(National News) अजीत मेंदोला। नई दिल्ली : लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी बिहार के बाद क्या हरियाणा में भी कोई बड़ा खेला कर सकते हैं?सूत्रों की माने तो ऐसा हो सकता है।पार्टी में एक बड़ा धड़ा हरियाणा में गैर जाट राजनीति की वकालत कर रहा है।यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके तमाम समर्थकों के दबाव के बाद भी पार्टी उनके अनुसार इस बार किसी भी प्रकार की नियुक्ति से बच रही है।हुड्डा समर्थक प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल नेता पद में से एक पद मांग रहे है।

शुरू से एक ही कोशिश थी कि प्रदेश अध्यक्ष अगर गैर जाट बनाया जा रहा है तो विधायक दल नेता पद हुड्डा को मिले।लेकिन पार्टी आलाकमान इस बार अलग ही मूड में दिख रहा है।सूत्रों की माने तो हुड्डा की तमाम कोशिशें असफल हो गई हैं।उनके कुछ समर्थकों ने तो पार्टी में टूट तक की बात कहनी शुरू कर दी।लेकिन कांग्रेस आलाकमान हरियाणा के पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखे हुए।यही वजह है कि बजट सत्र भी अभी तक प्रतिपक्ष के नेता के बिना चल रहा है।
आलाकमान को अहसास है कि मौजूदा विधायकों में बड़ी संख्या हुड्डा समर्थक विधायकों की ही है।

कहा जाता है कि 31 विधायकों ने आलाकमान को लिख कर दिया है कि हुड्डा को ही प्रतिपक्ष का नेता बनाया जाए।इसके बाद भी आलाकमान अभी तक दबाव में नहीं आया।इस बीच पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पुराने अनुभवी और गांधी परिवार के करीबी वी के हरिप्रसाद को प्रदेश के प्रभारी पद की जिम्मेदारी दे दी।प्रसाद ने भी अपने स्तर प्रदेश के नेताओं और विधायकों से एक दो दौर की चर्चा कर ली।

अजीत मेंदोला।

हारने वाले प्रत्याशियों ने रिपोर्ट आलाकमान को दी है

दरअसल हरियाणा की राजनीति में एक तरफ भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं तो दूसरी तरफ सांसद शैलजा,रणदीप सिंह सुरजेवाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह हैं।जनाधार के हिसाब से हुड्डा सब पर भारी पड़ते हैं लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह की राजनीति हुई उससे आलाकमान नाराज है। क्योंकि पार्टी के नेताओं ने एक दूसरे को हराने की कोशिश की।बकायदा निर्दलीय प्रत्याशी खड़े कराए गए।हारने वाले प्रत्याशियों ने रिपोर्ट आलाकमान को दी है।

इसके साथ जाट राजनीति ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया।क्योंकि दूसरी जातियां नाराज हो गई।आलाकमान की समझ में एक बात आ गई कि अब जाट राजनीति को छोड़ना होगा।बीजेपी के ब्राह्मण और ओबीसी के तालमेल ने पार्टी को विधानसभा चुनाव में फायदा पहुंचाया।मुख्यमंत्री ओबीसी और प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण थे।प्रभारी सतीश पूनिया जाट।बीजेपी का जातीय समीकरण कांग्रेस पर भारी पड़ा।

राहुल गांधी ने जिस तरह बिहार में दलित को प्रदेश अध्यक्ष बना बड़ा दांव खेला उसी तरह हरियाणा में भी कोई चौंकाने वाले फेस सामने ला सकते हैं।वह फेस दलित ब्राह्मण या ओबीसी ब्राह्मण कुछ भी हो सकता है।बिहार में दलित राजेश सिंह प्रदेश अध्यक्ष हैं तो कन्हैया कुमार भूमिहार हैं। पप्पू यादव ओबीसी।तीनों नेताओं का तालमेल कांग्रेस को लड़ाई में ला सकता है।हालांकि हरियाणा में हुड्डा समर्थकों का मिथक बनाया हुआ है कि जाट अगर छिटका तो चौटाला परिवार की पार्टियों के साथ चला जाएगा। जबकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जाट बाहुल्य सीट जीत इस मिथक को गलत साबित किया।इसलिए कांग्रेस आलाकमान हरियाणा को लेकर जब भी कोई फैसला करेगी वह चौंकाने वाला ही होगा।

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