National News | Rahul Gandhi | अजीत मेंदोला । नई दिल्ली। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को आगामी शीतकालीन सत्र का एजेंडा सेट कर दिया है। अमरीका में गौतम अडानी पर भ्रष्टाचार के आरोप का एक मामला सामने आने को मुद्दा बना राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर टारगेट कर सरकार से जेपीसी की मांग कर डाली।
इससे संकेत मिल गए कि 25 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के शुरूआत में जोरदार हंगामा देखने को मिल सकता है, लेकिन हंगामा लंबा तभी चलेगा जब कांग्रेस झारखंड और महाराष्ट्र जीतती है तो। गुरुवार को राहुल के संवाददाता सम्मेलन में दो बातें बड़ी दिलचस्प हुईं।
पहली तो यह कि राहुल गांधी कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी ग्रुप के चल रहे प्रोजेक्टों पर अपनी सरकारों पर बोलने से बचे। जांच भारत सरकार कराये कह कर पीछा छुड़ाया। दूसरा महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव पर सवाल पूछे जाने पर वह ठोक कर नहीं कह सके कि हम दोनों राज्य जीत रहे हैं।
पत्रकार के ध्यान दिलाने पर इतना बोले सकारात्मक रहेंगे। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि राहुल के चेहरे पर मुस्कान दोनों राज्यों में जीत की संभावना को लेकर थी या फिर अडानी का नया मामला उजागर होने पर। चुनावों पर जिस तरह राहुल बोलने से बचे उससे लगता है कि खुश दिखने की वजह अडानी का ही मामला होगा।
दरअसल चुनावों पर राहुल गांधी बोलने से बचते हैं । क्योंकि एक बार वह गलती से ऐसा बोल गए जो सच हो गया। हुआ यूं कि पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव के बाद राहुल गांधी पार्टी मुख्यालय में अपने मुख्यमंत्रियों के साथ पीसी कर रहे थे।
चुनाव पर सवाल उठा तो बोल गए तीनों जगह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। जैसे ही ध्यान आया तो फिर जीतने की बात कही। लेकिन परिणाम वही आए जो राहुल जोश में या जल्दी में बोल गए थे। पार्टी तीनों राज्य हार गई। लोकसभा में तोड़ी बहुत उम्मीदें जगी थी, हरियाणा ने उनमें पानी फेर दिया। ऐसे में महाराष्ट्र और झारखंड को लेकर कांग्रेसी कुछ भी बोलने से डर रहे हैं।
राहुल ने प्रतिपक्ष का नेता होने का धर्म तो निभा दिया
एक्जिट पोल ने और डरा दिया। इसलिए राहुल सजग थे। बोले हो सकता है अडानी ने झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव भी प्रभावित किए हों, लेकिन हार जीत पर सकारात्मक परिणाम होंगे। राहुल ने प्रतिपक्ष का नेता होने का तो धर्म निभा दिया। सुबह सवेरे एजेंसियों ने जैसे ही अमरीका में अडानी पर लगे भ्रष्टाचार की खबर को प्रकाशित किया तो कांग्रेस में तुरंत हलचल हुई और राहुल गांधी पूरी तैयारी के साथ पार्टी मुख्यालय में पत्रकारों के सामने पेश हुए।
पहले ही लग रहा था कि राहुल चुनाव पर कम अपने मनपंसद विषय अडानी पर फिर हमलावर होंगे। वही हुआ। सवालों को लेकर कुछ गुस्से में भी दिखे,उत्साहित भी दिखे। खुद ही बोल भी दिया कि कुछ नहीं होगा। क्योंकि पीएम और अडानी एक हैं तो सेफ हैं। अब सवाल यह है कि राहुल बीते पांच साल से ज्यादा समय से अडानी पर हमलावर तो हैं लेकिन उसका कोई मतलब नहीं निकल रहा है।
दो साल पहले राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली तो उस समय भी अडानी बड़ा मुद्दा होता था। संयोग से उसी दौरान राजस्थान में कांग्रेस सरकार अडानी के साथ 60 हजार करोड़ की डील करती है। राहुल बचाव करते हैं कि नियमानुसार डील करने में उन्हें कोई ऐतराज नहीं है। आज भी कर्नाटक, तेलंगाना पर यही बोले नियमानुसार में एतराज नहीं है। गलत ढंग से एतराज। भारत सरकार जांच कराए।
कुछ दिन पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने अडानी से 100 करोड़ का चेक लेते हुए फोटो जारी किया था
अभी कुछ दिन पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने अडानी से 100 करोड़ का चेक लेते हुए फोटो जारी किया था। राहुल अडानी – अडानी लंबे समय से कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों की मजबूरी है कि उन्हें अडानी का साथ चाहिए ही चाहिए। फ्री योजनाओं ने पहले ही आर्थिक स्थिति कमजोर की हुई है।
अडानी हाथ खींच लेंगे तो पूरी कमर ही टूट जाएगी। राहुल गांधी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनकी बात तब सुनी जाएगी जब उनकी पार्टी जीत का परचम फहराएगी। ऐसा हो नहीं रहा है। राज्यों में हार का सिलसिला टूटता नहीं दिख रहा है। बिना जीते कुछ होगा नहीं। जीत के लिए कड़े और बड़े फैसले करने होंगे।
नकारा लोगों को पार्टी से बाहर कर राजनीतिक समझ रखने वालों को आगे बढ़ाना होगा। केवल टेलीफोनिक मैसेज पर काम करने वाले पदाधिकारियों से काम नहीं चलेगा। महाराष्ट्र और झारखंड के रिजल्ट एग्जिट पोल की तरह आए तो अडानी का मुद्दा पहले ही दम तोड़ देगा।
शीतकालीन सत्र में सहयोगी दल अडानी के मुद्दे पर साथ देंगे लगता नहीं है। टीएमसी, डीएमके, आप जैसे इंडिया गठबंधन के घटक दलों को अडानी मामले में शायद ही रुचि हो। क्योंकि सभी के राज्यों में अडानी के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। राहुल के मुद्दे ठीक हैं, लेकिन पार्टी में दम नहीं बचा। इसलिए वह पूरी पार्टी में अकेले ही अडानी, अंबानी पर हमला बोलते हैं। बाकी नेता चुप रहते हैं।
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