- राजनीति को हल्के में लेना महंगा पड़ेगा
(New Delhi News) अजीत मेंदोला। नई दिल्ली।लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी आखिर चाहते क्या हैं? कौन सी राजनीति कर रहे हैं ,समझ से परे हो गया है।140 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष,लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता,कांग्रेस के पीएम पद के चेहरे,राजनीति में लगभग 20 साल से ज्यादा समय से सक्रिय,उम्र 50 से ऊपर मतलब परिपक्व हो जाने वाली उम्र।इतना सब होने के बाद भी संसद प्रांगण में मुखौटा वाला खेल खेलना।वह भी प्रधानमंत्री जैसे अहम पद को लेकर।
मुखौटा पहने सांसद भी भूल गए कि प्रधानमंत्री के पद की अपनी गरिमा होती है
बड़ा अजीब सा लगता है।कांग्रेस के दो सांसद अपने नेता को खुश करने के लिए सोमवार को संसद प्रांगण में पहुंच मुखौटा वाला खेल खेलने लगे।एक सांसद ने प्रधानमंत्री मोदी का मुखौटा पहना हुआ था तो दूसरे ने उद्योगपति गौतम अडानी का। यहां तक तो बात ठीक थी।मुखौटा पहन विरोध किया।लेकिन बात तब दिलचस्प हुईं जब प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी खेल में शामिल हो खुद वीडियो बना सवाल जवाब करने लगे।मुखौटा पहने सांसद भी भूल गए कि प्रधानमंत्री के पद की अपनी गरिमा होती है।ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जो नहीं होना चाहिए।राहुल भी अजीब सवाल कर रहे थे।ऐसा लग रहा था कि बच्चों का खेल खेल रहे हों।
प्रतिपक्ष का नेता ऐसा खेल खेले तो अजीब लगना स्वाभाविक है।इसमें कोई दो राय नहीं है कि विपक्ष को सरकार का विरोध करने का पूरा अधिकार है।लोकतंत्र में विरोध भी जरूरी है।विपक्ष का होना भी जरूरी है।लेकिन प्रतिपक्ष के नेता होने के नाते राहुल गांधी 18 वीं लोकसभा के गठन के बाद से जो राजनीति कर रहे हैं वह समझ से परे हो गई है।मतलब विरोध के लिए विरोध की राजनीति।बात कोई हो न हो बस विरोध करते रहो। सांसदों के शपथ ग्रहण के समय राहुल गांधी ने 18 वीं लोकसभा के पहले सत्र में जो रणनीति अपनाई वह भी हैरान करने वाली थी।फिर बजट सत्र में जो हंगामा काटा वह भी हैरान करने वाला था।
कम से कम सदन की गरिमा और पीएम के पद को तो ध्यान रखा जाना चाहिए
एक गंभीरता विपक्ष में जो होनी चाहिए थी वह दिखी नहीं।इसके बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हो गई। कहा जा रहा है हार के एक कारणों में एक कारण राहुल गांधी का मोदी सरकार के खिलाफ अपनाई गई रणनीति को भी माना जा रहा है।आम जन को राहुल का विरोध करने का तरीका समझ में नहीं आया।राहुल भले इंसान हो सकते हैं।लेकिन इतना तो उन्हें समझना चाहिए कि कब क्या विरोध किया जाना चाहिए और क्या तरीका होना चाहिए।ये नहीं कि जो जैसा समझाए वही कर बैठो।कम से कम सदन की गरिमा और पीएम के पद को तो ध्यान रखा जाना चाहिए।क्योंकि आम जन इस तरह की हरकतें पसंद नहीं करता है।लेकिन राहुल हैं कि कुछ समझने को तैयार नहीं हैं।
पार्टी नेताओं ने 2019 के आम चुनाव के समय भी समझाया था।तब राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष थे।उन्होंने उस समय अपने नए और कुछ युवा सलाहकारों के कहने पर चौकीदार चोर है को मुद्दा बना प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला था।राहुल की चुनावी जनसभाओं में चौकीदार चोर है जैसे नारे की धूम रहती थी।हालांकि पार्टी के वरिष्ठ और प्रमुख नेताओं ने राहुल को समझाया भी था कि ,प्रधानमंत्री के पद की गरिमा रखी जानी चाहिए।
इस तरह की निचली स्तर की राजनीति से बचा जाना चाहिए।लेकिन राहुल माने नहीं, वह अकेले ही चोर चोर के नारे लगाने में लगे रहे।नतीजन चुनाव में करारी हार हो गई।राहुल ने अपने नेताओं को हार का जिम्मेदार बता झाड़ लगाई कि तुम लोग चौकीदार चोर बोलने से डर गए इसलिए पार्टी हार गई।खैर उसके बाद जो हुआ सो हुआ।अब राहुल आम जन से जुड़े सभी मुद्दों को भुला लंबे समय से अडानी के विरोध पर अटके हुए हैं।
राहुल संसद में मुखौटा मुखौटा खेल रहे हैं
इसका असर यह है कि न चाहते हुए भी पूरी पार्टी उनकी हां में हां मिला रही है।सदन के बाहर पूरी पार्टी ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।असल मुद्दे गायब थे।किसान सड़कों पर हैं।उन पर लाठी चार्ज हो रहा है।राहुल संसद में मुखौटा मुखौटा खेल रहे हैं।महंगाई,भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दे गए जमाने की बात हो गई।सोमवार को उनकी मां सोनिया गांधी का भी जन्मदिन था।कुछ गंभीर मुद्दे संसद के अंदर बाहर उठाए जाने चाहिए थे।लेकिन राहुल संसद के बाहर अडानी अडानी खेल रहे थे।लेकिन बीजेपी ने सोनिया गांधी के जन्मदिन पर जार्ज सोरोस का मुद्दा संसद में उठा कांग्रेस को आड़े हाथों ले लिया।अब कांग्रेस जो भी सफाई दे बीजेपी छोड़ने वाली है नहीं।राहुल अगर ऐसी ही राजनीति करते रहे थे तो पता चलेगा कि सारे सहयोगी दल भाग गए।
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