Need to fight malaria like corona: कोरोना की तरह मलेरिया से भी लड़ने की जरुरत

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गंदगी से पनपे मच्छर से पूरी दुनिया परेशान है। सुनने बेहद आसान लगता है कि मच्छर ने ही तो काटा है लेकिन पीड़ित होने वालों की संख्या का आंकडा बेहद चौकाने वाला है। इस बीमारी पर काबू पाने के लिए विश्व मलेरिया दिवस हर वर्ष 25 अप्रैल को मनाया जाता है। इसकी स्थापना मई 2007 में साठवें विश्व स्वास्थ्य सभा सत्र में रखी थी। मच्छरों से फैलने वाली इस बीमारी से भारत के अलावा दौ सौ से अधिक देश ग्रस्त हैं। ताजा आंकडों के अनुसार सौ से अधिक देशों में 3 अरब 3 करोड जनसंख्या पर हर समय खतरा बना रहता है। वर्ष 2012 में तो इस बीमारी ने विकराल रुप लेते हुए पूरे विश्व को अपने शिकंजे में जकड़ लिया था, अकेले इस ही साल में सवा छह लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा हर वर्ष आंकड़ा लगभग इसके आस-पास ही रहता है लेकिन सवाल यही है कि इस गंभीर बीमारी से निपटने के लिए हम आज भी कितने तैयार है चूंकि इस बीमारी से सबसे ज्यादा मरने वालों में हमारा देश चौथे स्थान पर आता है। जैसा कि केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग ने इसको पूर्ण रुप से खत्म करने के लिए 2027 तक का लक्ष्य रखा है वहीं इस बीमारी की विश्वपटल पर चर्चा करें तो पूरी दुनिया से इसको पूर्ण रुप से खत्म करने लिए अगामी दशक पूरा लग जाएगा। यह बीमारी अधिकतर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में लेती है। एक लंबे समय से इस बीमारी की होने वालों में मामले कभी कम नही हुए। पूरी दुनिया में पिछले दशक भर में भी यह बीमारी हर वर्ष करीब पौने दो करोड़ लोगों को प्रभावित करती है।
हम मलेरिया शब्द को बचपन से सुनते आते हैं तो इसका होना या इससे मानव क्षति का होना हमें ज्यादा गंभीर नही लगता लेकिन मन में प्रश्न यह है कि आखिर दुनिया के तमाम देशो के अलावा विकासशील देश भी इससे पूर्ण रुप से लड़ने में सफल क्यों नही हो पा रहे हैं। मौजूदा वक्त में पूरी दुनिया को कोरोना जैसे खतरनाक वायरस ने परेशान कर रखा है और इसकी वैक्सीन बनाने में दुनिया के बड़े व महान वैज्ञानिक, डॉक्टर व विशेषज्ञ लग चुके हैं। यह वायरस एक ही समय पर सबको नुकसान पहुंचा रहा है इसलिए इस पर बेहद गंभीरता से सभी लड़ रहे हैं और चूंकि मलेरिया से एक साथ, एक ही जगह पर मौतें नही होती तो यह हमें खतरनाक नही लगता लेकिन इससे होने वाली मौतों के आंकडेÞ कम पेरशान करने वाले नही माने जा सकते। जिस तरह कोरोना से निपटने के लिए पूरी दुनिया एकजुट होकर उसे हराने में लगी है इस ही प्रकार मलेरिया से भी लड़ने की जरुरत है। भारत के संदर्भ में चर्चा करें तो हर राज्य के नगर निगम में मलेरिया का एक अलग विभाग होता है जो पूरे वर्ष कार्यरत रहता है लेकिन इलाकों में कर्मचारियों की उपस्थिति केवल बारिश के मौसम में दिखती है चूंकि इसका प्रभाव इन दिनों ज्यादा रहता है। बारिश के दिनों कई जगह-जगह पानी इकत्रित हो जाता है। पिछले वर्ष की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिन्दुस्तान में हर वर्ष करीब अठ्ठारह लाख लोग मलेरिया से ग्रस्त होते थे। वैश्विक आंकड़ों के अनुसार मलेरिया अस्सी प्रतिशत भारत, पाकिस्तान, इथियोपिया व इंडोनेशिया में होता है। मौजूदा केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2014 में हमारे देश में मलेरिया के 11 लाख मामलें सामने आए थे लेकिन उसके बाद से इनमें लगातार कमी आई है। इसके अलावा यह बीमारी गांव और कस्बों में ही ज्यादा देखने को मिल रही है। बहरहाल, आज हम एक कोरोना वायरस के रुप में एक अज्ञात व अदृश्य शत्रु से लडने के लिए हर प्रकार की कोशिश कर रहे हैं इसलिए इस ही प्रकार से मलेरिया जैसी बीमारी की गंभीरता को समझते हुए इससे लड़ने के लिए युद्धस्तर पर काम करने की जरुरत है। जहां एक ओर शासन-प्रशान इससे लड़ने के लिए काम कर रहा है वहीं जनता को भी स्वयं जागरुक होने की जरुरत है। समय-समय पर इसके लिए जागरुक कार्यक्रम होते रहते हैं। विभाग द्वारा बताया जाता है कि अपने आस-पास कहीं भी पानी इक्कठा न होने दें। गर्मी जाते ही कूलर को सूखा कर रखें इसके अलावा तमाम ऐसी बातें हैं जिनका हमें ख्याल रखना होता है। लेकिन हम भी ऐसी बातों को हल्के में ले लेते हैं जिस वजह से हम मलेरिया जैसी बीमारी से बेवजह हार जाते हैं। दरअसल मलेरिया मादा एनाफिलीज नाम के मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर गंदे पानी में पैदा होता है जो एक्टिव होते ही मनुष्य के पास भागता है और यह मच्छर शाम को ही काटता है। इस आधार पर एक बात तो तय है कि इससे आसानी से लड़ा जा सकता है। यदि हम अपने आस पास गंदा पानी या गंदगी न जमा होने दे तो हम इस जंग से स्वयं भी लड सकते हैं। यदि नदी-नालों दूषित हैं तो उसके लिए हमें खुद को जिम्मेदार मानते हुए ऐसा करने से रोकना होगा साथ ही यदि कुछ जगहों पर आपकी असक्षमता है तो वहां संबंधित विभाग का ध्यान केन्द्रित करवाते हुए वहां स्वच्छ करा सकते हैं। प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने सबसे पहला मिशन सफाई को लेकर ही रखा था। जिसको प्रभाव प्रारंभिकता में तो बेहद शानदार तरीके से देखा गया था लेकिन बाद में कुछ लोग अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए लेकिन अनुशासन का पालन करने वालों की संख्या अभी भी ज्यादा है जिससे पहली की अपेक्षा स्वच्छता पर फर्क देखने को मिलता है। स्पष्ट है कोई भी जंग तभी जीत सकते हैं जिस सेना के राजा से लेकर अंति पद का भी सिपाही जी जान से लडता है। इसलिए हर किसी को जागरुक होने की जरुरत है जिससे की मलेरिया के साथ बाकी बीमारियों को भी खत्म कर सकें।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)