Navratri 2024 : शक्ति और समरसता का संदेश

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Navratri 2024 : शक्ति और समरसता का संदेश
Navratri 2024 : शक्ति और समरसता का संदेश

Navratri 2024 | डॉ. दिलीप अग्निहोत्री | भारत के ऋषियों ने प्रकृति में भव्यता का प्रत्यक्ष अनुभव किया। उसे भव्य मानते हुए प्रणाम किया। चरक संहिता में कहा गया यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे अर्थात जो इस ब्रह्माण्ड में है वही सब हमारे शरीर में भी है। भौतिक संसार पंचमहाभूतों से बना है-आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी।

उसी प्रकार हमारा यह शरीर भी इन्हीं पाँचों महाभूतों से बना हुआ है। इस प्रकार ब्रह्माण्ड और शरीर में समानता है। स्थूल व सूक्ष्म की दृष्टि से ही अंतर है। प्रकृति तथा पुरुष में समानता है। चरक संहिता में यह भी कहा गया कि-यावन्तो हि लोके मूर्तिमन्तो भावविशेषाः।

तावन्तः पुरुषे यावन्तरू पुरुषे तावन्तो लोके

अर्थात ब्रह्माण्ड में चेतनता है। मनुष्य भी चेतन है। पंचमहाभूतों के सभी गुण मनुष्य में हैं। प्रकृति में सन्धिकाल का विशेष महत्व है। वर्ष और दिवस में दो संधिकाल महत्वपूर्ण होते है। दिवस में सूर्योदय व सूर्यास्त के समय संधिकाल कहा जाता है। सूर्योदय के समय अंधकार विलीन होने लगता है, उसके स्थान प्रकाश आता है।

सूर्यास्त के समय इसकी विपरीत स्थिति होती है। भारतीय चिंतन में इस संधिकाल में उपासना करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त वर्ष में दो संधिकाल होते है। इसमें मौसम का बदलाव होता है। ऋतु के समय संयम से स्वास्थ भी ठीक रहता है।

नवरात्र आराधना भी वर्ष में दो बार इन्हीं संधिकाल में आयोजित होती है। यह शक्ति आराधना का पर्व है। इसी के अनुरूप संयम नियम की भी आवश्यकता होती है। पूरे देश में इक्यावन शक्तिपीठ पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते है।
नवरात्र में शक्ति और समरसता का संदेश मिलता है।

मां दुर्गा का प्रथम रूप है शैल पुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म होने से इन्हें शैल पुत्री कहा जाता है। नवरात्रि की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। इनकी उपासना से तप,त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।

मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। चतुर्थी के दिन मां कुष्मांडा की आराधना की जाती है। नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मां का छठवां रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा।अर्चना की जाती है।

नवरात्रि की सप्तमी के दिन मां काली रात्रि की आराधना का विधान है। देवी का आठवां रूप मां गौरी है। इनका अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। मां सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्रि की नवमी के दिन किया जाता है। माँ जगदम्बा जो स्वयं वाणीरूपा है। वही वाणी, बुद्धि, विद्या प्रदायिनी भी है।

देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।

ऐसा भक्त इसलिए करते हैं ताकि मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।

आज नवरात्र का दूसरा दिन है। नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की पूजा की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी।

ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है।

ब्रह्मचारिणी देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर पार्वती स्वरूप में थीं। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोप तपस्या की थी। कठोर तप के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। मां जगदम्बे की भक्ति के लिए मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र का नवरात्र में द्वितीय दिन जाप करना चाहिए-

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे,आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। मां दुर्गा की तीसरी शक्ति मां चंद्रघंटा के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्रमा सुशोभित है। स्वर्ण के समान इनका दमकता हुआ तेजोमय स्वरूप है।

इनके दस हाथ हैं,जिनमें अस्त्र-शस्त्र लिए हुए मां सिंह पर आरूढ़ हैं। मां राक्षसों के विनाश के लिए युद्ध में प्रस्थान करने को उद्यत हैं। मान्यता है कि इनके घंटे की ध्वनि सुनकर दैत्य, राक्षस आदि भाग जाते हैं।

मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान आत्मिक रूप से सशक्त बनाता है। नकारात्मक ऊर्जा का निराकरण होता है। सकारात्मक भाव व सद्गुणों का विकास होता है।

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