National President BV Srinivas : भारतीय युवा कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बी वी श्रीनिवास को गुवाहाटी हाईकोर्ट से झटका, महिला नेता की प्रताड़ना मामले में नहीं मिली राहत

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राष्ट्रीय अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास
राष्ट्रीय अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास

Aaj Samaj, (आज समाज), National President BV Srinivas,दिल्ली :

1. भारतीय युवा कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बी वी श्रीनिवास को गुवाहाटी हाईकोर्ट से झटका, महिला नेता की प्रताड़ना मामले में नहीं मिली राहत

भारतीय युवा कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष श्रीनिवास बी वी को बड़ा झटका लगा है। श्रीनिवास बी वी को उनकी पूर्व सहयोगी के उत्‍पीड़न मामले में राहत नहीं मिली है। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने महिला नेता द्वारा आईपीसी की धारा 509/294/341/352/354/354 ए (iv)/506 के तहत दायर मामले में  अंतरिम संरक्षण देने से इनकार कर दिया है। श्रीनिवास बी वी ने बुधवार को गुवाहाटी हाई कोर्ट का रुख किया और अपने पूर्व सहयोगी द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए दायर प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी।

दरसअल असम पुलिस ने श्रीनिवास को नोटिस भेज कर उसे 2 मई को गुवाहाटी के दिसपुर पुलिस स्‍टेशन में अतिरिक्‍त पुलिस उपायुक्‍त मोइत्रयी डेका के सामने पेश होने के लिए कहा है। पुलिस ने साफ कहा पेश न होने पर उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाएगा। असम प्रदेश युवा कांग्रेस की निष्‍कासित अध्‍यक्ष अंगकिता दत्‍ता ने राष्‍‍‍‍‍‍ट्रीय अध्‍यक्ष श्रीनिवास पर उत्‍पीड़न का गंभीर आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। अंगकिता दत्ता ने कहा कि पहले मैं इस मामले को कांग्रेस पार्टी के भीतर ही सुलझाना चाहती थी। श्रीनिवास ने कई महीनों तक मेरे साथ दुर्व्‍यवहार किया, गंदे और अपमानजनक भाषा का इस्‍तेमाल किया। उन्होंने शिकायत में कहा है कि मैंने कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेताओं से की थी, लेकिन उन्‍होंने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की।इसके बाद मुझे मानहानि के नोटिस की धमकी दी गई।

2.पश्चिम बंगाल राम नवमी हिंसा : ममता सरकार को झटका, कलकत्ता हाईकोर्ट ने जांच एनआईए को सौंपी

रामनवमी के मौके पर पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जिलों में हुई हिंसा को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है। गुरुवार को हावड़ा और दालकोला समेत अलग-अलग शहरों में हुई हिंसा की घटनाओं की जांच अब हाई कोर्ट ने आतंक-रोधी एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी है।

दरसअल रामनवमी के दौरान पूरे बंगाल में हिंसा भड़क उठी थी। यहां कई वाहनों में आग लगा दी गई थी, जबकि पत्थरबाजी और कई दुकानों में तोड़फोड़ की खबरें भी सामने आई थीं। इसके अलावा कई जगहों पर अलग-अलग राजनीतिक दल के लोगों के टकराव के मामले भी सामने आए थे।  इसको लेकर कोलकाता हाई कोर्ट में याचीका दाखिल की गई थी और एनआईए से इस पूरे मामले कक जांच की मांग की गई थी।

3. पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ पटना हाई कोर्ट याचीका दाखिल,

पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का मामला पटना हाई कोर्ट पहुँच गया है। भीम आर्मी भारत एकता मिशन के राज्य प्रभारी अमर ज्योति ने पटना हाई कोर्ट में याचीका दाखिल की है। अमर ज्योति की अधिवक्ता अलका वर्मा ने लीगली स्पकिंग को कहा  कि राज्य सरकार ने अपराधियों को बचाने के लिए कानून में परिवर्तन कर गलत काम किया है। अलका ने यह भी कहा कि
पटना हाईकोर्ट में बिहार सरकार की ओर से जारी उस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग को है, जिसके तहत बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i)(क) में संशोधन कर ‘ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या’ वाक्य को हटाया दिया गया। याचीका में कहा गया है कि अधिसूचना कानून व्यवस्था पर प्रतिकूल असर डालने वाली है और ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवकों और आम जनता के मनोबल को गिराती है।वही आनंद मोहन आज सुबह जेल से रिहा हो गए है।

4. अतीक के दो बेटों और गुर्गों पर करोड़ों की रंगदारी मांगने का आरोप, लखनऊ के बिल्डर ने दर्ज कराई एफआईआर

माफिया अतीक अहमद के परिवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। प्रयागराज में अतीक के परिवार के खिलाफ एक और एफआईआर दर्ज हुई है। इस बार अतीक अहमद के जेल में बंद दो बेटों के खिलाफ आपराधिक लखनऊ के बिल्डर मोहम्मद मुस्लिम ने यह केस दर्ज कराया है।  यह एफआईआर प्रयागराज के खुल्दाबाद थाने में दर्ज कराई गई है।

माफ़िया अतीक अहमद के लखनऊ जेल में बंद बेटे मोहम्मद उमर और प्रयागराज जेल में बंद दूसरे बेटे अली अहमद के खिलाफ अपहरण और रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज हुआ है। इतना ही नही अतीक के दोनों बेटों के साथ ही उसके करीबी आसाद कालिया, गनर एहतेशाम करीम, मोहम्मद नुसरत और अजय के नाम भी एफआईआर में है। दरसअल 15 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी नहीं देने पर अपहरण कराने, जान से मारने की धमकी देने और एक करोड़ 20 लाख रुपए की रंगदारी वसूलने के मामले में यह केस दर्ज कराया गया है।

5.नौ साल की बेटी के साथ दुष्कर्म के आरोपी पिता को सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई 20 साल की सख्त जेल की सजा*

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नौ साल की बेटी से दुष्कर्म के दोषी एक व्यक्ति को बिना किसी छूट के 20 साल जेल की सजा सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके भ्रष्ट और विनाशकारी कृत्यों से रिश्ते की पवित्रता नष्ट हुई है। दिल्ली की एक विशेष फास्ट ट्रैक अदालत ने 2013 में उस व्यक्ति को IPC की धारा 376, 377 और 506 के तहत दोषी ठहराया था और जुर्माने के साथ 20 साल की न्यूनतम अवधि के आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 2017 में इस व्यक्ति की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा था। इसके बाद इस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय ओका और संजय कुमार की बेंच ने कहा कि इस व्यक्ति को सबसे ‘भद्दे और भयानक’ अपराध का दोषी पाया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस व्यक्ति ने अपनी ही बेटी का शारीरिक शोषण किया, जो युवावस्था की दहलीज पर भी नहीं थी। बेंच ने कहा कि अगर यह व्यक्ति सिर्फ 14 साल जेल में बिताने के बाद रिहा कर दिया जाता है, तो वह अपनी बेटी के जीवन में फिर से प्रवेश कर सकता है। इस समय उसकी बेटी युवावस्था में है। बेटी के जीवन में इसका फिर से प्रवेश उसे आघात पहुंचा सकता है और उसके जीवन को कठिन बना सकता है।

6.अतंरंग संबंधों की क्लिप्स इंटरनेट पर बार-बार दिखाए जाने पर दिल्ली हाईकोर्ट का सर्च इंजनों फूटा पर गुस्सा*

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेक्सुअल सामग्री के अवैध साझाकरण के खिलाफ कानून को लागू करने में इंटरनेट  की “अनिच्छा” पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और निर्देश दिया कि यदि सामग्री हटाने के आदेश के बावजूद ऐसी सामग्री इंटरनेट पर दिखाई देती  इसे अवश्य ही हटाया जाना चाहिए। पीड़ित को इसे हटाने के लिए फिर से अदालत जाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

यह कहना कि “इंटरनेट कभी नहीं भूलता” और आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार को “नियंत्रित करना असाधारण रूप से कठिन” है- यह बहाना नहीं बनाया जा सकता। , न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद ने कहा कि यह सर्च इंजन की जिम्मेदारी है कि वह आपत्तिजनक सामग्री तक सब्सक्राइबर की पहुंच को तुरंत बंद करे और पीड़ित फिर से शिकार नहीं बनाया जाए।

अदालत ने कहा, “गैर-सहमति वाली अंतरंग रिश्तों की छवियों के दुरुपयोग”, जो डिजिटल युग में बढ़ रही थी, में “सहमति के बिना प्राप्त यौन सामग्री और किसी व्यक्ति की गोपनीयता के उल्लंघन के साथ-साथ प्राप्त की गई यौन सामग्री और निजी और गोपनीय के लिए इरादा” शामिल होना चाहिए।

अदालत ने यह भी कहा कि दिल्ली पुलिस को ऐसे मामलों में तुरंत एक औपचारिक शिकायत दर्ज करनी चाहिए और गैरकानूनी सामग्री के बार-बार अपलोड को रोकने के लिए अपराधियों को जल्द से जल्द बुक करना चाहिए।

अदालत ने ऑर्बिट्रेटर्स को भी ऐसे मामलों में दिल्ली पुलिस को “बिना शर्त सहयोग करने और साथ ही तुरंत जवाब देने” का निर्देश दिया और आईटी नियमों का पालन करने का निर्देश दिआय़

अदालत ने कहा, “जब कोई पीड़ित अदालत या कानून प्रवर्तन एजेंसी से संपर्क करता है और एक टेकडाउन ऑर्डर प्राप्त करता है, तो सर्च इंजनों द्वारा एक टोकन या डिजिटल पहचान-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डी-इंडेक्स की गई सामग्री फिर से सामने न आए।”

“यदि उपयोगकर्ता-पीड़ित को बाद में पता चलता है कि वही सामग्री फिर से सामने आई है, तो यह सर्च इंजन की जिम्मेदारी है कि वह पहले से मौजूद उपकरणों का उपयोग करे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पीड़ित को अदालत जाने की आवश्यकता के बिना आपत्तिजनक सामग्री तक पहुंच तुरंत बंद हो जाए।

अदालत का यह आदेश एक महिला की याचिका पर पारित किया गया था, जिसने अपनी अंतरंग छवियों को प्रदर्शित करने वाली कुछ साइटों को ब्लॉक करने की मांग की थी।

मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता सहित 83,000 से अधिक स्पष्ट तस्वीरें पुलिस द्वारा आरोपी के आवास पर एक लैपटॉप से बरामद की गईं।

“एनसीआईआई को अपलोड करने से न केवल आईटी अधिनियम और आईटी नियमों के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन होता है, बल्कि यह निजता के अधिकार का भी उल्लंघन है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का एक पहलू है।”

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