New Delhi News : जर्जर होता इण्डी गठबंधन : 2029 की भविष्यवाणी तो नहीं?

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The crumbling Indian alliance Is it a prophecy for 2029

(New Delhi News) नई दिल्ली। मतभिन्नता, विचारों के एकात्मकता की कमी, स्वार्थ सिद्धि के फेविकोल से सिर्फ़ मोदी को हराने के उद्देश्य से एक दूसरे के धुर विरोधियों का जमावड़ा प्रारंभ से ही संशय के बादलों से घिरा रहा है । यह बादल जहां मर्ज़ी , जब मर्ज़ी अनायास ही बरस कर गठबंधन के दलों को असामंजस्य के कीचड़ और भँवर के दलदल में फँसा देते हैं और नतीजों के समय हर बार एक ही डफली ईवीएम ने हरा दिया, निर्वाचन आयोग ने पक्षपात कर दिया इत्यादि इत्यादि का भोपूँ बजाते हैं। अपना स्वयं का सच्चा आत्मावलोकन कभी किया ही नहीं या चमचों से घिरे इंडीं गठबंधन के स्वयंभू नेता राहुल गांधी को इसका मौक़ा ही नहीं देते ।

लोकसभा के चुनाव में मिलीं 99 सीटों के लंगड़े लूले घोड़े के विजयी रथ पर एक टांग से नृत्य करते राहुल सोच रहे थे की उन्होंने विश्व विजय कर ली है और खंडित, विखंडित और अर्द्धविक्षिप्त दलों का अघोषित नेता भी मैं ही हूँ और राजशाही कांग्रेस प्राइवेट लिमिटेड में जैसे उनका वीटो चलता है इंडी गठबंधन की सभी पार्टियों में भी वैसा ही तानाशाही आदेश चलेगा।

अभी हाल ही में हरियाणा में मिले झन्नाटेदार थप्पड़ के बाद महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों और उनके साथ उत्तर प्रदेश समेत पंद्रह राज्यों में हो रहे दो लोकसभा छेत्रों और 48 विधान सभाओं में हो रहे उपचुनावों से झांक रहा विपक्षी एकजुटता का दृश्य देखकर जिनकी कुंभकर्णी निंद्रा अभी भी नहीं टूटी उनके धैर्य और आस की दाद देना तो बनता ही है।

हरियाणा में जो इनका हश्र नहीं होना चाहिए था वो तो हो ही गया लेकिन उसके बाद जो छीछालेदर कांग्रेस और इसके स्वयंभू नेता राहुल गांधी की इंडी गठबंधन के लगभग सभी नेताओं और पार्टियों ने की वह दर्शा रहा है की 2029 में या उससे पहले होने वाले विधान सभा चुनावों में इस जर्जर होते इण्डी गठबंधन का क्या हश्र होने वाला है।

मजबूरी देखो ज़बरदस्ती दधीचि भाव में पहुँचा दिए गए राहुल गांधी के प्रवक्ता और इण्डी गठबंधन की अन्य पार्टियों के प्रवक्ता इण्डी गठबंधन में चल रही खींचतान को अपनी स्ट्रेटेजी का अंग बताते हुए गौरान्वित महसूस करते हुए सच्चाई छुपाते नज़र आते हैं। और असलियत सामने आते ही बगले झांकते हैं।

अभी हाल ही में जम्मू कश्मीर में हुए चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के साथी नेशनल कांफ्रेंस ने कांग्रेस पर ही दोष मढ़ दिया की कांग्रेस ने जम्मू में दिल से चुनाव ही नहीं लड़ा और वहाँ हम हार गए, आप पार्टी की हरियाणा में हर जगह जमानत ज़ब्त हो गई और नतीजों के बाद इण्डी गठबंधन को ठेंगा दिखाते हुये कह दिया कि दिल्ली में आप चुनाव अकेले लड़ेगी, ज्ञातव्य हो कि लोकसभा का चुनाव दिल्ली में कांग्रेस और आप पार्टी मिलकर चुनाव लड़े थे।

हरियाणा चुनाव का नतीजा आते ही समाजवादी के अखिलेश ने बिना कांग्रेस को पूछे उत्तर प्रदेश में नौ उपचुनावों में से छः पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये और अंततः कह दिया कांग्रेस के लिए हम मुश्किल वाली दो सीटें छोड़ सकते हैं। इन सीटों पर हार सुनिश्चित थी और अपनी झेंप मिटाने के लिए समर्पण भाव में अखिलेश के सामने नतमस्तक होते हुए कह दिया सभी नौ सीटों पर आप ही लड़ लो और इसे स्ट्रेटेजी का नाम दे दिया, यदि यही स्ट्रेटेजी थी तो अखिलेश ने मध्य प्रदेश के बुधनी में भाजपा के सामने कांग्रेस का उम्मीदवार होते हुए समाजवादी का उम्मीदवार क्यूँ खड़ा कर दिया, महाराष्ट्र में जो कांग्रेस, नेशनल कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट) और समाजवादी पार्टी में टिकटों का जो डिस्को चल रहा है वह इण्डी गठबंधन के एकता की पोल चीख़ चीख कर सुना रहा है।

आज ही उद्धव गट के प्रवक्ता ने कह दिया कि इण्डी गठबंधन सिर्फ़ लोकसभा के लिए था , विधान सभा के लिए नहीं है। जहां समाजवादियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा की थी इनकी महाविनाश अघाड़ी ने उन्हीं सीटों पर समाजवादियों के उम्मीदवारों के सामने अपने उम्मीदवार घोषित कर इण्डी गठबंधन एकता की हवा निकाल दी है। इस घटनाक्रम के बाद ग़ुस्से में तिलमिलाये अखिलेश यादव ने कह दिया कि अब हम और कई जगह महाराष्ट्र में अपने उम्मीदवार उतारने के लिए स्वतंत्र हैं।

उधर वायनाड में गठबंधन के साथी कम्युनिस्टों ने कांग्रेस की प्रियंका के सामने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। उधर झारखंड में भी राज़द झामूमो और कांग्रेस को आँखें दिखा रहा है , ममता बंगाल में कांग्रेस और कम्युनिस्टों को कभी नज़दीक नहीं आने देती।

इस सबके बाद भी झूठ, फ़रेब, मक्कारी और भ्रम की गाड़ी पर सवार होकर इंडी गठबंधन स्ट्रेटेजी के नाम पर एकता की नौटंकी कर रहा है और एक दूसरे को ही पछाड़ने में अपनी पूरी ताक़त लगा रहा है।

यदि यही हाल रहा और इण्डी दो चार चुनाव और हार गये तो हताश , निराश, परेशान गठबंधन कहीं 2029 से पहले ही पस्त होकर बाहर ना हो जाये। विदेशी निर्देशकों की टोली और मदद भी फुस्स ना हो जाये क्यूँकि उधर एनडीए में भी मतभिन्नता होते हुए भी हर चुनाव मज़बूती और एकजुटता के साथ लड़ते दिखाई देते हैं । संभवतः इसका कारण उनके पास सर्वस्वीकार्य नरेंद्र मोदी का नेतृत्व है।

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