Need not be afraid to do: करोना से डरने की नहीं सम्भलने की आवश्यकता है

0
390

कल तक बहुत ही हल्के में ली जा रही इस नामुराद महामारी करोना से आज सम्पूर्ण विश्व थरथर कंपता दिख रहा है। यह डर स्वाभाविक ही है। अगर गत 2 महीने की करोना द्वारा मचाई तबाही पर दृष्टिपात करें तो प्रत्येक समझदार एवं संवेदनशील व्यक्ति का घबरा जाना सहज है। जब चीन, अमेरिका, इटली, कनेडा, स्पेन एवं इंग्लैंड जैसी महाशक्तियां इस महामारी के आगे घुटने टेकती सी लग रही हैं ऐसे में भारत में महामारी के उग्र रूप धारण कर लेने ( वैसे स्थिति विस्फोटक होने से पहले हम नियंत्रण कर लेंगे) की स्थिति की कल्पना करना भी कठिन लग रहा है। इन देशों के अकूत संसाधन, चिकित्सा विज्ञान में प्रगति एवं संस्थागत विकास दुनिया के लिए स्वप्न लोक जैसा ही है। इसके विपरीत हम सब जानते हैं कि कुछ क्षेत्र में दुनिया में अपना अग्रिम स्थान बना लेने के बाद भी भारत में संस्थागत ढांचा 60 के दशक जैसा ही है। एक टी बी चेनल बता रहा था कि भारत के पास इस समय चिकित्सालयों में सरकारी गैर सरकारी कुल 15 लाख बेड हैं। जनसंख्या के अनुपात में यह ईंट के मुंह में जीरा जैसा ही है। इस समय कम से कम एक करोड़ बेड की आवश्यकता है। शायद हमारे दूरद्रष्टा, जाबांज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सम्बोधन में चेहरे व शब्दों में झलक रही चिंता का भी यही कारण होगा। सरकार द्वारा 21 दिन का सम्पूर्ण लोक डाउन भी इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।

 चीन की वैध या अवैध सन्तान करोना बेशक सामान्य व्यक्ति के लिए नया शब्द है लेकिन करोना वायरस का जिक्र डिटोल के सेनिटाइजर में भी देखा जा सकता है। सारा विश्व यह मानता है कि रासायनिक हथियार के रूप में चीन स्वयं इस वायरस को विकसित कर रहा था। गलती से यह वायरस उसके नियंत्रण से बाहर निकल गया। मेडिकल विज्ञान में सब जानते हैं की हर अनियंत्रित वायरस खतरनाक एवं जानलेवा ही होता है। इस ब्रह्मांड में वायरस की भरमार रहती ही है। शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति ठीक रहने पर सारे वायरस असहाय से लेकिन अवसर की तलाश में रहते हैं। इस बार करोना के दूसरे संस्करण अर्थात इस जिद्दी वायरस ने दुनिया को हिला कर रख दिया है। यह वायस चीनी होने के कारण उसी की तरह धूर्त व धोखेबाज भी लगता है। चोर की तरह शरीर में प्रवेश कर फिर कुछ दिन शांत रहता है फिर अपनी पकड़ मजबूत बनते ही जोरदार हमला करता है। छूत का रोग होने के कारण ज्यादा खतरनाक है। यह बहुत तेज गति से फैलने वाला रोग है। वैसे तो यह लाइलाज नहीं है थोड़ी सावधानी और इलाज से ठीक भी हो जाता है। अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार वायरस से संक्रमित लोग ठीक भी बड़ी संख्या में हुए हैं।

 यद्यपि करोना का संकट भयंकर है। सम्पूर्ण मानवता अपने अस्तित्व को लेकर चिन्तित सी लग रही है। लेकिन हमें समझने की आवश्यकता है कि करोना कितना भी भयंकर लगता हो लेकिन इससे लड़ना उतना ही आसान भी है। महाभारत में यहां पांडवों की रक्षा में खड़े भीम को यक्ष द्वारा ललकारना और रातभर लड़ते रहने का प्रसङ्ग स्मरण आ रहा है। आधी रात बाद ड्यूटी बदलने पर श्री कृष्ण ने उसकी चुनोती स्वीकार की और थोड़ी देर बाद उसे पल्लू में बांध लिया। सवेरे भीम ने पूछ कि वह भयंकर राक्षस कहाँ है? भीम के पूछने पर श्री कृष्ण बोले, ” तुम्हारा मित्र धोती के पल्लू में बंधा पड़ा है। यह राक्षस वास्तव में क्रोध था। जैसे ही सामने वाला गुस्से होता है यह बढ़ता जाता है और इसे हराना असम्भव सा है। मैंने बिना क्रोधित हुए हंसते हंसते इससे खेलना शुरू किया। थोड़ी ही देर में दैत्याकार राक्षस एक छोटे कीट में बदल गया।”  इसी प्रकार एक राज कुमार का भयंकर महाशक्तिशाली दैत्य से युद्ध ठन गया। काफी दिनों की लड़ाई के बाद भी राक्षस को हराना कठिन लगने पर राजकुमार साधु के पास सहायता के लिए गया। साधु ने कहा कि इसे युद्ध में हराना लगभग असम्भव है। इस राक्षस के प्राण तो घोर बियावान जंगल में एक तोते में अटके हैं। तोते की गर्दन मरोड़ते ही यह राकेश धड़ाम हो कर गिर पड़ेगा। ऐसा ही करोना वायरस का स्वभाव लग रहा है। लापरवाही और घबराहट इसकी अनंत शक्ति का रहस्य लग रहा है। कुछ दिन शांत, मुस्कराते हुए घरों में बैठ कर अपने रिश्तों को सींच कर करोना को हराने के साथ साथ जीवन में भी रंग भर सकते हैं। इससे आसान और सस्ता इलाज क्या हो सकता है? किसी ने बड़ा अच्छा लिखा है कि करोना के विरुद्ध यह एक ऐसी अजीब दौड़ है जिसमे रुकने वाला जीतेगा।

 करोना को क्या पता की भारत क्या है? भारत की हस्ती क्या है? कवि की ये पंक्तियां…

                    युगों युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है।

                    हमें मिटाने जो निकला धूल धरा की चाटी है।

आज भले ही करोना ने हमारे अस्तित्व को ही ललकारने का दुस्साहस किया है। लेकिन करोना भूल गया है की हम सनातन हैं, शास्वत हैं व अमर हैं । हमें डराने के उसके प्रयास व्यर्थ हैं। इतिहास साक्षी है कि भारत हर चुनोती और संकट से पहले से ज्यादा शक्तिशाली होकर उभरा है। हमें संकट और चुनोतियों से जूझने में आनन्द आता है। वैसे भी योद्धा के लिए युद्ध, छात्र के लिए परीक्षा व व्यापारी के लिए प्रतिस्पर्धा वास्तव में उसकी योग्यता व पराक्रम को प्रकट करने का सुअवसर होती है। आज करोना की ही बात करें तो इस संकट के समय भारत की अंतर्निहित शक्ति भी सामने आने लग पड़ी है। इस सम्बंध में कुछ सुखद समाचार भी आने प्रारम्भ हो गए हैं। माइलेब द्वारा स्वदेशी जांच किट जिसकी कीमत,क्षमता व गुणवत्ता विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। उसी प्रकार एसेट्स होम्स द्वारा एक सप्ताह में एक करोड़ बेड तैयार करने का प्रस्ताव संतोष व राहत के सुखद हवा के झोंके ले कर आ रहे हैं। असेटस होम्स के मैनेजिंग डाइरेक्टर श्री सुनील ने कहा है वे सेवा के रूप में सहयोग दे कर स्वयं को भाग्यशाली मानेंगे। यह तो शुरुआत मात्र है पिक्चर सभी बाकी है। हमारे अन्य कॉरपोरेट जगत के मैदान में उतरते हम कौन से संकट को परास्त नहीं कर सकते?

 राजनैतिक दृष्टि से विचार करें तो विश्व विजय का स्वप्न लेकर पूरे विश्व को पांव के नीचे रौंदते आक्रमणकारी शक, हूण व कुशाण जैसी विश्व के निर्दयी व शक्तिशाली महाशक्तियां हों या औरंगजेब व अब्दाली जिनके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था ऐसी महाशक्ति अंग्रेज हो सब यहां दम तोड़ गए।  संकट की प्राययवाची ये प्रजातियां जिनका नाम लेते कभी मानवता कांप उठती थी सब का अंत भारत में गंगा के किनारे हुआ है। इसी प्रकार प्राकृतिक आपदा की बात करें तो हैजा, प्लेग, पोलियो, डेंगू , एड्स व जैसी महामारियों पर भारत का विजयी होने का विश्व भी कायल व प्रशंसक है। अर्थात भारत की ताकत, क्षमता असीम व अनन्त है। यहां साक्षात महाकाल यम को को सती के दृढ़ संकल्प कर आगे घुटने टेकने पर बेबश किया है यह करोना का रोना तो हम थोड़े से धैर्य व संकल्प से निकाल देंगे। पूर्व प्रधानमंत्री की कविता का यह अंश हमें शक्ति व आत्मविश्वास प्रदान करता है…

                      पय पी कर सब मरते आए लो

                       अमर हुआ मैं विष पीकर !

     संतोष व प्रसन्नता का विषय है कि प्रकृति के प्रकोप करोना को हराने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारें व प्रशासन अपने स्तर पर पर्याप्त सक्रिय दिखाई दे रही हैं। केंद्र सरकार ने विश्व के प्रत्येक देश में फंसे एक एक भारतीय को हवाई जहाज भेज कर सुरक्षित ला कर भारत ने पूरे विश्व के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है। भारत की इस सक्रियता एवं संवेदनशीलता ने शत्रुओं को भी हमारा प्रशंसक बनने के लिए बेबश कर दिया है। उतर प्रदेश सरकार की पहल पर प्रत्येक मजदूर, रेहड़ी आदि को प्रतिमास की आवश्यक जरूरतों के लिए निश्चित राशि देने का घोषणा का अनुसरण अन्य राज्य भी कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि सरकार व प्रशासन को सामाजिक संस्थाओं की शक्ति को पहचानते हुए आवश्यक होने पर सहयोग लेना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी गौरवशाली परम्परा के अनुरूप सेवा का मोर्चा सम्भालना प्रारम्भ कर दिया है। अन्य अनेक सामाजिक व धार्मिक संस्थाएं सेवा के लिए तैयार बैठी हैं। प्रशासन को उनके वलन्टियरज को सामान्य प्रशिक्षण देकर मैदान में उतार देना चाहिए। सरकार और समाज दोनों अगर एक मन से एक दिशा में चल पड़ें तो विजय निश्चित है।

विजय नड्डा

    ( लेखक विद्या भारती  उत्तर क्षेत्र के संगठन मंत्री हैं।)