इशिका ठाकुर,करनाल:
ईको फ्रेंडली दिवाली मनाने के लिए एनडीआरआई ने की अनूठी पहल , गोमय से बनाये प्रदूषण रहित और पर्यावरण अनुकूल दिए व मूर्तियां , नष्ट होने पर उगेंगे फलदार पौधे व सब्जिया। स्वरोजगार संग पर्यावरण संरक्षण को मिलेगा बल।
दिवाली को प्रदूषण रहित मनाने के लिए लोगों को जागरूक
एक और सरकार व समाजसेवी संस्थाएं दिवाली को धूमधाम व प्रदूषण रहित मनाने के लिए लोगों को निरंतर जागरूक कर रहे है वही करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने इसको लेकर एक सराहनीय पहल की है। इको फ्रेंडली दिवाली मनाने के लिए संस्थान ने गाय के गोबर से दिए व मूर्तियां तैयार की है जो ना केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि उन्हें आसानी से नष्ट भी किया जा सकता है। यही नहीं गमले या बगीचे में डालने पर यह मूर्तियां और दिए स्वयं ही उसमें मिल जाएंगे और इनसे फलदार पौधे व सब्जियां के अंकुर फूटेंगे। यह अनोखा विचार संस्थान के जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ आशुतोष का है जिन्होंने काफी सोच-विचार के बाद इस पर काम करना शुरू किया। उन्होंने कहा कि गाय के गोबर को पहले से ही हम पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक कार्यों में प्रयोग करते हैं, लेकिन अब इससे आकर्षक मूर्तियां और दीप बनाए जा सकेंगे। गाय की देसी नस्लें साहिवाल, थारपारकर और गिर के गोबर से निर्मित इन कलाकृतियों से पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा साथ ही मूर्ति को जल में विसर्जन करने पर पानी को नुकसान होने की बजाए जलीय जीव वनस्पतियों को खाद के रूप में खुराक भी मिलेगी। उन्होंने कहा कि मूर्ति और दिए के निर्माण के समय ही हम इसमें किसी फल अथवा सब्जी के बीज डाल देते हैं। इस्तेमाल के बाद गमलों या बगीचे में डालने पर इनमें मौजूद फलदार बीजों से अंकुर फूटने लगेंगे जिससे पर्यावरण भी अच्छा होगा।
डॉ आशुतोष ने बताया कि यदि दिवाली पर एक परिवार 11 दीपक जलाता है तो प्रति दीपक बनाने पर 20 ग्राम मिट्टी लगती है। 11 करोड़ दीपक के लिए 22000 क्विंटल मिट्टी लगती है। 1 क्विंटल मिट्टी को 900 डिग्री सेंटीग्रेड पर पकाने के लिए लकड़ी इंधन की मात्रा 553 किलोग्राम लगती है।22000 क्विंटल मिट्टी को पकाने के लिए 1.21 लाख 660 क्विंटल इंधन की जरूरत पड़ती है, इससे हजारों पेड़ों की बलि चढ़ती है। इसके अलावा लकड़ी महंगी भी पड़ती है। क्विंटल लकड़ी जलाने पर 175 किलोग्राम कार्बन डाइआॅक्साइड का उत्सर्जन होता है। मिट्टी से बने दिए हजारों वर्ष मिट्टी में नष्ट नहीं होते हैं। वही गोबर निर्मत दिए के लिए उपजाऊ मिट्टी और इंधन लकड़ी की आवश्यकता नहीं पड़ती।
एनडीआरआई ने की अनूठी पहल
संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ धीर सिंह ने बताया कि एनडीआरआई ने गोबर के विभिन्न उत्पाद बनाने की पहल की है जो पर्यावरण और प्रकृति के अनुकूल है उन्होंने कहा कि केमिकल से बने और सिंथेटिक पदार्थों से बने उत्पाद ना तो पानी में घुलनशील है और ना ही जल्दी नष्ट होते हैं जिसके कारण ना केवल वायु बल्कि जल् भी अशुद्ध होता है। उन्होंने कहा कि इससे ग्रामीण अंचल में रोजगार भी बढ़ेगा। प्रोजेक्ट की सहयोगी रुचिका ने कहा कि फ्री टाइम में महिलाएं और बच्चे गोमय से मूर्तियां और दीपक बनाकर अतिरिक्त आय ले सकते हैं उन्होंने कहा कि इससे किसानों को भी फायदा होगा और उनके गोबर का सही प्रयोग हो सकेगा। उन्होंने कहा कि इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता और यह खाद का भी काम करेंगे। अगर कोई व्यक्ति इनका प्रशिक्षण लेना चाहे तो संस्थान द्वारा इसका प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
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