- प्राकृतिक चिकित्सा अपने-आप में सिद्ध चिकित्सा है : मुख्यातिथि
- प्राकृतिक चिकित्सा ईश्वर प्राप्त चिकित्सा पद्धति है : डा. धर्मवीर सिंह
नीरज कौशिक, महेंद्रगढ़:
आयुष मंत्रालय भारत सरकार के दिशा निर्देशानुसार राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के अवसर पर गत दिवस आयुष विभाग की ओर से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अटेली में आहार ही औषधि है विषय पर सेमिनार व प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्यातिथि के तौर पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अटेली के प्रवर चिकित्सा अधिकारी डा. विजय सिंह यादव ने शिरकत की। मुख्यातिथि डा. विजय सिंह व जिला आयुष अधिकारी डा. अजीत सिंह ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व व लाभ के बारे में जानकारी
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर मौजूद इन्दिरा गांधी विश्वविद्यालय मीरपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. धर्मवीर सिंह यादव ने कार्यक्रम में आए सभी आमजन को प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व व लाभ के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मानव शरीर पंच तत्वों से बना हुआ है जब इनमें असंतुलन होता है जब ही कोई रोग शरीर में होता है। प्राकृतिक चिकित्सा ईश्वर प्राप्त चिकित्सा पद्धति है। इसमें सभी द्रव्य पंचभौतिक हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु एवं आकाश के आधार पर चिकित्सा की जाती है। उन्होंने बताया कि जानवर बीमार होने पर सबसे पहले जलाश्य एवं कीचड़ के पास जाता है, और कुछ भी नहीं खाता-पीता है। ठीक होने के बाद ही वह आहार गृहण करता है।
मुख्यातिथि डा. विजय सिंह यादव ने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा अपने-आप में सिद्ध चिकित्सा है। उन्होंने आयुष विभाग का इस कार्यक्रम को संस्था में लगवाने के लिए धन्यवाद किया।
जिला आयुष अधिकारी डा. अजित सिंह यादव ने बताया कि आयुष विभाग की ओर से हर वर्ष प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के उपलक्ष्य में सेमिनार, प्रर्दशनी का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को दिन में कम से कम 30 मिनट मिट्टी या हरी घास पर अवश्य चलना चाहिए। और प्राकृतिक चिकित्सा सबसे सस्ती एवं सभी रोगों में करगार है।
इस अवसर पर प्राकृतिक चिकित्सा सहायक सत्यदेव सिंह ने शिविर में उपस्थिति रोगियों को पेट व माथे पर मिट्टी पटली तथा जलनेति एवं सूत्रनेति करवाई। प्राकृतिक चिकित्सा रोग के मूल पर वार करती है। कार्यक्रम में मंच संचालन डा. भूपेन्द्र कुमार ने किया। उन्होंने कहा कि इस पद्धति से चिकित्सा करवाने पर रोग मुक्त के अलावा ऐसी जीवन पद्धति का आरंभ होता है कि दोबारा रोग होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
इस अवसर पर डा. नितिन जांगड़ा, डा. विजय, डा. सहदेव, डा. अंकित, डा. विनय, डाटा एन्ट्री ऑपरेटर जसवंत, औषधाकारक भूपेन्द्र, औषधाकारक मनोज, औषधाकारक आजाद सहित सभी अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद थे।
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