New Delhi News : उम्मीद राहुल का गुस्सा इस बार कुछ रंग लाएगा

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Hopefully Rahul's anger will bring some results this time

(New Delhi News) नई दिल्ली। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी हरियाणा की हार के बाद से गुस्से से भरे बैठे हैं।उन्होंने अपने नेताओं की साथ हुई बैठक में गुस्सा उतारा भी।लेकिन गुस्सा कम नहीं हुआ।यही नहीं गुस्से में तमतमाते हुए कांग्रेस मुख्यालय भी आए।कोषाध्यक्ष अजय माकन के कमरे में काफी देर बैठे रहे, किसी से बात किए बिना वहां से चले गए।

जब वह कांग्रेस मुख्यालय में बैठे थे,एक भी पदाधिकारी वहां मौजूद नहीं था।शायद राहुल हरियाणा की हार से अब समझ गए होंगे कि जिस टीम पर वह सबसे ज्यादा भरोसा कर रहे हैं ,उसी में ही असल कमी है।समझा जा रहा है कि राहुल का गुस्सा इस बार शायद कुछ रंग लाए और नए साल में नई कांग्रेस दिखाई दे।राहुल की टीम में लंबे समय से उनका अपना स्टाफ तो है ही जिस पर भरोसा करते हैं,लेकिन राजनीतिक तौर पर पार्टी मुख्यालय में आज के दिन उनके सबसे भरोसे मंद संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल पार्टी में अध्यक्ष से भी ज्यादा ताकतवर माने जाने वाले नेताओं में गिने जाते है।उनके साथ दूसरे नंबर पर अजय माकन आते है।एक अन्य नाम मीडिया और सोशल मीडिया तक पार्टी की उपस्थिति दर्ज कराने वाले जयराम रमेश है।

चौकड़ी पर ही बताई जा रही है असल नाराजगी

सैम पित्रोदा विदेश में बैठ दिल्ली की राजनीति करवाते हैं।ये भी भरोसे वालों में आते हैं,लेकिन पार्टी संगठन में इनका दखल नहीं होता है।इन्हीं सभी के कहने पर राहुल गांधी ने लोकसभा में 99 सीट जीतने का ऐसा जश्न मनाया कि पार्टी की असल कमजोरियों को उजागर ही नहीं होने दिया।इन नेताओं ने राहुल को समझने ही नहीं दिया कि हिंदी बेल्ट के प्रमुख राज्यों में पार्टी बीजेपी से सीधे मुकाबले में बुरी तरह हारी है। मध्यप्रदेश ,उत्तराखंड,हिमाचल,दिल्ली जैसे राज्य में जीरो सीट आई।राहुल गांधी को भी समझा दिया अब कोई चिंता नहीं है।99 सीट में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बनी राजग सरकार को गिरा देंगे।

राहुल को आज तक यह नहीं समझने दिया कि संगठन और पार्टी को बूथ तक ताकतवर बनाना जरूरी है।एक बात राहुल को समझाई हुई है कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बोलते रहो जनता जब नाराज होगी कांग्रेस को अपने आप वोट करेगी।इन्हीं रणनीतिकार चापलूसों की वजह से पार्टी के पुराने जानकार अधिकांश नेताओं ने अपने को साइड कर लिया है या पार्टी छोड़कर जा चुके हैं।

राजनीति की समझ रखने वाले अनुभवी मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष तो हैं,लेकिन आम जन में यह चर्चा है कि तिकड़ी या चौकड़ी के सामने खरगे भी असहाय हैं।चुनाव बीच राहुल का विदेश दौरा,विवादास्पद बयान सब पित्रोदा की मेहरबानियां थी।

इन नेताओं ने पार्टी को मजबूत बनाने के बजाए सत्ता के लालच में बेमेल वाला इंडिया गठबंधन बना कांग्रेस को कमजोर ही किया।शोशल मीडिया में महिला को लेकर चल रही खबर भी राहुल समझेंगे या नहीं यह भी देखना होगा।गठबंधन के घटक दल पहले दिन से ही कांग्रेस को अपने हिसाब से चलाने में लग गए थे। ऐसी गलती सोनिया गांधी से 2004 में भी हुई थी।जिसका खामियाजा कांग्रेस आज तक भुगत रही है।

सोनिया गांधी ने सत्ता की खातिर दस साल बिना बहुमत पाए सहयोगियों की मदद से गठबंधन की सरकार तो चलाई लेकिन पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश ही नहीं की।कांग्रेस 300 सीट जीतने के बजाए 150 तक के जुगाड को मान राजनीति करने लगी।राहुल को भी उसी दिशा में मोड़ दिया।दरअसल कांग्रेस के बचे हुए इन नेताओं को लगता था कि इस देश में उनके अलावा कोई भी 5 साल से ज्यादा राज नहीं कर सकता।इसलिए राहुल के करीबियों ने पहले पांच साल संगठन को ताकत देने के बजाय मोदी पर हमलावर की रणनीति बनाई।

पांच साल बाद फिर हार गए।कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बात को लेकर कभी मंथन ही नहीं किया कि देश की राजनीति बदल गई है।सामने बीजेपी के रूप में ऐसी मजबूत पार्टी है जिसके पास मजबूत नेतृत्व,मजबूत संगठन के साथ दूसरे ऐसे संघ जैसे कई सहयोगी संगठन है जो सत्ता के लोभ से दूर आम जन के बीच में काम करते हैं।कांग्रेस जुगाड की राजनीति पर चलती रही।दूसरी बार 2019 में फिर करारी हार हो गई।राहुल गांधी कमजोर नेता साबित हुए।लेकिन जैसे कांग्रेस में परंपरा है कि हारो जीतो नेता गांधी परिवार ही रहेगा।तीसरी बार 2024 के आमचुनाव से काफी पहले यूं कह सकते हैं 2023 में राहुल गांधी कुछ सहयोगी दलों ने जाती की राजनीति का आइडिया दे दिया।मतलब बिहार और यूपी के रीजनल दलों की जाती की राजनीति राहुल गांधी करने लगे।

यह राजनीति एक जुट हिंदुओं को बांटने के लिए थी।कांग्रेस को लगता था हिंदुओं को अगड़े और पिछड़ों में बांट राजनीति की जाए।जुगाड हो जायेगा।कांग्रेस यह भूल गई कि बिना अगड़ी जातियों को साधे आप समिति हो जाओगे।शायद कांग्रेस के रणनीतिकारों की सोच यही थी किसी तरह से 100 से 125 का जुगाड किया जाए बाकी छोटे मोटे दलों को मिला देश पर राज किया जाए।कांग्रेस ने यह मंथन ही नहीं किया कि जाती की राजनीति के चलते राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तो कोई लाभ ही नहीं मिला।लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जाती की राजनीति को आरक्षण से जोड़ फिर भूल कर दी।

हालांकि पिछले दो बार के मुकाबले 99 सीट हासिल कर मान लिया कि बीजेपी को हरा दिया।कांग्रेस यह पता ही नहीं लगाया कि आप यह सीट अपने दम पर लाए या सहयोगियों की कृपा से।राहुल गांधी जोश में आ गए और हिंदी बेल्ट में हुई हार का मंथन ही नहीं किया।इस तरह का व्यवहार संसद के अंदर और बाहर शुरू कर दिया कि मोदी का करिश्मा खत्म हो गया।कुछ प्रायोजित पत्रकारों ने तो सोशल मीडिया में वीडियो बना बना कर कांग्रेस को इतना चढ़ा दिया कि सच्चाई पता ही नहीं लगने दी।

हरियाणा का चुनाव घोषित होते ही दो बार के सीएम रहे भूपेंद्र हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास में आ ऐसा व्यवहार करने लगे जैसे चुनाव जीत गए हों।राहुल के नजदीकियों ने भी ऐसा सब्ज बाग उन्हें दिखाया कि हुड्डा हुड्डा ही जीत दिलवा रहे हैं।ये देखा ही नहीं कि प्रदेश के बाकी कांग्रेसी नेता अपनी राजनीति पर संकट आता देख शायद अंदर ही अंदर यही कामना करने लगे कि घमंड टूटना चाहिए। क्योंकि उन्हें लगने लगा कि कांग्रेस जीती तो भविष्य के उनके नेता दीपेंद्र होंगे।

पहली बड़ी गलती यही थी।दूसरी जाट जाट की राजनीति ने दूसरी जातियों को एक जुट कर दिया।कांग्रेस यह पता नहीं लगा पाई कि बीजेपी ने उनकी सभी कमजोरियों का फायदा उठा बाकी जातियों के साथ जाटों को भी साध लिया।कांग्रेस को लगा पहलवान,किसान और नौजवान साथ है।बीजेपी ने आंदोलनकारियों को छोड़ बाकी को राजी कर लिया।विनेश फोगट को टिकट देने से भी मेसेज चला पहलवानों के आंदोलन के पीछे राजनीति थी।राहुल का गुस्सा इसी बात को लेकर है कि आखिर उनके लोग क्या कर रहे थे।अब कांग्रेस के हितैषियों को इसी बात का इंतजार है कि क्या राहुल गांधी गुस्से में ही सही चापलूसों को बाहर का रास्ता दिखाएंगे या फिर बड़ी हार का इंतजार करेंगे।

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