- राहुल अब हिम्मत तो करें वैशाखी छोड़ने की
(अजीत मेंदोला) नई दिल्ली। जिसका डर था,लगता है वही होने जा रहा है।कांग्रेस से उसके अपने धीरे धीरे दूर होते जा रहे हैं।इंडिया गठबंधन में शामिल दल एक एक कर उसका साथ छोड़ते जा रहे हैं।सपा,टीएमसी तक तो बात ठीक थी।लेकिन लालू यादव और शरद पंवार की पार्टी भी अपना रुख बदलने लगे तो समझो राहुल गांधी के लिए कुछ भी ठीक नहीं है।क्योंकि टारगेट वही हैं।राहुलअगर समझे तो बड़ा मौका भी है। अपने पैरों पर खड़ा होने की हिम्मत जुटाएं।बिना बैशाखियों के खड़ा होने की कोशिश कर के तो देखें।तुरंत तो खड़ा नहीं हुआ जाएगा।
लेकिन कोशिश करते करते क्या पता बात बन जाए।लेकिन इसके लिए उन्हें बिना मेहनत के सत्ता के लालची सलाहकारों से मुक्ति पानी होगी।ये वो सलाहकार हैं जो अपनी दुकान बचाने के लिए झूठा जय कारा लगा पार्टी को डुबोने में लगे हुए हैं।दरअसल कांग्रेस को डुबोने वाले गैर नहीं अपने ही हैं।पी वी नरसिंह राव ने गठबंधन की राजनीति का जो प्रयोग किया वह कांग्रेस के लिए कुछ समय तक के लिए तो ठीक था। कुछ राज्यों तक भी सीमित रहता तो चल जाता।लेकिन सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभालने के बाद कोई आंकलन ही नहीं किया या उन्हें करने नहीं दिया गया।सत्ता के लालच में 2004 में कांग्रेस ने ऐसा कुनबा जोड़ा जो उनके लिए भस्मासुर साबित हुआ।
जिन क्षेत्रीय दलों के दम पर कांग्रेस ने सरकार बनाई उन्होंने अपने को राज्यों में मजबूत किया लेकिन कांग्रेस को डुबो दिया।उत्तर प्रदेश,बिहार,बंगाल,महाराष्ट्र, उड़ीसा,तमिलनाडु,आंध्र प्रदेश कई राज्य हैं जहां कांग्रेस हाशिए पर चली गई।2009 में वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने जरूर सलाह दी थी कि कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा हो खुद के दम पर बहुमत लाना चाहिए।उनकी यह सलाह उन पर ही भारी पड़ गई।राहुल के युवा चौकड़ी उन्हें भगाने में जुट गई।और किनारे लगाने में सफल भी रहे।
नरेन्द्र मोदी के रूप में संघ को ऐसा नेता मिल गया जिन्हें कांग्रेस ने ही नेता बनाया
कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता था कि इस देश में उनके अलावा कोई और राज कर ही नहीं सकता।धर्म और जाति में बंटे इस देश में हिंदू समर्थक बीजेपी कभी सत्ता में आ ही नहीं सकती।कांग्रेस को बीजेपी तो दिखी लेकिन उसके पीछे जो संघ दशकों से काम कर रहा था उसका आंकलन ही नहीं किया।बीजेपी को रोकने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपना उन क्षेत्रीय दलों को साथ लेने में जुट गई जो राज्यों में जाति और मुस्लिम तुष्टिकरण के सहारे राज कर रही थी।संघ ने मौका मिलते ही मंदिर के नाम पर हिंदुओं का ध्रुवीकरण करना शुरू किया।इस बीच नरेन्द्र मोदी के रूप में संघ को ऐसा नेता मिल गया जिन्हें कांग्रेस ने ही नेता बनाया।
2004 कांग्रेस में सत्ता में क्या आई एक ही एजेंडा होता मोदी मोदी।मंत्री से लेकर कांग्रेस का संतरी तक का एक ही काम होता मोदी पर हमला करो और मुस्लिम वोटरों को खुश करो।मोदी तब गुजरात के सीएम होते थे।कांग्रेसियों की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति ने मोदी को हिंदुओं का एक ऐसा चेहरा बना दिया जिसका तोड़ कांग्रेस के पास दूर दूर तक नहीं था।नरेंद्र मोदी के चेहरे पर जब बीजेपी ने 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा तो कांग्रेस हाशिए पर लग गई।
घमंड में चूर कांग्रेस की 2019 में और करारी हार हो गई थी
इसके बाद भी कांग्रेस नहीं सुधरी। सुबह शाम एक ही एजेंडा मोदी मोदी।कांग्रेस को लगा कि मोदी 5 साल से ज्यादा राज नहीं कर पाएंगे।फिर भानुमति के कुनबे पर ही भरोसा किया।लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कुनबे में नए नए आए जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने कांग्रेस को सुझाव दिया कि 2019 में उन्हें यूपीए का चेहरा बना दें।कांग्रेस ने उन्हें ऐसा लताड़ा कि प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी होने के बाद भी वापस बीजेपी में चले गए।घमंड में चूर कांग्रेस की 2019 में और करारी हार हो गई।लेकिन कांग्रेस के नए रणनीतिकार और सलाहकारों को तब भी यही लगा चलो 5 साल और सही।2024 में तो वो ही वापसी करेंगे।इस बीच 2019 की करारी हार के बाद बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने विपक्ष को एक जुट करने कोशिश की थी।साथ ही उनकी कोशिश यह थी यूपीए या अन्य किसी नए गठबंधन का चेहरा उन्हें या शरद पंवार को बना दिया जाए।
राहुल गांधी फ्रंट में नहीं रहने चाहिए।कांग्रेस ने एक झटके में उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।फिर नया गठबन्धन इंडिया बना। इसकी नींव कायदे से नीतीश कुमार और लालू यादव ने रखी।दोनों की अपनी राजनीति थी।नीतीश चाहते थे उन्हें इंडिया गठबंधन का चेहरा घोषित कर उनकी अगुवाई में चुनाव लड़ा जाए।लालू का लगता था कांग्रेस तैयार हो जाएगी।नीतीश चेहरा बनेंगे तो उनका बेटा तेजस्वी सीएम बनेगा।कांग्रेस के मौजूदा सलाहकारों ने नीतीश कुमार को फिर वही दोहराया जो 2019 के चुनाव से पहले कहा था।मतलब नीतीश को नेता बनने की सोचनी ही नहीं चाहिए।नीतीश फिर ठगे गए।उन्हें लगा बीजेपी में ही वापसी में भलाई है।
अभी तक जिन्होंने कभी आंख नहीं दिखाई थी वह भी आंख दिखाने लगे
सो लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश फिर बीजेपी में लौट गए।राहुल गांधी खुद को फेस बना इंडिया गठबंधन की तरफ से लड़ने निकल पड़े।2024 में बीजेपी अपने दम पर बहुमत से चूक गई,लेकिन सहयोगियों के दम पर उसने बहुमत हासिल किया।राहुल इसे ही जीत मान विपक्ष के नेता बन गए।लेकिन 6 माह में ही महाराष्ट्र और हरियाणा की हार ने उनके लिए संकट खड़ा कर दिया।अभी तक जिन्होंने कभी आंख नहीं दिखाई थी वह भी आंख दिखाने लगे।राजद नेता लालू यादव ने राहुल का नेतृत्व अस्वीकार कर टीएमसी नेत्री ममता बनर्जी को नेता मान लिया।टीएमसी तो शुरू से ही राहुल के नेतृत्व के खिलाफ थी।वामदल भी अब कांग्रेस के साथ नहीं हैं।
शरद पंवार की पार्टी भी ममता को नेता मानने को तैयार है।सपा कही चुकी है।आम आदमी पार्टी को एतराज नहीं है।ले दे कर डीएमके के है वह भी पाला बदल सकती है।अगर आने वाले दिनों में विपक्ष की कमान ममता बनर्जी संभालती हैं तो राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होगा।लेकिन वहीं राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस के लिए मौका भी होगा।राहुल अपने मौजूदा सलाहकारों से मुक्ति पा पुराने अनुभवी चेहरों को संगठन में वापस ला अपने दम पर खड़ा होने की कोशिश करते हैं तो पार्टी हित में होगा।क्योंकि जो दल अभी सवाल उठा रहे हैं उनसे कांग्रेस को बहुत फायदा है नहीं।कांग्रेस अकेले लड़ेगी तो क्या पता स्थिति बदल जाए।लेकिन इसके लिए हिम्मत और कड़े फैसले राहुल गांधी को खुद ही लेने होंगे।