• दिल्ली में बारीक प्रबंधन ने पलटी बाजी

(National News) अजीत मेंदोला। नई दिल्ली : केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह देश के पहले ऐसे राजनीतिक चाणक्य बन गए हैं जिनसे विपक्ष का पार पाना अब बहुत मुश्किल होगा।दिन रात चौबीस घंटे केवल और केवल पार्टी के बारे में सोच ऐसी बारीक रणनीति बनाते हैं जिसकी खबर विपक्ष को लगती ही नहीं है।पहले हरियाणा,फिर महाराष्ट्र और अब दिल्ली तीनों राज्यों में विपक्ष को फंसाने का चक्रव्यू अमित शाह ने खुद तैयार किया।हरियाणा चुनाव जो सबसे ज्यादा चुनौती पूर्ण दिख रहा था शाह ने प्रबंधन का काम अपने हाथ में ले चुनावी रणनीति से लेकर टिकट वितरण तक अपने हिसाब से फैसले कर बाजी पलट दी।कांग्रेस ने झेंप मिटाने के लिए ईवीएम को जिम्मेदार बताया।

शाह ने लगभग यही रणनीति मुश्किल दिखने वाली दिल्ली के लिए बनाई

लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस को वोटिंग से हफ्ते भर पहले आभास हो गया था कि बाजी हाथ से निकल गई।हरियाणा जीतते ही शाह ने महाराष्ट्र की कमान अपने हाथ ले इस तरह की रणनीति बनाई कि राजनीति के भीष्म पितामाह माने जाने वाले शरद पंवार भी ढेर हो गए।उनकी पार्टी की ऐसी करारी हार हुई जिसकी कल्पना पंवार को शायद ही रही हो।जबकि शाह ने पहले चुनाव प्रचार में पंवार पर सीधा हमला बोल संदेश दे दिया था कि जीतेगी तो भाजपा ही।पंवार के साथ सहानुभूति का कार्ड खेलने वाले उद्धव ठाकरे भी परिणामों के बाद सकते में आ गए।शाह ने लगभग यही रणनीति मुश्किल दिखने वाली दिल्ली के लिए बनाई

कांग्रेस आप की हार के बाद बेवजह खुश दिखने की कोशिश कर रही है।कांग्रेस अगर आप के साथ भी मिलकर लड़ती तो यही परिणाम आने थे।चाणक्य शाह ने दिल्ली के लिए दोनों तरह की रणनीति बनाई हुई थी,लेकिन जब तय हो गया कि तिकोना मुकाबला है फिर उस पर काम किया।शाह ने संघ के साथ सबसे पहले झुग्गी झोपड़ियों को साधा।बकायदा झुगी झोपड़ी सम्मेलन को खुद संबोधित किया।इसके बाद महिलाओं पर ठीक उसी तरह फोकस किया जैसे 2020 के बिहार चुनाव में किया गया था।महिलाओं को लुभाने वाली गारंटी के साथ मध्यम वर्ग को टारगेट किया गया।गंदगी और बदहाल हो चुकी सड़कों और गलियों को मुद्दा बनाया।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए आप दा शब्द ने बड़ा काम किया।

अजीत मेंदोला ।

अमित शाह की ही रणनीति रही कि मुस्लिम बाहुल्य सीट पर हिंदुओं को एक जुट कर बिष्ट को जितवा दिया

गृहमंत्री शाह ने बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद कर बारीकियां समझाई।बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत बूथ प्रबंधन ही माना जाता है। गृहमंत्री शाह इसके विशेषज्ञ माने जाते हैं।जबकि विपक्ष में बूथ प्रबंधन के नाम पर महज खानापूर्ति होती है।टिकट बंटवारे में भी एक एक सीट की जानकारी जुटा टिकट बांटे।प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली से लड़वाना,करावल नगर से कपिल मिश्रा को टिकट देना।मुस्तफाबाद से मोहन सिंह बिष्ट को मैदान में उतारना चौंकाने वाले फैसले थे।प्रवेश बाहरी दिल्ली से टिकट चाहते थे ,गृहमंत्री शाह के निर्देश पर ही वह तैयार हुए।इसी तरह मुस्लिम बाहुल्य सीट पर बिष्ट को भी उन्होंने कहा।अमित शाह की ही रणनीति रही कि मुस्लिम बाहुल्य सीट पर हिंदुओं को एक जुट कर बिष्ट को जितवा दिया। जहां तक चुनाव प्रचार की बात रही तो उसमें भी एकदम अलग रणनीति थी।

जाट बाहुल्य वाली बाहरी दिल्ली की सीटों का जिम्मा हरियाणा के प्रभारी सतीश पूनिया के पास थी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फेस तो बनाया गया लेकिन साथ ही ऐसी रणनीति बनाई कि चुनाव मुद्दों पर ही चले।जहां तक प्रचार की बात है प्रधानमंत्री मोदी तो सबसे प्रमुख स्टार प्रचारक थे ही लेकिन गृहमंत्री शाह ने अपनी टीम से जिस तरह काम लिया उसने जीत को और आसान किया।केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर अपने सभी मुख्यमंत्रियों की सीटों के हिसाब से जिम्मेदारी दी।मतलब किस सीट का वोटर किस नेता के प्रभाव में आयेगा उस नेता को वहां लगाया गया।जैसे उत्तराखंड से जुड़े इलाकों में मौजूद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रचार किया तो पूर्व सीएम रमेश चंद्र पोखरियाल को प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी। नई दिल्ली समेत आधा दर्जन सीट उनके हिस्से में थी। जाट बाहुल्य वाली बाहरी दिल्ली की सीटों का जिम्मा हरियाणा के प्रभारी सतीश पूनिया के पास थी।

शाह को राजनीति का चाणक्य यूं ही नहीं कहा जाता,उन्होंने खुद साबित किया

एक एक सीट की घेराबंदी कर शाह खुद प्रबंधन पर नजर रखे हुए थे।जहां तक प्रचार की बात थी तो शाह ने खुद 12 चुनावी जनसभाओं के साथ चार रोड शो भी किए।16 सीटों पर शाह ने प्रचार किया जिनमें केवल कालका जी और बदरपुर सीट बीजेपी नहीं जीत पाई।बाकी 14 पर जीत का परचम लहराया।शाह को राजनीति का चाणक्य यूं ही नहीं कहा जाता।उन्होंने खुद साबित किया।

आम चुनाव 2014 में वह खुल कर सामने नहीं आए लेकिन असल रणनीतिकार वही थे।लेकिन उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी ले शाह ने अपना लोहा मनवाया।2017 के चुनाव की कमान अपने हाथ में ले उत्तर प्रदेश के लिए ऐसी रणनीति बनाई कि विपक्ष धराशाई हो गया।उसके बाद आम चुनाव 2019 रहा हो या उसके बाद के राज्यों के चुनाव शाह ही असल रणनीतिकार रहे।आम चुनाव 2024 में विपक्ष के भ्रमित प्रचार और राज्यों में कार्यकर्ताओं के अति आत्मविश्वास ने नुकसान किया।लेकिन इसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खुद ही हर तरह की कमान अपने हाथ में ली।और संगठन को साथ ले राज्यों के फैसले किए।शाह का अगला टारगेट बिहार है।जहां पर उन्होंने दौरे शुरू कर दिए।जल्दी ही नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव पूरा होते ही बिहार प्रमुखता में आ जाएगा।

National News : दिल्ली में बीजेपी की जीत,विपक्ष का अब एक जुट रहना मुश्किल