएगी। लेकिन संघ की छोटी छोटी टोलियां अपने तरीके से काम कर रही थी।

उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बाकी बीजेपी के नेता प्रचार में कांग्रेस को उसके अंदुरूनी झगड़े में उलझाए हुए थे।कांग्रेस हुड्डा परिवार , शैलजा और बाकी नेताओं के बीच सीएम की कुर्सी को लेकर चल रही लड़ाई में उलझ गई।दूसरी बड़ी गलती कांग्रेस ने यह हुई कि हुड्डा परिवार को आगे कर दिया ,जिससे जाट राजनीति हावी हो गई।इससे बाकी जातियों का ध्रुवीकरण हो गया।कांग्रेस जीत के घमंड में कुछ समझ ही नहीं पाई।

रही सही कसर शोशल मीडिया के प्रायोजित पत्रकारों ने पूरी कर दी।इन पत्रकारों ने कांग्रेस को जीत ही जीत दिखा ऐसा फंसाया कि वह जब तक समझती कि बीजेपी ने बाजी पलट दी तब तक वोटिंग का दिन करीब आ चुका था।गांधी परिवार भी वोटिंग से पहले समझ गया था हरियाणा का हाल भी मध्यप्रदेश की तरह हो गया है।जैसे कमलनाथ पर वहां भरोसा कर नुकसान उठाया वैसे ही हुड्डा परिवार पर भरोसा कर हरियाणा की जीती हुई बाजी भी हार में बदल गई।कांग्रेस के कर्ताधर्ता अब हार के बाद अपने को बचाने के लिए गड़बड़ी का राग अलाप रहे हैं।यूं कह सकते हैं कि संघ और बीजेपी के दिग्गजों ने कांग्रेस के जबड़े से जीत को छीन लिया।हालांकि प्रदेश के दिग्गजों ने रणनीति में उनका साथ दिया।पूर्व सीएम खट्टर रहे हों या मुख्यमंत्री सैनी चुपचाप लगे रहे। जिन प्रमुख दिग्गजों ने रणनीति को अंजाम तक पहुंचाया उनके बारे में जानना जरूरी है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो बीजेपी की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं।गुजरात से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर या फिर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बीजेपी की 2017 में बड़ी जीत।शाह चुपचाप अपने काम को अंजाम तक पहुंचाते हैं।शाह प्रधानमंत्री मोदी के सबसे भरोसे वाले माने जाते हैं।हरियाणा में शाह सीधे सामने नहीं आए लेकिन बहुत बारीक नजर रख निर्देश दे रहे थे।

अरुण कुमार 

अरुण कुमार

चुपचाप काम करने में विश्वास रखने वाले अरुण कुमार मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले है।हरियाणा की कमान संघ की तरफ से अरुण कुमार ही संभाले हुए थे।हालांकि सह सरकार्यवाह के रूप में। उनका केंद्र आज कल भोपाल है।बाल्यकाल से ही संघ से जुड़ गए थे।संघ और बीजेपी के बीच संपर्क सूत्र का काम करते हैं।शुरुआत दिल्ली के जिला प्रचारक से की।उसके बाद कई प्रदेशों में प्रांत प्रचारक रहे।

इनमें हरियाणा भी उन्होंने प्रांत प्रचारक के रूप में देखा हुआ था।लोकसभा चुनाव में बीजेपी का उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाने के बाद संघ सक्रिय हुआ।तमाम बैठकें हुई।फिर संघ ने वापस अपने तरीके से सक्रियता बढ़ाई।संघ की सक्रियता से बेखबर कांग्रेस को अपनी जीत आसान दिखने लगी,लेकिन जब परिणाम सामने आए तो सब चौंक गए।कांग्रेस हार के बाद खिसियानी बिल्ली जैसा व्यवहार करने लगी।जबकि संघ और बीजेपी की सूझबूझ ने हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया।

धर्मेंद्र प्रधान 

धर्मेंद्र प्रधान

उड़ीसा के रहने वाले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री शाह के सबसे भरोसे मंद माने जाते हैं।पार्टी के जितने भी गोपनीय आपरेशन होते हैं प्रधान की उन्हें अंजाम तक पहुंचाने में भूमिका रहती रही है।लो प्रोफाइल रह काम करने में विश्वास करते हैं।उड़ीसा जैसे प्रदेश में बीजेपी को सत्ता में लाने में भी उनका रोल रहा है। प्रधान देश की राजनीति पर बारीकी से नजर रखते हैं।पर्दे के पीछे हरियाणा को जीत की दहलीज तक पहुंचाने में प्रधान की भी एक भूमिका थी।उन्होंने संघ और आलाकमान के दिशा निर्देशों को अंजाम तक पहुंचाया।टिकट वितरण और उसके बाद उपजी नाराजगी को समाप्त कराने में भी अहम भूमिका निभाई।

सतीश पूनिया

सतीश पूनिया

राजस्थान प्रदेश के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जाट नेता सतीश पूनिया ने प्रभारी मंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारी को अंजाम तक पहुंचाया।बीजेपी आलाकमान ने कांग्रेस की जाट राजनीति को साधने के लिए ही पूनिया को जिम्मेदारी दी।पूनिया पहले ऐसा नेता थे जिन्होंने पार्टी की तरफ से दलित और पिछड़ों की राजनीति का दांव खेला।उन्होंने कांग्रेस को चुनौती दी कि अगर हिम्मत है तो वह किसी दलित या पिछड़े को सीएम फेस घोषित करे।बीजेपी ने सैनी के रूप में ओबीसी का सीएम फेस पहले ही घोषित किया हुआ था।बीजेपी ने जाट राजनीति को कायदे से साधा।पूनिया ने भी रणनीति के तहत छोटी छोटी बैठकें कर पार्टी के मैसेज को सफलता पूर्वक पहुंचाया।पूनिया संगठन की ठीक ठाक समझ रखते हैं।राजस्थान में साढ़े चार साल से ज्यादा समय तक अध्यक्ष रहते हुए अकेले ही पार्टी की नीतियों को जन जन तक पहुंचाने में जुटे रहे।कोई नेता साथ आया या नहीं उसकी परवाह नहीं की

विप्लव देव
विप्लव देव

त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री विप्लव देव भी राजनीति की गहरी समझ रखते हैं।त्रिपुरा जैसे राज्य में वामदलों के 25 साल के शासन को समाप्त कर पार्टी की सत्ता में वापसी में विप्लव देव की भी प्रमुख भूमिका रही है।उन्हें इनाम स्वरूप त्रिपुरा का मुख्यमंत्री भी बनाया।पार्टी आलाकमान ने रणनीति के तहत उन्हें त्रिपुरा के बाद हरियाणा प्रभारी महामंत्री की जिम्मेदारी दी थी।इसके बाद में उन्हें प्रधान के साथ चुनाव में सह प्रभारी लगाया गया।प्रभारी महामंत्री के रूप में वह हरियाणा को बारीकी से समझ चुके थे,इसलिए चुनाव के समय उनके सुझाव और जानकारियां पार्टी के बहुत काम आई।

मनोहर लाल खट्टर
मनोहर लाल खट्टर

पूर्व मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी की टीम के अहम सदस्य मनोहर लाल खट्टर विरोधियों और मीडिया के कु प्रचार से दूर पार्टी के दिशा निर्देश पर चुपचाप अपने काम पर लगे रहे।किसी को कोई आभास ही नहीं होने दिया कि खट्टर क्या कर रहे हैं।चुनाव परिणाम वाले दिन खट्टर ने सबको चौंका दिया। साढ़े 9 साल का उनका मुख्यमंत्री का कार्यकाल , उनका व्यवहार और फैसलों ने जनता के दिल पर छोड़ी हुई अमिट छाप काम आ गई।

नायाब सिंह सैनी
नायाब सिंह सैनी

मुख्यमंत्री सैनी का पूरा राजनीतिक भविष्य दांव पर था। विरोधी उन्हें लेकर तमाम बाते करते।लेकिन मुख्यमंत्री सैनी मुस्कराते हुए शालीनता से विरोधियों को जवाब देते। सैनी ने अपना जीत का आत्मविश्वास अंतिम समय तक नहीं छोड़ा।अपनी पूरी टीम का भी आत्मविश्वास नहीं डिगने दिया।जब रिजल्ट आया वह सही साबित हुए।