छोटी जोत वाले किसानों के साथ गांव में ऐसे किसान भी हैं जिनके पास जमीन बची ही नहीं है। इनके लिए बड़ी जोत वाले किसान थोड़े बहुत मददगार साबित होते हैं, किन्तु वे भी अब मजदूरी के स्थान पर बटाई पर खेत देना पसंद करते हैं। बटाई में मेहनत छोटे किसानों की होती है, लागत भी आधी होती है, किन्तु फसल पर आधा अधिकार खेत मालिक का होता है। इसमें भी प्राकृतिक आपदा या कोई अन्य मुसीबत आ जाए तो बटाई पर खेती लेने वाले के पास कोई अधिकार नहीं होते हैं। यहां भी खाने-बचाने का सवाल खड़ा होता है और तब सरकारें भी साथ नहीं देतीं। ऐसे में मांग उठ रही है कि सरकार को चाहिए कि मजदूरों व बटाईदारों के लिए भी मुआवजे का कानून बनाए। दरअसल किसान इस समय लक्ष्य के अनुकूल उत्पादन न होने के संकट से जूझ रहे हैं। कम उत्पादन की गाज छोटे व सीमांत किसानों के साथ ऐसे कृषि मजदूरों पर गिरती है, जो सिर्फ खेती पर ही आश्रित हैं। तमाम बार वे कर्ज अदा नहीं कर पाते और फिर आत्महत्या जैसी स्थितियां भी पैदा होती हैं। कम फसल और घाटे का सबसे अधिक असर बच्चों के भविष्य पर पड़ता है। सबसे पहले बच्चों की पढ़ाई छूटती है और इससे अगली पीढ़ियां प्रभावित होती हैं। भारत को कृषि प्रधान देश भले ही कहा जाता रहा है, किन्तु गांव जाकर साफ पता चलता है कि किसान किसी की प्राथमिकताओं में नहीं हैं। वे बेरोजगारी व गरीबी का दंश झेलने को विवश हैं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को ही आधार बनाएं तो 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में एक करोड़ से अधिक खेतिहर मजदूर हैं। इनमें से 9518 स्नातक या उससे ज्यादा पढ़े बेरोजगार खेतों में मजदूरी करने को विवश हैं। यही नहीं तकनीकी डिग्री या डिप्लोमा (बीटेक, पॉलिटेक्निक आदि) की पढ़ाई कर चुके 10 हजार से अधिक बेरोजगारों ने खेती को अपना रोजगार बना लिया है, वहीं ऐसे 2581 बेरोजगार खेतों में मजदूरी कर रहे हैं। उन्हें पूरे साल मजदूरी के मौके नहीं मिलते तो वे गरीबी झेलने को विवश हैं।
ग्रामीण इन स्थितियों को लेकर परेशान हैं किन्तु सरकार से उम्मीद लगाए हुए हैं। उनका मानना है कि सरकारों को प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। मनरेगा के बाद जिस तरह खेतों में काम करने वाले मिलना बंद हो गए उससे तमाम छोटे किसानों ने विकल्पों पर फोकस किया। अब वे दोनों तरफ से निराश हैं। सशक्त पंचायतों के हाथ में कामकाज के अवसर देकर कुछ सुधार किया जा सकता है। जिस तरह जोर देकर व लक्ष्य निर्धारित कर स्वच्छ भारत अभियान चलाया गया, उसी तरह मजबूत किसान अभियान जैसा कोई आंदोलन खड़ा करना होगा। जब सरकारों के लिए किसान प्राथमिकता में होंगे, तो स्थितियां बदलेंगी।