National News : हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में इंडिया गठबंधन को एक जुट रखना राहुल की चुनौती

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National News : हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में इंडिया गठबंधन को एक जुट रखना राहुल की चुनौती
National News : हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में इंडिया गठबंधन को एक जुट रखना राहुल की चुनौती

National News | अजीत मेंदोला, नई दिल्ली। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी की इंडिया गठबंधन को एक जुट रखने की असल परीक्षा अक्टूबर नवंबर में होने वाले तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में होगी। जैसे की खबरें आ रही हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी समय से पूर्व इसी साल अपने राज्य में चुनाव करवा सकते हैं। तो ऐसे में बिहार भी इनमें शामिल हो जायेगा।

महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में तो चुनाव इसी साल होने तय है। इनमें हरियाणा एक मात्र राज्य हैं जहां कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा अपनी तरफ से कर चुकी है। वहीं फेस के मामले में घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन कांग्रेस की तरफ से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फेस माना जा रहा है। आज के दिन तक तीनों राज्यों में माहौल इंडिया गठबंधन के पक्ष में बताया जाता है। लेकिन बीजेपी का दावा है कि जैसे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चौंकाया था उसी तरह इन राज्यों के परिणाम भी उनके ही पक्ष आयेंगे।

राहुल के सामने झारखंड छोड़ बाकी सभी राज्यों में कई तरह की चुनौतियां

लोकसभा चुनाव में 99 सीट हासिल करने के बाद राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस उम्मीद में हैं कि तीनों राज्यों में जीत उनकी ही होगी। राहुल गांधी के लिए झारखंड छोड़ बाकी सभी राज्यों में कई तरह की चुनौतियां। पहली तो सबसे बड़ी चुनौती यही है कि गठबंधन को कैसे एक जुट रखा जाए। क्योंकि हरियाणा जैसे राज्य में राहुल के घनिष्ठ मित्र और यूपी की उम्मीद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने आधा दर्जन सीटों की मांग कर दी है। कांग्रेस की परेशानी यह है कि अगर वह सपा को सीट नहीं देती है तो उसे डबल नुकसान होगा। एक उत्तर प्रदेश में गठबंधन पर असर पड़ेगा।

दूसरा मध्यप्रदेश की तरह हरियाणा भी प्रभावित होगा। पिछले साल मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी ने यादव बाहुल्य सीटों पर दावेदारी की थी, लेकिन कांग्रेस के नेता कमलनाथ ने एक भी सीट देने से मना कर दिया था। जिसका कांग्रेस को नुकसान हुआ। वही हालात हरियाणा में बनते हुए दिख रहे हैं। पूर्व सीएम और चेहरा माने जा रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा सभी 90 सीटों पर लड़ने की बात कर रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश भी कह चुके हैं कांग्रेस अकेले लड़ेगी। पार्टी ने यह घोषणा आम आदमी पार्टी से गठबंधन तोड़ते समय की। लोकसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने मिल कर चुनाव लड़ा था।

आप आजकल बुरे दौर में है, लेकिन इसके बाद भी वह हरियाणा में चुनाव लड़ेगी। काग्रेस ने गठबंधन भले ही तोड़ दिया हो, लेकिन इंडिया गठबंधन में आज भी बनी हुई है। संसद में राजग सरकार पर हमले के दौरान आप के नेता कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिला साथ देते हैं। ये तो तय हो गया है इंडिया गठबंधन का एक घटक दल आम आदमी पार्टी हरियाणा में कांग्रेस के सामने चुनाव लड़ेगी।

आप से भले ही कांग्रेस पर असर नहीं पड़ेगा, लेकिन सपा को नाराज करना महंगा पड़ सकता है। वह भी तब जब राहुल गांधी एक दशक बाद उत्तर प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं। सपा केवल हरियाणा तक सीमित नहीं रहेगी। महाराष्ट्र और बिहार में भी वह हिस्सेदारी मांगेगी।

इस बार आरजेडी अपने हिसाब से सीटों का बंटवारा करेगी

बिहार में राष्ट्रीय जनता दल 2020 वाली गलती इस बार दोहराएगी नहीं। तब उसने कांग्रेस को उसकी मांग के हिसाब से सीट दी थी, जिसमें वह अधिकांश सीट हार गई और तेजस्वी यादव सीएम बनने से चूक गए। इस बार आरजेडी अपने हिसाब से सीटों का बंटवारा करेगी। राहुल के सामने हरियाणा के बाद सबसे बड़ी चुनौती बिहार में आएगी। हरियाणा में कांग्रेस अगर इस बार चूकी तो साफ संदेश चला जायेगा कि कांग्रेस भाजपा से सीधे मुकाबले में जीती ही नहीं पाती है।

कांग्रेस को घेरने के लिए बीजेपी अपना कुनबा हर लिहाज से मजबूत करने में जुटी हुई है। सोशल इंजीनियरिंग के साथ सभी वर्गों को साध रही है। दस साल की एंटी इंकनवेंसी खत्म करने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले नया सीएम फेस नायाब सैनी भी दे दिया। जो हालात हरियाणा में बन रहे हैं उससे तय है कि बहुकोणीय मुकाबला होगा।

आप के अलावा इनेलो और बसपा गठबंधन, जेजेपी ये दल तो चुनाव लडेंगे ही। इन हालात में राहुल गांधी के लिए हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ना बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में समाजवादी पार्टी ने भी अलग से मोर्चा खोल दिया तो नुकसान कांग्रेस का ही होगा और उसका असर उत्तर प्रदेश तक पड़ेगा। बीजेपी को छोड़ अधिकांश दलों की नजर जाट, मुस्लिम और दलित वोटरों पर है।

कांग्रेस इन वोटरों के दम पर वापसी की उम्मीद कर रही है। अंदुरूनी गुटबाजी भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। इसी तरह महाराष्ट्र में भी इंडिया गठबंधन की एक जुटता बड़ी चुनौती है। आम आदमी पार्टी तो पहले ही बाहर कर दी गई।प्रकाश अंबेडकर की पार्टी भी बाहर है। लेकिन कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पंवार की पार्टी के बीच सीटों और चेहरे को लेकर बड़ा पेंच है। कांग्रेस किसी को फेस बनाने के पक्ष में नहीं है। लेकिन वहीं शिवसेना अपने नेता उद्धव ठाकरे को सीएम फेस बनाना चाहती है। एनसीपी नेता शरद पंवार मुख्यमंत्री बनने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं।

ये तो सीएम फेस का पेंच है। सीट बंटवारे को लेकर भी बात आसानी से बनेगी लगता नहीं। कांग्रेस ने लोकसभा में सबसे ज्यादा सीट जीत ज्यादा सीटों पर दावेदारी ठोकी हुई है। 288 सीटों की विधानसभा में कांग्रेस ने पिछली बार 147 सीटों पर चुनाव लड़ा था। मुंबई में इस हफ्ते तीनों पार्टियों के नेताओं के बीच कई दौर की बैठके हुई, लेकिन अधिकृत घोषणा नहीं की गई।

मोटे तौर पर कांग्रेस 125 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। दूसरे नंबर पर उद्धव ठाकरे की पार्टी वह भी 90 के आस पास दावेदारी कर रही है। बाकी शरद पंवार की पार्टी को मिलेंगी। कांग्रेस की कोशिश है बड़ा भाई दिखे और चुनाव बाद सीएम पद पर दावेदारी ठोके। शिवसेना उद्धव ठाकरे को अभी तक एनसीपी और कांग्रेस भरोसा दिए हैं, चिंता न करें।

लेकिन शरद पंवार जिस तरह से चुनाव के बारे में बात कर रहे हैं वह उद्धव ठाकरे की पार्टी की चिन्ता बढ़ा रहा। पंवार के अनुमान में एमवीपी 288 में से 225 सीटें ला सकता है। यह भी हो सकता है कि कांग्रेस और एनसीपी पंवार ही 150 से ज्यादा सीट लें आएं ऐसे में उद्धव ठाकरे कुछ करने की स्थिति में नहीं होंगे।

सीएम पद फिर पंवार और राहुल जिसे बनाएंगे वह बनेगा। उद्धव ठाकरे भी पूरी राजनीति समझ रहे हैं। राहुल पंवार के साथ एक धार्मिक यात्रा में शामिल हो रहे है। राहुल गांधी के साथ बैठक के बाद ही महाराष्ट्र में कोई स्थिति साफ होगी। फिलहाल महा विकास अगाड़ी के नेता एक जुटता की बात कर रहे हैं।

लेकिन राजग ने महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में 11 में से 9 सीट जीत कर कांग्रेस में क्रास वोटिंग करवा दी। यह कांग्रेस, पंवार और उद्धव ठाकरे के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। जो राह आसान लग रही थी उसे राजग ने मुश्किल बनाने की कोशिश की है। इसी के बीच में समाजवादी पार्टी ने 4 से 5 सीटों पर दावेदारी की है। ये सीट कांग्रेस को अपने हिस्से से देनी पड़ेगी। फैसला आसान नहीं होगा। महाराष्ट्र में चुनाव की घोषणा तक राजनीति में बहुत कुछ बदलाव हो सकते हैं।

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