New Delhi News : प्रियंका जिलाध्यक्षों को ताकत देने के मूड में
प्रियंका जिलाध्यक्षों को ताकत देने के मूड में
अजीत मेंदोला
(New Delhi News) नई दिल्ली। लगातार हार के बाद कांग्रेस अपने संगठन को मजबूती देने के लिए निचले स्तर पर जिलाध्यक्षों को बड़ी ताकत देने जा रही है।मतलब लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले किसी भी प्रत्याशी के चयन में जिलाध्यक्षों की भी अहम भूमिका होगी।जिलाध्यक्ष को नाम फाइनल करने वाली केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में भी शामिल किया जाएगा।लेकिन एक शर्त होगी जिलाध्यक्ष रहते खुद के चुनाव लड़ने के लिए कोई टिकट नहीं मिलेगा।हालांकि कांग्रेस में कायदे कानून पहले से ही बहुत सारे हैं।टिकटों के चयन में पहली लिस्ट जिलाध्यक्षों से ही मांगी जाती है,लेकिन वो लिस्ट ऊपर तक ही नहीं पहुंच पाती है।चुनाव न लड़ने का कायदा केंद से लेकर प्रदेश स्तर तक के पदाधिकारियों के लिए भी है,लेकिन ऐसा होता नहीं है।लेकिन अब कांग्रेस की दूसरी सर्वोच्च नेता प्रियंका गांधी इस फैसले को लेकर आगे बढ़ रही हैं।
प्रत्याशियों के चयन में हो बड़ी भूमिका
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने लगातार हार के बाद संगठन पर सवाल उठने पर निचले स्तर पर पार्टी को चुस्त दुरस्त करने के लिए एक कमेटी बनाई थी।उस कमेटी की एक अहम सदस्य प्रियंका गांधी भी थी।उस कमेटी की रिपोर्ट पर कांग्रेस के पदाधिकारियों ने मंथन कर मोटे तौर पर तय किया है कि पहले जिलाध्यक्षों के चुनाव को निष्पक्ष बनाया जाए उसके बाद प्रत्याशियों के चयन में उनकी भूमिका तय की जाए।हालांकि अंतिम फैसला अगले महीने अहमदाबाद में होने वाली एआईसीसी की बैठक में किया जाएगा।उससे पूर्व इसी माह के आखिर में पूरे देशभर के कांग्रेस के जिलाध्यक्ष दिल्ली में जुटेंगे।उनके साथ 27,28 मार्च और 3 अप्रैल को मंथन होगा।
इस मंथन में जो कुछ निकलेगा उस को एआईसीसी की बैठक में पेश किया जाएगा।कांग्रेस इस तरह के फैसले कई बार कर चुकी हैं,लेकिन उन्हें अमल में लाया ही नहीं जाता है।2022 के उदयपुर के संकल्प में तमाम फैसले किए गए लेकिन किसी पर अमल नहीं हुआ।इसलिए कांग्रेस का संगठन केंद्र से लेकर राज्य तक कमजोर हो गया।सालों से जमे पदाधिकारी यथावत बने रहे।जबकि तय हुआ था पांच साल से ज्यादा जो भी पदाधिकारी होगा उसे पद छोड़ना पड़ेगा और तीन साल तक उसे कोई पद नहीं मिलेगा।उम्मीद थी कि इससे नए चेहरों को अधिक मौका मिलेगा ऐसा कुछ हुआ नहीं।लगातार हार के बाद पार्टी निचले स्तर पर संगठन में सुधारीकरण की जो बात कर रही है उसके पीछे की रणनीति कुछ और है।प्रियंका गांधी लंबे समय से बिना पद की हैं।उन जैसे स्तर के नेता के लिए पार्टी में दो ही पद हैं।
एक पार्टी उपाध्यक्ष का और दूसरा संगठन महासचिव का।राहुल गांधी उपाध्यक्ष पद अभी बनाना नहीं चाहते हैं।संगठन महासचिव पद पहले से के सी वेणुगोपाल के पास है।जिन्हें राहुल अभी हटाने के मूड में नहीं है। ऐसे में एक नया पद केंद्रीय चुनाव प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष पद का बनता है।उदयपुर संकल्प में इस कमेटी को बनाने का फैसला हुआ था। ऐसे संकेत हैं कि 3 साल बाद अहमदाबाद में उसे अमल में लाया जा सकता है।सूत्र बताते हैं कि प्रियंका गांधी को केंद्रीय चुनाव प्रबंधन कमेटी की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
यह पद संगठन महासचिव पद के बराबर माना जाएगा।मतलब राज्यों में चुनाव से संबंध सारे फैसले पहले चुनाव प्रबंधन कमेटी करेगी फिर वह अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को सौंपेगी।देखा जाए तो यह अहम ओर बड़ा पद होगा।प्रियंका गांधी को भी एक तरह से अपने को फिर साबित करने का मौका मिलेगा।क्योंकि अभी तक उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली।