- बीजेपी अपनी पिच पर खिलाने लगी है विपक्ष को
National News | Rahul Gandhi | India Alliance | अजीत मेंदोला । नई दिल्ली । विपक्ष एक बार फिर बीजेपी के बिछाए जाल में फंस गया दिखता है। यूं कहा जा सकता है कि बीजेपी इंडिया गठबंधन को फिर से अपनी पिच पर खिलाने लगी है। कांग्रेस और उसके गिनती के सहयोगी दलों ने एक बार फिर मुस्लिम तुष्टिकरण का झंडा उठा बीजेपी के लिए आगे की राह आसान करनी शुरू कर दी है।
कांग्रेस न चाहते हुए भी तुष्टिकरण की राजनीति में फंस गई है। क्योंकि उसके सर्वोच्च नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) उत्तर प्रदेश से सांसद हैं। ऐसे में तुष्टिकरण की राजनीति उनकी मजबूरी है। हालांकि राहुल उत्तर प्रदेश की राजनीति में लौटना नहीं चाहते थे, लेकिन परिवार की अंदरूनी राजनीति ने उन्हें फंसा दिया।
UP में Rahul Gandhi और Priyanka Gandhi के प्रयोग असफल रहे
राहुल जानते थे कि उत्तर प्रदेश में उनके और उनकी बहन के सारे प्रयोग असफल रहे हैं। इसलिए वहां पर पार्टी की वापसी कराना आसान नहीं है। लेकिन बहन के दबाव में वह रायबरेली से चुनाव लड़ गए। अब उन्हें न चाहते हुए भी अपनी ड्यूटी निभानी पड़ रही है। सो राहुल बुधवार अपनी बहन प्रियंका के साथ संभल जाने को निकले।
हालांकि पुलिस ने उन्हें यूपी बार्डर से वापस लौटा दिया। लेकिन मीडिया से संदेश चला गया कि संभल की घटना से राहुल भी आहत हैं। क्योंकि अभी तक समाजवादी पार्टी ही संभल के मामले को लेकर फ्रंट फुट पर खेल रही थी।
सपा अभी भी कांग्रेस की सहयोगी बनी हुई। आगे रहेगी या नहीं समय बताएगा। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों के बाद सपा के कांग्रेस से मोह भंग होने के संकेत मिल रहे हैं। सपा समेत बाकी सहयोगियों को भी लगने लगा है कि कांग्रेस से दूरी ही सही है।
क्योंकि राहुल गांधी अपने हिसाब से राजनीति करना चाहते हैं। विपक्ष तैयार नहीं है। राहुल चाहते थे कि पूरा विपक्ष प्रसिद्ध उद्योगपति गौतम अडानी के मामले उनकी हां में हां मिलाए एक दो को छोड़ कोई तैयार नहीं हुआ। सपा तो यूं भी राहुल की अडानी अंबानी की राजनीति से सहमत नहीं रही है।
हालांकि राहुल ने आज कल अंबानी का नाम लेना बंद कर दिया है। केवल अडानी पर ही अपने को केंद्रित रखा हुआ है। इसलिए सपा अपने पुराने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की तरफ लौट आई है। सपा कभी नहीं चाहेगी कि कोई दूसरा दल मुस्लिम वोटों पर सेंध लगाए। इसलिए सपा संभल की घटना को लेकर सबसे पहले मुकर हुई। संसद में उसके नेताओं ने सरकार पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ा।
लोकसभा में Rahul Gandhi की जातीय और संविधान की राजनीति कांग्रेस को हरियाणा और महाराष्ट्र में ले डूबी
कह सकते हैं शीतकालीन सत्र में सपा का अभी तक एक सूत्री एजेंडा संभल ही था। संभल में जो भी हुआ उसे कोई भी सही नहीं ठहरा सकता है। अब सवाल यही है कि आखिर यह मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे हालात क्यों बने और किसने बनाए। देखा जाए तो इसके लिए कांग्रेस ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी की जातीय और संविधान की राजनीति कांग्रेस को हरियाणा और महाराष्ट्र में ले डूबी।
कांग्रेस के साथ देने वाले दल भी उसमें फंस गए। राहुल के संविधान खतरे में और जातीय राजनीति तोड़ बीजेपी ने ऐसा निकाला कि पूरा विपक्ष समझ ही नहीं पाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक हैं तो सेफ हैं और यूपी के सीएम योगी के बंटेंगे तो कटेंगे ने राहुल गांधी के संविधान खतरे में और जातीय राजनीति को धो दिया।
देखा जाए तो राहुल गांधी खुद ही रीजनल पार्टियों की जाती की राजनीति में फंसे। राहुल का जगह जगह संविधान की लाल किताब लहराने को जनता ने नकार दिया है। लोकसभा में विपक्ष को जो सीटें मिली वह संविधान की किताब लहराने से नहीं बल्कि बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई से मिली। लेकिन माहौल ऐसा बना कि जातीय राजनीति और आरक्षण की सीमा बढ़ाने के मुद्दे ने काम कर दिया।
बीजेपी ने लिया गलतियों से सबक
बीजेपी ने गलतियों से सबक ले हरियाणा और महाराष्ट्र में कोई चूक नहीं की। हिंदुओं को एक जुट रखने के लिए बीजेपी ने ऐसा दांव खेला कि विपक्ष उसमें फंस गया। खास तौर पर कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में उलझना बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा।
कांग्रेस ने बीजेपी के एक हैं तो सेफ हैं और बटेंगे तो कटेंगे का तोड़ अडानी के मुद्दे से करने की कोशिश की। जिसे हरियाणा के बाद महाराष्ट्र की जनता ने नकार दिया। हिंदुओं को जाती की राजनीति में बांटने का असर यह हुआ कि देश भर की कुछ मस्जिदों के सर्वे के मामले सामने आने लगे। संभल का मामला अभी अदालत में है।
संभल हिंसा ने प्रदेश की राजनीति में हिंदुओं के पक्ष का धु्रवीकरण किया
लेकिन फैली हिंसा ने एक बार फिर प्रदेश की राजनीति का हिंदुओं के पक्ष में ध्रुवीकरण कर दिया है। अजमेर के मामले ने ध्रुवीकरण को हवा दे दी। मथुरा और ज्ञानवापी का मुद्दा पहले से चल रहा है। हो सकता है आने वाले दिनों में कई और मस्जिदों के सर्वे की बात हो। इनमें कोई दो राय नहीं है कि मुस्लिम शासकों ने देश के कई मंदिरों को तोड़ मस्जिद बनाई है। अयोध्या, मथुरा और बनारस की ज्ञानवापी उदाहरण भर हैं।
कांग्रेस अगर अपने शासन काल में मंदिर मस्जिद के विवादों को सुलझा लेती तो शायद आज उसे यह दिन नहीं देखना पड़ता। रीजनल दलों पर जातपात और तुष्टिकरण की राजनीति का असर नहीं पड़ता है,लेकिन कांग्रेस के लिए यह बड़े घाटे का सौदा है।
अच्छा हो राहुल और उनकी बहन प्रियंका संविधान की किताब लहराने, अडानी और आरक्षण के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल बाकी दूसरे किसानों, महंगाई, भ्रष्टाचार और बढ़ती बेरोजगारी को मुद्दा बना राजनीति करेंगे तो शायद यह कांग्रेस के हित में होगा।
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