New Delhi News : प्रियंका के लिए भी राह आसान नहीं

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The road is not easy for Priyanka either
  • अब संसद के नजारे पर रहेंगी नजरें

(New Delhi News) नई दिल्ली। आखिरकार गांधी नेहरू परिवार की एक और पीढ़ी प्रियंका गांधी चुनावी राजनीति में उतर आई।तीन दशक से पर्दे के पीछे से राजनीति में सक्रिय प्रियंका गांधी ने केरल की वायनाड लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है। उनकी जीत की शतप्रतिशत संभावना जताई जा रही है।क्योंकि मुस्लिम बाहुल्य वायनाड सीट पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग का केरल में सबसे पुराना गठबंधन है।

जब तक मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ है तब तक उसको हरा पाना बड़ा मुश्किल होगा।वायनाड चुनाव को लेकर आम जन की तो इतनी भर दिलचस्पी है कि प्रियंका क्या अपने भाई राहुल गांधी से ज्यादा मतों से जीतती है या कम से। लेकिन राजनीतिक रूप से असल सवाल यह है कि क्या गांधी परिवार ने प्रियंका को चुनावी राजनीति में ला कर सही फैसला किया है?क्योंकि कांग्रेस अभी जिस दौर से गुजर रही है उसमें प्रियंका के चुनाव जीतने से पार्टी को कोई लाभ होगा इसमें भी संदेह है।लेकिन विपक्ष को कांग्रेस पर हमले का बड़ा मौका मिल गया।ये तय है कि संसद के अंदर भी प्रियंका अपने आप ही एक पावर सेंटर बन जाएगी।सदन में करवाई के दौरान भी इसका नजारा देखने को मिल सकता है।

प्रियंका चुनाव जीतने के बाद कोई करिश्मा अलग से करेंगी लगता नहीं है।क्योंकि अभी तक उन्हें जो मौका मिला उसमें वह ज्यादा सफल नहीं रही।उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में डेढ़ दशक तक उन्होंने पार्टी में जान डालने की तमाम कोशिशें की,लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।सबसे पहले उनकी पहल प्रशांत किशोर जोड़े गए ,फिर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर विधानसभा का चुनाव लड़ा गया ।जिसमें पार्टी की करारी हार हुई।उसके बाद उन्होंने खुद उत्तर प्रदेश की कमान संभाल कई प्रयोग किए लेकिन पार्टी सबसे बुरे दौर में पहुंच गई।

2022 के विधानसभा चुनाव में तो पार्टी का मत प्रतिशत घट कर तीन प्रतिशत तक पहुंच गया। नारी हूं लड़ सकती हूं,महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट,नए चेहरों को मौका सब प्रयोग फेल रहे। सवाल तब भी उठे थे कि प्रियंका को गलत समय पर सामने लाया गया या वह भी देश की बदलती राजनीति नहीं समझ पा रही हैं।पार्टी ने उनके साथ कम अनुभव वाले ऐसे सचिव लगाए जिनकी छवि को लेकर ही सवाल उठे।एक तरह से उनकी असल राजनीतिक शुरुआत बहुत ही निराशाजनक रही।वह अपनी टीम की भी ठीक से पहचान नहीं कर पाई।

उन्होंने उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब और राजस्थान में भी राजनीतिक दखल दिया वहां भी उनका दांव उल्टा पड़ा।पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के समय भी प्रियंका सुर्खियों में रही। उस समय चर्चाएं तो यहां तक उठी थी कि वह खुद अध्यक्ष बनना चाहती थी। मां सोनिया गांधी ने उन्हें हरी झंडी नहीं दी तब मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष बने।

इसके बाद एक चर्चा यह भी थी कि वह पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी जैसे कार्यकारी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष जैसा पद चाहती थी।परिवार इसके लिए भी तैयार नहीं हुआ।कहा जाता है कि प्रियंका पहले अपनी मां की जगह राज्यसभा जाना चाहती थी।वहां भी बात नहीं बनी।एक चर्चा यह भी है लोकसभा चुनाव के समय प्रियंका ने रायबरेली से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी।चर्चाएं यहां हैं कि परिवार इसके लिए तैयार नहीं हुआ फिर उनके पति राबर्ट वाड्रा के अमेठी से चुनाव लड़ने की खबरों ने खूब सुर्खियां बटोरी।वाड्रा ने खुद मीडिया के सामने आ कर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी।

आखिर परिवार के दबाव में इच्छा के विरुद्ध राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ने को तैयार हुए।राहुल शायद जानते थे कि प्रियंका के चुनावी राजनीति में आने से विपक्ष को मौका मिलेगा।इसलिए वह उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे।

राहुल जानते थे अगर रायबरेली से जीते तो प्रियंका वायनाड से लड़ेगी।इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रियंका गांधी लंबे समय चुनावी राजनीति में आना चाहती थी।लेकिन परिवार तैयार नहीं था। राहुल गांधी की अगुवाई में पार्टी उतनी सफलता हासिल नहीं कर पाई जिससे पार्टी खड़ी दिखाई देती।2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 99 सीट जीत मान लिया कि राहुल ने पार्टी की वापसी करा दी।

लेकिन इस बात का आंकलन नहीं किया कि पार्टी ने अपने बलबूते जीत हासिल नहीं की।उत्तर से लेकर दक्षिण तक कांग्रेस उस ढंग का प्रदर्शन नहीं कर पाई जो उपलब्धि जैसा दिखता।पार्टी ने इस बात का आंकलन ही नहीं किया कि जीत उन्हें बीजेपी की गलतियों की वजह से मिली। उत्तर प्रदेश,राजस्थान और मध्यप्रदेश का ही पार्टी ने ठीक से मंथन किया होता तो हरियाणा शायद नहीं हारते।अब जब प्रियंका चुनावी राजनीति में कदम रख चुकी हैं।

उनका रिजल्ट ऐसे समय आएगा जब महाराष्ट्र और झारखंड के भी रिजल्ट आ रहे होंगे।प्रियंका की जीत पर किसी को संदेह नहीं है,लेकिन असल तो महाराष्ट्र और झारखंड हैं।इन दोनों राज्यों में बीजेपी ने बाजी पलट दी तो फिर कांग्रेस के लिए केरल के चुनाव से पहले संभल पाना मुश्किल होगा।

पार्टी में फिर सवाल उठेंगे जिम्मेदार कौन।इन दोनों राज्यों के बाद दिल्ली ,बिहार का नंबर है।फिर 2026 में केरल का नंबर आएगा।जहां पर कांग्रेस वाले गठबंधन की इस बार जीत की एक मात्र संभावना है।तब फिर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में असर दिखने लगेगा।केरल जीते तो कांग्रेसी ही खुद प्रियंका को श्रेय देंगे। बाम दल वाले गठबंधन 2021 की तरह उल्ट फेर कर दिया तो फिर कांग्रेस नेतृत्व को लेकर बातें उठेंगी।क्योंकि तब प्रियंका भी सवालों के घेरे में आ जाएगी।वैसे भी आज के दिन कांग्रेस में पावर सेंटरों की संख्या पहले ही पांच पांच बने हुए है।सोनिया गांधी,राहुल गांधी,प्रियंका गांधी,मल्लिकार्जुन खरगे और के सी वेणुगोपाल।कहने के लिए वेणुगोपाल संगठन के महासचिव हैं,लेकिन वह संगठन से ज्यादा गांधी परिवार के दौरों पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं।

राहुल के इर्दगिर्द ही ज्यादा खड़े दिखाई देते हैं।ऐसे में कमजोर संगठन को लेकर सवाल उठने लाजमी हैं। हालांकि इनमें अभी राहुल ही असल बॉस हैं।कांग्रेस की समस्या यही है कि राहुल गांधी अपने नेताओं से सीधे संवाद नहीं करते हैं। कोटरी में शामिल नेता जो समझाते उसे ही वह सही मानते हैं।राजनीति में कांग्रेसी आस्था बदलने में देरी नहीं लगाते है।प्रियंका के पर्चा भरने वाले दिन ही टीवी में बढ़चढकर देखने वाली बयानबाजी थी।वायनाड के परिणाम वाले दिन प्रियंका के गुणगान में बयानबाजी बढ़ेगी।

सोनिया और राहुल भी जानते हैं कि पार्टी का प्रदर्शन नहीं सुधरा तो कांग्रेसी गुटबाजी को कभी भी हवा दे सकते हैं।महाराष्ट्र और झारखंड का प्रदर्शन अगर ठीक ठाक रहा तो कांग्रेस की स्थिति ठीक रहेगी।हारे तो फिर परेशानियां बढ़ेगी।केरल में जीते तो देखना होगा कांग्रेसी उस समय किसे श्रेय देते हैं।मतलब प्रियंका गांधी के लिए भी चुनौतियां उतनी ही होंगी जितनी राहुल की।संगठन को ताकत दिए बिना सहयोगियों की मदद से चुनाव नहीं जीता जा सकता है।यह प्रियंका को भी समझना होगा।

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