हर साल की तरह इस साल भी कश्मीर में सेब का उत्पादन बेहद उत्साहजनक रहा है। कुछ ऐसा ही हाल केसर का भी है। सेब और केसर उत्पादक क्षेत्र के लोग बेहद खुशहाल हैं, लेकिन उनके अंदर आतंकवाद का भय इस कदर व्याप्त है कि वो लंबे समय से खुल कर हंस तक नहीं सके हैं। बता दें कि सेब और केसर उत्पादक क्षेत्र ही सबसे अधिक आतंकवाद से ग्रस्त रहे हैं। भारत सरकार द्वारा कश्मीर को लेकर उठाए गए निर्णायक कदम के बाद इन क्षेत्रों जहां एक तरफ आतंकी या तो दुबके हुए हैं या फिर मार गिराए गए हैं, वहीं दूसरी तरफ क्षेत्र के किसानों के चेहरे खुशी से लाल हैं। तमाम बंदिशों के बावजूद भारत सरकार ने इन क्षेत्रों से केसर और सेब का रिकॉर्ड निर्यात करवाया है। सेना की सुरक्षा में हजारों की संख्या में सेब से लदे ट्रक देश के विभिन्न क्षेत्रों में गए हैं।
अब इसका दूसरा पहलू देखिए और मंथन करिए कि क्यों इस क्षेत्र में आतंकियों ने अपना गढ़ बनाया और पूरे कश्मीर को परेशान किया। दक्षिणी कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित जिले के चित्रगाम जैनापोरा इलाके में वीरवार की रात आतंकियों ने सेब लदे तीन ट्रकों को निशाना बनाते हुए अंधाधुंध फायरिंग की। इसमें गैर कश्मीरी दो चालकों की मौत हो गई। एक गंभीर रूप से घायल है। ट्रकों को आग के हवाले भी कर दिया। यह कोई पहली बार नहीं है कि सेब की ट्रकों को निशाना बनया गया है। इससे पहले भी कई बार इन ट्रकों की आवाजाही रोकने का प्रयास किया गया है। वीरवार को भी आतंकियों ने हरियाणा, राजस्थान तथा पंजाब नंबर की गाड़ियों को चित्रगाम में रोक लिया। इसके बाद अंधाधुंध फायरिंग की। इससे पहले 14 अक्तूबर को आतंकियों ने शोपियां में सेब लाद रहे राजस्थान के ट्रक चालक शरीफ खान की हत्या कर दी थी। साथ ही बगीचे के मालिक की पिटाई की थी। 16 अक्तूबर को शोपियां में ही पंजाब के दो सेब कारोबारियों पर हमला किया था। इसमें चरणजीत सिंह की मौत हो गई थी जबकि दूसरा कारोबारी संजीव घायल हुआ था। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी के शांतिपूर्ण माहौल से बौखलाए आतंकियों ने 28 सितंबर से लगातार घटनाएं कर लोगों में दहशत फैलाने की साजिशें शुरू की हैं। इस दौरान 11 घटनाओं को अंजाम देकर तीन गैर कश्मीरी नागरिकों समेत पांच की हत्या कर दी। दो स्थानों पर ग्रेनेड हमले किए, जिसमें 21 लोग घायल हुए। दरअसल कश्मीर के दुश्मनों और दहशतगर्दों को कभी भी कश्मीर की आर्थिक समृद्धि रास नहीं आई है। उन्होंने हमेशा ही यही चाहा है कि यह क्षेत्र आर्थिक रूप से कमजोर हो, ताकि यहां के युवाओं को धन और धर्म का लालच देकर वो अपने मनमाफिक काम करवा सके। पर इस बार भारत सरकार ने आतंकियों की मंशा पर पूरी तरह पानी फेर कर रख दिया है। सेब की रिकॉर्ड सप्लाई हुई है। यही आतंकियों की बौखलाहट का कारण बना हुआ है, जिसके कारण वो लगातार छिप छिप कर हमले कर रहे हैं।
कुछ ऐसा ही आतंकियों ने उस वक्त किया था जब कश्मीर के युवा सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस में भर्ती होने लगे थे। सेना और पुलिस ने बड़े पैमाने पर भर्तियां की और क्षेत्र के युवाओं को रोजगार का साधन मुहैया करवाया। आतंकियों ने अचानक से अपनी स्ट्रेटजी बदली और कश्मीर के वैसे स्थानीय युवाओं को चुन चुन कर मारने लगे जो नौकरी की चाह में सेना या पुलिस में भर्ती हुए थे। ताकि स्थानीय युवाओं में भय पैदा हो। वो बेरोजगार ही रहें और आतंकियों के आर्थिक मायाजाल में फंसे रहें। साल 2017 के मई महीने में आतंकियों ने लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को किडनैप कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी थी। यह संदेश कश्मीरी युवाओं के लिए था, जो सेना में हैं या जाना चाहते हैं। आतंकियों का संदेश साफ था। जो युवा सेना से जुड़ेंगे उनका भी हश्र ऐसा ही होगा। आतंकियों ने लगभग 26 साल बाद इस तरह की कायराना हरकत की थी। 2018 में एक बार फिर आतंकियों ने अपनी पुरानी स्ट्रेटजी पर काम करते हुए राइफल मैन औरंगजेब की हत्या कर दी। उमर की तरह औरंगजेब को भी किडनैप करके मारा गया। उमर और औरंगजेब की शहादत ने हमारे हुक्मरानों को भी सोचने और मंथन करने का नया नजरिया दिया है। कश्मीर के युवाओं को एक नए नजरिए से समझने की जरूरत है। चंद पत्थरबाजों की बात छोड़ दें तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कश्मीर के युवा भटकाव की स्थिति में नहीं हैं। कुछ रुपयों की लालच में पाकिस्तान और आईएसआईएस का झंडा उठाए कश्मीर के युवा जब पत्थरबाजी करते हैं तो आश्चर्य होता है। आश्चर्य इस बात से कि कैसे युवाओं का एक वर्ग इतनी जल्दी बहक जा रहा है। कैसे उन्हें मोटिवेट कर लिया जा रहा है। क्यों वे भारत में रहकर भारत मां के खिलाफ हो रहे हैं। राजनीतिक चश्मा उतार कर मंथन करें तो पाएंगे कि आसानी से मिलने वाले रुपयों की खातिर वे पत्थर फेंकने से नहीं हिचक रहे हैं। पहले इन्हीं रुपयों की लालच में वे सेना पर हैंड ग्रेनेड तक फेंक दिया करते थे। कश्मीरी युवाओं के हालात का अर्द्धसत्य ही हम देख पा रहे हैं। जबकि दूसरे पहलू से हम अनजान हैं। सेना, अर्द्धसैनिक बल, कश्मीर पुलिस की तमाम भर्तियों में भारी संख्या में उमड़ रही युवाओं की भीड़ ने भी मंथन करने पर मजबूर कर दिया है। युवाओं की इसी भीड़ ने आतंकी आकाओं के होश उड़ा रखे हैं। उन्हें पता है कि बेरोजगारी ही एक ऐसा रास्ता है जहां से युवाओं को पत्थरबाज या आतंकी बनाया जा सकता है। जब बेरोजगारी का दांव फेल होता दिखा है तो उमर और औरंगजेब जैसे कश्मीरी युवाओं के जरिए संदेश दिया जा रहा है। कुछ ऐसा ही कश्मीर के व्यापारियों के साथ हो रहा है। आतंकियों ने स्थानीय व्यापारियों की जगह बाहर से आ रहे ट्रक ड्राइवर्स को निशाना बनाया है, ताकि उनमें भय का माहौल पैदा हो और वो ट्रक लेकर कश्मीर न आएं। इस वक्त कश्मीर एक निर्णायक मोड़ से गुजर रहा है। यही वो समय है जब केंद्र सरकार अपनी सारी ताकत झोंक कर आतंकियों को मजबूत संदेश दे। मंथन इस बात पर भी होना चाहिए कि कश्मीर की लड़ाई अब बंदूक और गोलियों से अधिक मनोवैज्ञानिक बन चुकी है। इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में अगर केंद्र सरकार कमजोर पड़ गई तो आने वाले समय में मूंह पर कपड़ा बांधे पत्थरबाज और अधिक संख्या में बाहर निकलेंगे। यह सुखद संदेश है कि वर्षों से कराह रहे कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार ने नए नजरिए से मंथन किया। केंद्र सरकार ने निर्णायक और बेहद साहसिक कदम उठाया। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में और अधिक सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
अब इसका दूसरा पहलू देखिए और मंथन करिए कि क्यों इस क्षेत्र में आतंकियों ने अपना गढ़ बनाया और पूरे कश्मीर को परेशान किया। दक्षिणी कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित जिले के चित्रगाम जैनापोरा इलाके में वीरवार की रात आतंकियों ने सेब लदे तीन ट्रकों को निशाना बनाते हुए अंधाधुंध फायरिंग की। इसमें गैर कश्मीरी दो चालकों की मौत हो गई। एक गंभीर रूप से घायल है। ट्रकों को आग के हवाले भी कर दिया। यह कोई पहली बार नहीं है कि सेब की ट्रकों को निशाना बनया गया है। इससे पहले भी कई बार इन ट्रकों की आवाजाही रोकने का प्रयास किया गया है। वीरवार को भी आतंकियों ने हरियाणा, राजस्थान तथा पंजाब नंबर की गाड़ियों को चित्रगाम में रोक लिया। इसके बाद अंधाधुंध फायरिंग की। इससे पहले 14 अक्तूबर को आतंकियों ने शोपियां में सेब लाद रहे राजस्थान के ट्रक चालक शरीफ खान की हत्या कर दी थी। साथ ही बगीचे के मालिक की पिटाई की थी। 16 अक्तूबर को शोपियां में ही पंजाब के दो सेब कारोबारियों पर हमला किया था। इसमें चरणजीत सिंह की मौत हो गई थी जबकि दूसरा कारोबारी संजीव घायल हुआ था। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी के शांतिपूर्ण माहौल से बौखलाए आतंकियों ने 28 सितंबर से लगातार घटनाएं कर लोगों में दहशत फैलाने की साजिशें शुरू की हैं। इस दौरान 11 घटनाओं को अंजाम देकर तीन गैर कश्मीरी नागरिकों समेत पांच की हत्या कर दी। दो स्थानों पर ग्रेनेड हमले किए, जिसमें 21 लोग घायल हुए। दरअसल कश्मीर के दुश्मनों और दहशतगर्दों को कभी भी कश्मीर की आर्थिक समृद्धि रास नहीं आई है। उन्होंने हमेशा ही यही चाहा है कि यह क्षेत्र आर्थिक रूप से कमजोर हो, ताकि यहां के युवाओं को धन और धर्म का लालच देकर वो अपने मनमाफिक काम करवा सके। पर इस बार भारत सरकार ने आतंकियों की मंशा पर पूरी तरह पानी फेर कर रख दिया है। सेब की रिकॉर्ड सप्लाई हुई है। यही आतंकियों की बौखलाहट का कारण बना हुआ है, जिसके कारण वो लगातार छिप छिप कर हमले कर रहे हैं।
कुछ ऐसा ही आतंकियों ने उस वक्त किया था जब कश्मीर के युवा सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस में भर्ती होने लगे थे। सेना और पुलिस ने बड़े पैमाने पर भर्तियां की और क्षेत्र के युवाओं को रोजगार का साधन मुहैया करवाया। आतंकियों ने अचानक से अपनी स्ट्रेटजी बदली और कश्मीर के वैसे स्थानीय युवाओं को चुन चुन कर मारने लगे जो नौकरी की चाह में सेना या पुलिस में भर्ती हुए थे। ताकि स्थानीय युवाओं में भय पैदा हो। वो बेरोजगार ही रहें और आतंकियों के आर्थिक मायाजाल में फंसे रहें। साल 2017 के मई महीने में आतंकियों ने लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को किडनैप कर लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी थी। यह संदेश कश्मीरी युवाओं के लिए था, जो सेना में हैं या जाना चाहते हैं। आतंकियों का संदेश साफ था। जो युवा सेना से जुड़ेंगे उनका भी हश्र ऐसा ही होगा। आतंकियों ने लगभग 26 साल बाद इस तरह की कायराना हरकत की थी। 2018 में एक बार फिर आतंकियों ने अपनी पुरानी स्ट्रेटजी पर काम करते हुए राइफल मैन औरंगजेब की हत्या कर दी। उमर की तरह औरंगजेब को भी किडनैप करके मारा गया। उमर और औरंगजेब की शहादत ने हमारे हुक्मरानों को भी सोचने और मंथन करने का नया नजरिया दिया है। कश्मीर के युवाओं को एक नए नजरिए से समझने की जरूरत है। चंद पत्थरबाजों की बात छोड़ दें तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कश्मीर के युवा भटकाव की स्थिति में नहीं हैं। कुछ रुपयों की लालच में पाकिस्तान और आईएसआईएस का झंडा उठाए कश्मीर के युवा जब पत्थरबाजी करते हैं तो आश्चर्य होता है। आश्चर्य इस बात से कि कैसे युवाओं का एक वर्ग इतनी जल्दी बहक जा रहा है। कैसे उन्हें मोटिवेट कर लिया जा रहा है। क्यों वे भारत में रहकर भारत मां के खिलाफ हो रहे हैं। राजनीतिक चश्मा उतार कर मंथन करें तो पाएंगे कि आसानी से मिलने वाले रुपयों की खातिर वे पत्थर फेंकने से नहीं हिचक रहे हैं। पहले इन्हीं रुपयों की लालच में वे सेना पर हैंड ग्रेनेड तक फेंक दिया करते थे। कश्मीरी युवाओं के हालात का अर्द्धसत्य ही हम देख पा रहे हैं। जबकि दूसरे पहलू से हम अनजान हैं। सेना, अर्द्धसैनिक बल, कश्मीर पुलिस की तमाम भर्तियों में भारी संख्या में उमड़ रही युवाओं की भीड़ ने भी मंथन करने पर मजबूर कर दिया है। युवाओं की इसी भीड़ ने आतंकी आकाओं के होश उड़ा रखे हैं। उन्हें पता है कि बेरोजगारी ही एक ऐसा रास्ता है जहां से युवाओं को पत्थरबाज या आतंकी बनाया जा सकता है। जब बेरोजगारी का दांव फेल होता दिखा है तो उमर और औरंगजेब जैसे कश्मीरी युवाओं के जरिए संदेश दिया जा रहा है। कुछ ऐसा ही कश्मीर के व्यापारियों के साथ हो रहा है। आतंकियों ने स्थानीय व्यापारियों की जगह बाहर से आ रहे ट्रक ड्राइवर्स को निशाना बनाया है, ताकि उनमें भय का माहौल पैदा हो और वो ट्रक लेकर कश्मीर न आएं। इस वक्त कश्मीर एक निर्णायक मोड़ से गुजर रहा है। यही वो समय है जब केंद्र सरकार अपनी सारी ताकत झोंक कर आतंकियों को मजबूत संदेश दे। मंथन इस बात पर भी होना चाहिए कि कश्मीर की लड़ाई अब बंदूक और गोलियों से अधिक मनोवैज्ञानिक बन चुकी है। इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में अगर केंद्र सरकार कमजोर पड़ गई तो आने वाले समय में मूंह पर कपड़ा बांधे पत्थरबाज और अधिक संख्या में बाहर निकलेंगे। यह सुखद संदेश है कि वर्षों से कराह रहे कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार ने नए नजरिए से मंथन किया। केंद्र सरकार ने निर्णायक और बेहद साहसिक कदम उठाया। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में और अधिक सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
(लेखक आज समाज के संपादक हैं। )